श्राद्ध विधि से वंशजों को कैसे लाभ होता है ?
संक्षिप्त सार : क्या आप जानते हैं कि श्राद्ध विधि से मृत पूर्वजों को उनके मृत्योपरांत जीवन में सहायता करने के अतिरिक्त, श्राद्ध विधि करनेवाले व्यक्ति को भी सकारात्मक शक्ति प्राप्त होती है ?
विषय सूची
१. श्राद्ध विधि करनेवाले व्यक्ति को श्राद्ध से कैसे लाभ होता है, इसकी प्रस्तावना
पितृपक्ष की अवधि, वंशजों के लिए आध्यात्मिक रूप से एक कष्टदायक समय हो सकता है । क्योंकि इस अवधि में मृत पूर्वज भूलोक के निकट आते हैं । इन मृत पूर्वजों में अत्यधिक सांसारिक इच्छाएं होती है और मृत्योपरांत जीवन में आगे जाने हेतु उनमें आध्यात्मिक शक्ति न्यून होती है । मृत पूर्वजों को यह अपेक्षा रहती है कि उनके वंशज उनके मृत्योपरांत जीवन में उन्हें आगे की गति प्राप्त होने में उनकी कुछ सहायता करें तथा मृत्योपरांत जीवन में उनके कष्टों को न्यून करें । इस कारण, वंशजों तथा पूर्वजों के घर के चारों ओर सूक्ष्म दबाव में वृद्धि हो सकती है । अध्यात्म शास्त्र के अनुसार ऐसी कुछ विशिष्ट विधियां और अनुष्ठान होते हैं जिन्हें पितृदोष को दूर करने तथा मृत पूर्वजों को मृत्योपरांत जीवन में आगे जाने की गति प्राप्त होने हेतु आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने के लिए किया जाया है । उनमें से एक महत्वपूर्ण विधि है जिसे श्राद्ध कहते हैं । अधिकांश लोग इसलिए श्राद्ध नहीं करते क्योंकि प्रायः उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं होती । यदि उन्हें इसकी जानकारी हो, तब भी वो इसका महत्व नहीं समझते ।
श्राद्ध करने से वंशजों को आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक शक्ति कैसे प्राप्त होती है, इसे समझाने हेतु महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय ने एक प्रयोग किया । यह प्रयोग आभामंडल एवं ऊर्जा स्कैनरों के उपयोग से किया गया तथा इसने स्पष्ट रूप से श्राद्ध करनेवाले व्यक्ति को हो रहा आध्यात्मिक लाभ दर्शाया ।
२. प्रयोग की व्यवस्था एवं श्राद्ध के प्रभाव का अध्ययन करने की कार्यप्रणाली
- प्रयोग २२ सितंबर २०१६ को प्रातः १० बजे से शाम ४:३० बजे के बीच में किया गया । इसे भारत के गोवा स्थित अध्यात्म शोध केंद्र एवं आश्रम में किया गया । श्राद्ध विधि पितृपक्ष की अवधि में की गई, जो उस वर्ष १७ सितंबर से ३० सितंबर तक थी । जो श्राद्ध किया जा रहा था, वह महालय श्राद्ध था जिसे सामान्यतः पितृपक्ष की अवधि में किया जाता है ।
- प्रयोग में भाग लेनेवाले विषय (वंशज) श्री शॉन क्लार्क थे, जो २०१६ तक, १७ वर्षों से साधना कर रहे थे । यह तीसरी बार था जब वे अपने मृत पूर्वजों के लिए श्राद्ध विधि कर रहे थे । विधि के लिए, उन्होंने शास्त्रों में बताए अनुसार पारंपरिक परिधान धारण किए थे (जिसमें एक धोती और एक उपवस्त्र था ।)
- इस प्रयोग के लिए यूनिवर्सल औरा (आभामंडल) स्कैनर (यूएएस) का उपयोग किया गया । यूएएस, डॉ. मन्नेम मूर्ति (भारत के एक पूर्व परमाणु वैज्ञानिक) द्वारा विकसित एक उपकरण है और इसका उपयोग किसी भी वस्तु (सजीव एवं निर्जीव) के चारों ओर व्याप्त सूक्ष्म ऊर्जा (सकारात्मक एवं नकारात्मक) तथा आभामंडल को नापने के लिए किया जाता है । इस उपकरण काउपयोग कर, श्राद्ध विधि करने से पूर्व तथा पश्चात विषय का आभामंडल यह जानने हेतु मापा गया, कि क्या इससे (श्राद्ध विधि से) व्यक्ति के आभामंडल पर कोई प्रभाव पडा है । उन्हें तीन मानदंडों के लिए मापा गया, अर्थात् नकारात्मक आभामंडल, सकारात्मक आभामंडल तथा कुल संयुक्त आभामंडल । यूनिवर्सल ऑरा (आभामंडल) स्कैनर (यूएएस) का उपयोग कैसे किया जाता है, इसकी अधिक जानकारी के लिए हमारा लेख देखें ।
- कृपया ध्यान दें, कि यह श्राद्ध विधि अध्यात्म शोध केंद्र एवं आश्रम के आध्यात्मिक रूप से पवित्र वातावरण में ऐसे पुरोहितों द्वारा की गई, जो स्वयं भी महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के पुरोहित विभाग के साधक थे । चूंकि ये पुरोहित नियमित रूप से साधना करते हैं, इसलिए वे सात्त्विक होते हैं । वे शास्त्रों के मानदंडों का पूरी बारीकी से पालन करते हैं, सही उच्चारण के साथ मंत्रों का पाठ करते हैं और भाव के साथ सभी अनुष्ठानों को उत्तम प्रकार से करते हैं । इसके साथ, वे विधि करनेवाले व्यक्ति को उस विधि के मूलभूत आध्यात्मिक सिद्धांत एवं उसके लाभ समझाते हैं । यह सभी पहलू श्राद्ध विधि को, मृत पूर्वजों एवं श्राद्ध करनेवाले वंशज, दोनों के लिए, आध्यात्मिक रूप से अधिक प्रभावी बनाते हैं ।
३. श्राद्ध विधि प्रयोग के प्रमुख निष्कर्ष एवं विश्लेषण
यूएएस उपकरण से लिए गए पाठ्यांकों (रीडिंग) को आगे दिया गया है । जैसा की आप देखेंगे कि, पाठ्यांक दो समूहों में दिए गए हैं । दूसरा स्तंभ (कॉलम) श्राद्ध विधि करने से पूर्व लिए गए विषय के पाठ्यांकों को दर्शाता है, तथा तीसरा स्तंभ श्राद्ध विधि करने के त्वरित उपरांत लिए गए विषय के पाठ्यांकों को दर्शाता है ।
- विषय में दोनों ही नकारात्मक ऊर्जा मानदंडों में, अर्थात् इंफ्रारेड तथा अल्ट्रावायलेट में, कोई नकारात्मक आभामंडल नहीं पाया गया । यह स्थिति श्राद्ध विधि करने से पूर्व तथा पश्चात दोनों समय थी ।
- श्राद्ध करने से पूर्व, विषय में कुछ सकारात्मक ऊर्जा पाई गई । यह यूएएस की भुजाओं के ९० o (डिग्री) के कोण में बाहर की ओर खुलने से सूचित हुआ । किंतु, यहां आभामंडल का नाप नहीं लिया गया क्योंकि आभामंडल नापने के लिए यूएएस का १८०० (डिग्री) तक बाहर की ओर खुलना आवश्यक होता है । श्राद्ध विधि करने के उपरांत, यूएएस ने दर्शाया कि विषय (वंशज – श्री शॉन क्लार्क) को १.०२ मीटर सकारात्मक आभामंडल प्राप्त हुआ था ।
- विषय के मापित आभामंडल में १.३१ मीटर से २.६४ मीटर तक, यानि १०० % वृद्धि होना, सकारात्मक अध्यात्मिक शक्ति में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है ।
विषय (वंशज) की सकारात्मकता में इस उल्लेखनीय वृद्धि के निम्नलिखित कारण थे :
- विषय अनेक वर्षों से साधना कर रहा था । परिणामस्वरूप वह सकारात्मक ऊर्जा को अधिक सहजता से ग्रहण करने में सक्षम था ।
- विधि के समय, उसका (विषय का) भाव जागृत हुआ; क्योंकि वह यह वास्तव में अनुभव कर सका कि उसके मृत पूर्वजों को श्राद्ध विधि से लाभ प्राप्त हो रहा है । जब भी भाव होता है, तो आध्यात्मिक सकारात्मकता बढ़ जाती है ।
- श्राद्ध विधि कुछ घंटों तक चलती रही है, जिसमें उस वंशज ने संस्कृत में विविध प्रकार के मंत्रों का उच्चारण सुना, जिनमें अत्यधिक सकारात्मक शक्ति होती है ।
- आध्यात्मिक शोध केंद्र एवं आश्रम का वातावरण अत्यधिक सकारात्मक है, इसलिए श्राद्ध जैसी विधियां करने हेतु येआध्यात्मिक रूप से अनुकूल है । इससे विधि के लिए सूक्ष्म आयाम में अपना वांछित प्रभाव डालना बहुत सरल हो जाता है ।
- श्राद्ध करनेवाले पुरोहित भी साधक थे तथा उन्होंने विधि को अपनी साधना के रूप में किया । उन्होंने भी विधि के समय भाव अनुभव किया ।
- सबसे महत्वपूर्ण कारक था, कि श्राद्ध विधि को अध्यात्म शोध केंद्र एवं आश्रम में परात्पर गुरु (डॉ) आठवलेजी (एक उच्च स्तरीय संत एवं गुरु जिनका आध्यात्मिक स्तर ९० % से अधिक है) के संकल्प एवं मार्गदर्शन में किया गया था । श्राद्ध जैसी विधि की सफलता को निर्धारित करने में उच्च स्तरीय संत का संकल्प एक महत्वपूर्ण कारक होता है । ऐसे संकल्प के कारण ही, श्राद्ध करनेवाले व्यक्ति के मृत पूर्वज भी अधिकतम लाभ प्राप्त करते हैं ।
४. निष्कर्ष
यह प्रयोग दर्शाता है कि श्राद्ध विधि करने से विषय (वंशज) पर सकारात्मक रूप से प्रभाव पडा । इसे यूएएस कुछ सीमा तक दर्शाने में सक्षम हुआ । किंतु इस प्रकार की विधि से मृत पूर्वजों पर पडनेवाले विशाल सकारात्मक प्रभाव तथा श्राद्ध करनेवाले वंशज पर उनके आशीर्वादों को, वास्तव में केवल जागृत छठी इंद्रिय के माध्यम से ही देखा जा सकता है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में, हमारे पास अध्यात्म शोध दल में ऐसे साधक हैं जो उच्च स्तर की यथार्थता के साथ सूक्ष्म आयाम में वास्तव में ठीक उसी प्रकार देख सकते हैं, जैसा कि हम भौतिक आयाम में देखते हैं । वे बताते है कि ऐसी विधियां, जब भाव के साथ की जाती है, तब मृत पूर्वजों को उनके मृत्योपरांत जीवन में आगे जाने हेतु सहायता करने में उनका प्रभाव अधिक हो जाता है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय सभी से पितृपक्ष की अवधि में, कम से कम वर्ष में एक बार, अपनी क्षमता के अनुसार श्राद्ध करने का आग्रह करता है । हमारे लिए इसमें उतने अधिक प्रयास की आवश्यकता नहीं होती, किंतु हमारे मृत पूर्वजों के लिए, यह एक विधि उन्हें वर्ष भर के लिए आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है ।