विषय सूची
१. स्वयं के विषय में जानकारी एकत्रित करने की प्रस्तावना
पिछले पाठ में, हमने चूकों के कुछ उदाहरणों की तथा उन्हें कैसे वर्गीकृत किया जा सकता है इसकी चर्चा की थी I इस पाठ में हम स्वयं के बारे में जानकारी (चूकें) एकत्रित करने तथा उन्हें कैसे लिखना है इसके विषय में देखेंगे I
स्वभाव दोष निर्मूलन प्रक्रिया को आरंभ करने से पहले जिन चूकों का आपको भान है अथवा जो चूकें दूसरों ने आपको बताई हैं, उन चूकों को ७ से १० दिनों तक लिखने का प्रयास करें I जब दूसरों की चूकों पर विचार विमर्श चल रहा हो और आपको भान हो कि इसी प्रकार की चूक आपने भी की है, इसमें आपकी वे चूकें भी हो सकती हैं I अपनी चूकें लिखने से हम वास्तव में अपने बारे में जानकारी एकत्रित कर रहे होते हैं जिससे हम अपने व्यक्तित्व का विश्लेषण कर सके I प्रारंभ में हम कहां गलत जा रहे हैं इसका भान बहुत अल्प होगा अथवा बिलकुल भान नहीं होगा, तब हम दूसरों की सहायता ले सकते हैं I १० दिनों के उपरांत आपको भान होने लगेगा कि कौनसी चूक बारंबार हो रही है तथा इससे आपको उस चूक पर कैसे कार्य करना है, यह समझने में सहायता मिलेगी I
२. चूकें लिखते समय उसका स्पष्टता से उल्लेख करना
चूकें लिखते समय यह सीखना आवश्यक है कि उन्हें स्पष्ट रूप से और साधारण वाक्य में कैसे लिखा जाए जिससे मन को यह स्पष्ट रहे कि हम कहां गलत जा रहे हैं I
स्वयं को बचाना यह मन की प्रवृति होती है । इसी कारण व्यक्ति का मन चूकें छुपाने अथवा व्यक्ति को भ्रमित अवस्था में रखने का प्रयास करता है जिससे व्यक्ति को जहां सुधार करने की आवश्यकता होती है वहां उसे सहायता नहीं मिलती । परिणामस्वरूप मन व्यक्ति को भ्रमित तथा मूर्ख बना देता है और ‘“मैं सही हूं”’ उसमें यह भावना सदृढ करने का प्रयास करता है । अतः चूकें लिखते समय जितना संक्षिप्त तथा स्पष्ट रहेंगे उतना ही अच्छा होगा ।
चलिए अनुचित पद्धति से चूक लिखने का एक उदाहरण देखते हैं I
“आज के दिन अनेक ऐसी घटनाएं घटी जहां मुझे अपने बच्चों पर चिल्लाना पडा I वे कुछ भी व्यवस्थित नहीं रखते I उन्हें कितना भी समझाओ वे नहीं सीखते I मुझे आज थोडा सख्त होना पडा I एना का व्यवहार दिनोंदिन परेशान करनेवाला होते जा रहा है I उसे हर समय कुछ नया चाहिए होता है I एक अभिभावक के रूप में मैं सब संतुलित रखने का प्रयास करती हूं किंतु उसकी मांगे अल्प ही नहीं होती I मेरी दुविधा यह है कि यदि मैं उसकी सभी मांगे पूरी करती रहूंगी तो उसे जो मिल रहा है उसका महत्त्व उसे कभी समझ नहीं आएगा I दूसरी ओर, यदि मैं उसकी इच्छा पूरी नहीं करती हूं तो बच्चों को लगेगा कि उनके माता-पिता उनका सहयोग नहीं करते I मैं जानती हूं कि यह अस्थायी अवस्था है किंतु उस क्षण मुझे चिल्लाना पडा I”
आपने देखा होगा कि इस चूक में बहुत अधिक बातें कही गई हैं, जिसे मन के लिए समझना कठिन है I इसलिए एक समय में एक पहलू जो हमे अधिक सता रहा है अथवा परेशान कर रहा है उसे लिखना अच्छा होगा I इस स्थिति में दो चूकें हैं I
अतः उपर्युक्त उदाहरण के संबंध में, इसी चूक को लिखने हेतु आगे दी गर्इ पद्धति अधिक प्रभावी होगी I
१. जब एना (मेरी पुत्री) ने मेरे कहने के उपरांत भी अपनी अलमारी व्यवस्थित नहीं की तो मैं उस पर क्रोधित हुई ।
२. जब एना (मेरी पुत्री) ने मुझसे उसके लिए महंगे जूते खरीदने के लिए कहा तो मुझमें यह प्रतिक्रिया आई कि यदि हर बार मैं उसकी इच्छाओं की पूर्ति करती रहूंगी तो उसे मेरा महत्व नहीं लगेगा और लगेगा कि सबकुछ आसानी से मिल जाता है I
पहले के प्रसंग में, सटीक विषय का पता लगाना कठिन है I यदि बुद्धि को सटीक विषय का भान नहीं कराया गया तो अपनी चूक के विश्लेषण करने का तथा उससे कोई सहायता प्राप्त करने का अवसर बहुत कम होगा I मन को किसी विशिष्ट विषय/प्रतिक्रिया के कारण से वश में करने के लिए, स्पष्ट रहना महत्वपूर्ण है I पूरी घटना को छोटी चूकों में परिवर्तित करके तथा उसे लिखने से मन तथा बुद्धि को यह भान रहेगा कि वे कहां गलत जा रहे हैं I इससे चूक के उत्तरदायी दोष का अच्छे से पता लगाने में सहायता मिलेगी I
३. स्वयं पर ध्यान केंद्रित करना
कभी कभी दूसरों के प्रति प्रतिक्रिया आने पर व्यक्ति को लगता है उससे चूक हुई है I किंतु कही न कही उसका मन उसे विश्वास दिलाने हेतु फंसाता है कि उसे प्रतिक्रिया आना उचित था I उसी प्रकार जब व्यक्ति चूक लिखता है तो वह उसे इस प्रकार लिखता है कि उसकी पूरी चूक अन्य व्यक्ति ने की है, एेसे प्रकट होता है I इससे व्यक्ति का ध्यान उस घटना में स्वयं के प्रति अन्तर्मुखी बनने के स्थान पर दूसरों की चूकों पर अधिक केंद्रित होता है I
उदाहरण – बहिर्मुखी विधि से लिखी जाने वाली चूक जो दूसरों की चूक पर अधिक केंद्रित होती है
मेरे पति जिमी सदैव मोबाइल फोन पर लगे रहते हैं तथा मुझे कभी समय नहीं देते I आज भी यही हुआ I मैं उनसे कुछ विषयों पर चर्चा करना चाहती थी और उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ समय लगेगा और वे फोन पर ही लगे रहे I मुझे प्रतीक्षा करनी पडी I मैंने सोचा कि यह उनकी ओर से असभ्य तथा सर्वथा बुरा व्यवहार था इसलिए मुझे क्रोध आ गया I
उदाहरण – अधिक अन्तर्मुख होकर लिखी जाने वाली चूक
मैंने अपने पति से मेरे लिए समय निकालने की अपेक्षा रखी जब वे अपने फोन पर बात कर रहे थे इसलिए मुझे उन पर क्रोध आया I
जैसा कि आप देख सकते हैं कि पुनः लिखी हुई चूक व्यक्ति को अधिक अन्तर्मुखी बनाती है I यह व्यक्ति को स्वयं से प्रश्न पूछने में उत्प्रेरक समान होता है I इस प्रकार व्यक्ति आगे दी गर्इ पद्धति से उसके कारण के प्रति अधिक झुका रहता है I यह ठीक है कि जिमी फोन पर थे किंतु इसने मुझे इतना प्रभावित क्यों किया ? मैंने भी उन्हें पूर्व सूचना नहीं दी थी I संवाद में कमी भले ही उनकी ओर से हो सकती है किंतु जो क्रोध मुझे आया उससे मेरी ही हानि हो रही है I साथ ही मैंने यह मान लिया था कि जो बात मैं करना चाहती थी वह उनके कार्य से अधिक महत्वपूर्ण थी I मैं अपने क्रोध को कैसे न्यून कर सकती हूं ?
४. अपनी चूकें ईमानदारी से लिखना
अनुचित शब्दों का प्रयोग
कभी कभी हमने देखा है कि जब साधक चूकें लिखते हैं तब वे कुछ ऐसे शब्दों को जोड देते हैं जो चूक की गंभीरता को कम कर देता है । उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति ने अपनी चूक इस प्रकार लिखी :
“जब जोएन्नी ने मेरे सहकर्मियों के सामने मेरा अपमान किया तो मैं थोडा उदास हो गया तथा मुझे उसे पुनः उत्तर देने का मन हुआ I”
वास्तव में वह बहुत उदास था किंतु वह यह स्वीकार नहीं करना चाहता था कि उस बात ने उसे बहुत अधिक प्रभावित किया I वास्तव में वह भी उसे उसके सहेलियों के सामने उसे अपमानित करके उसे सबक सिखाना चाहता था I इसलिए यदि वह आगे दिए अनुसार चूक लिखे तो अधिक अच्छा होगा I
“जब जोएन्नी ने मेरे सहकर्मियों के सामने मेरा अपमान किया तो मुझे बहुत दुःख हुआ और मेरे मन में उसे उसकी सहेलियों के सामने अपमानित करने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हुई ।’’
स्वाभाव दोष के साथ संयोजन में ‘थोडा’ अथवा ‘अल्प’ जैसे शब्दों का प्रयोग न करना ही अच्छा होगा I इसका कारण यह है कि यह मन तथा बुद्धि को गलत संदेश देता है कि वास्तव में वह (कृति/प्रतिक्रिया) इतना बुरा नहीं था ।
स्वयं के दोष स्वीकारना
अनेक बार साधकों को भी यह स्वीकार करना कठिन हो सकता है कि उनमें अमुक स्वभाव दोष है । उदाहरण के लिए, यह स्वीकार करना आसान है कि किसी को अपने पति अथवा पत्नी के प्रति क्रोध आ गया क्योंकि यह बहुत सामान्य बात है । किंतु यह स्वीकार करना बहुत कठिन हो जाता है कि उसे उस साधक के प्रति जिसे सत्संग में उसके प्रयासों के लिए सराहा गया है, ईर्ष्या अथवा जलन है । स्वाभाव दोष जैसे ईर्ष्या, जलन, लोभ, काम आदि को आलस्य, नियोजन की कमी, लापरवाही इत्यादि की तुलना में स्वीकार करना अधिक कठिन होता है ।
कभी कभी स्वयं की प्रतिमा बचाना इतना महत्वपूर्ण होता है कि चूक का भान होने पर भी इस प्रकार की चूक को नहीं लिखते ।
५. चूक लिखने में सुविधा होने हेतु अन्य सुझाव
- चूकें लिखते समय ध्यान में रखे जाने हेतु ये प्रमुख विशेषताएं है – संक्षिप्त में लिखना, स्पष्टता, सरलता और ईमानदारी ।
- यदि दिन में एक ही चूक अनेक बार होती है तो उस चूक को एक बार लिख सकते हैं; किंतु उसकी तीव्रता को समझने के लिए प्रत्येक बार उसकी गिनती कर सकते हैं ।
- चूकें लिखने में नियमित रहने का प्रयास करें I आप अपनी चूकें लिखने हेतु स्प्रेडशीट टेम्पलेट का प्रयोग कर सकते हैं । वर्कशीट के ‘मेरी चूकें’ भाग में, स्तंभ अ में दिनांक के साथ स्तंभ आ में आपको अपनी भान हुई चूकें लिखनी होगी । यह पूरा लेख पी.डी.आर (स्व.दोष.निर्मूलन) स्प्रेडशीट को कैसे भरें इस विषय पर है I
- कभी-कभी ईर्ष्या अथवा अभिमान के विचार आ सकते हैं, तो उसी समय उन्हें लिख लेना चाहिए क्योंकि दिन ढलने पर चूके लिखने के समय उसे भूल जाने की संभावना रहती है ।
- चूकें लिखने के लिए अपने साथ सदैव कुछ रखें, चाहे वह पेन-पेपर हो अथवा स्मार्टफोन की कोई नोट लिखने की एप हो |
- SSRF के सत्संग में भाग लें क्योंकि इससे आपको, चूक किसे माना जाता है, चूकों को पहचानने के लिए अधिक सतर्क कैसे रहा जाए तथा उन्हें कैसे लिखते है इसका भान अधिक होने में सहायता प्राप्त होगी ।