पितृपक्ष से सबंधित अनुभूतियां – श्रीमती पेत्रा स्टिच
१. श्राद्ध की एक सरल पद्धति को करने से पितृदोष से आराम मिलना
पितृपक्ष (जिस कालावधि में, दिवंगत पूर्वज भूलोक के समीप आते हैं) की प्रथम संध्या को मेरे आध्यात्मिक कष्ट बढ गए थे । मुझे अत्यधिक उदासी, अकेलापन, निराशा लग रही थी तथा मैं पूर्ण रूप से असंतुष्ट अनुभव कर रही थी । मैंने स्वयं को असहाय अनुभव किया तथा जब तक मुझे नींद नहीं आई, मैं रोती रही ।
अगले दिन भी मुझे नकारात्मक अनुभव हो रहा था तथा मैं सुबह कार्यालय जाने में असमर्थ थी । मुझे जो अनुभव हो रहा था, उसके विषय में मैंने ईश्वर को एक पत्र लिखा । जैसे ही मैं लिखने लगी, शब्द स्वतः ही आने लगे । पत्र लिखते समय, मुझे ज्ञात हुआ कि जो कष्ट मुझे अनुभव हुए, वह मेरा नहीं किसी और का है । मुझे यह भी अनुभव हुआ कि मेरे मन में जो नकारात्मक भावनाएं आ रही थी, वो मेरी एक स्त्री पूर्वज से आ रही थी । यद्यपि यह सारे अनुभव मुझे स्पष्ट थे और मुझे समझ मेर आ रहे थे; तथापि मैं इसे शब्दों में नहीं समझा सकती ।
इस अनुभूति ने मुझे नकारात्मक भावना से दूर होने तथा इसे एक निरीक्षक के रूप में देखने में मेरी सहायता की । फलस्वरूप, मेरा कष्ट कम हुआ तथा मैं पुनः अपने ऑफिस जा सकी ।
मैं SSRF द्वारा संचालित ऑनलाइन सत्संगों में सम्मिलित होती थी तथा सत्संग लेनेवाले साधक ने मुझे पितृपक्ष से पूर्व यह बताया था कि पितृपक्ष में श्राद्ध (एक प्रभावशाली धार्मिक विधि जिससे पूर्वज आध्यात्मिक स्तर पर लाभान्वित होते हैं) करना पितृदोषों के निवारण का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है । उन्होंने बताया कि यूरोप में इस विधि को पूर्ण नियम से कर पाना संभव नहीं है, किंतु इसकी एक सरल पद्धति भी है, जिसे मैं कर सकती हूं ।
मुझे श्राद्ध के विषय में कुछ नहीं पता था, इसलिए इसे अच्छे से करने के लिए मैंने यथासंभव पूर्ण प्रयास किए । अगले दिन, प्रातः कार्यालय जाते समय मैं अपने साथ कुछ पके हुए चावल, सुपारी, घर में बना शाकाहारी भोजन, तिल लगे कुछ ब्रेड, बिस्कुट एवं मिठाईयां लेकर निकली । मैं जिस स्थान पर श्राद्ध करनेवाली थी, उसकी शुद्धि करने हेतु, मैं तुलसी के पत्ते, SSRF की अगरबत्तियां एवं पवित्र जल (तीर्थ) भी अपने साथ ले गई थी ।
कार्यालय के उपरांत, मैं निकट के एक उद्यान में गई और मुझे एक खाली स्थान मिला । मैंने SSRF की अगरबत्ती जलाकर तथा पवित्र जल छिडक कर उस स्थान की शुद्धि की । उसके उपरांत मैंने वहां रखे एक बडे पत्थर को स्वच्छ किया और अपने साथ लाए हुए खाद्य पदार्थ का नैवेद्य उसपर रखा ।
उसके पश्चात, मैंने दक्षिण की ओर मुख कर, अपने हाथ ऊपर उठाते हुए इस प्रकार प्रार्थना की, “मेरे पास कुछ नहीं है तथा कोई धन नहीं है जिसका प्रयोग श्राद्ध करने हेतु किया जा सके । मैं अपने समस्त पूर्वजों को प्रणाम करती हूं । आप सभी मेरे भाव से संतुष्ट हो । कृपया मुझे अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्त कीजिए ।”
उसके पश्चात, मैंने दक्षिण की ओर मुख कर, अपने हाथ ऊपर उठाते हुए इस प्रकार प्रार्थना की, “मेरे पास कुछ नहीं है तथा कोई धन नहीं है जिसका प्रयोग श्राद्ध करने हेतु किया जा सके । मैं अपने समस्त पूर्वजों को प्रणाम करती हूं । आप सभी मेरे भाव से संतुष्ट हो । कृपया मुझे अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्त कीजिए ।”
तब से मैंने यह अनुभव किया कि मेरा मन अधिक स्थिर हुआ है । ईश्वर के प्रति मेरी श्रद्धा में भी वृद्धि हुई एवं मैं साधना में प्रयासों को बढाने के लिए और अधिक दृढ हुई हूं ।
अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध करने हेतु मुझे अवसर प्रदान करने के लिए मैं ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हूं ।