विषय सूची
- १. लेखक का उसके अध्यात्मविषयक ग्रंथ पर प्रभाव का प्रस्तावना
- २. लेखक के आधार पर आध्यात्मिक प्रभाव
- ३. शोध की कार्यप्रणाली
- ४. औसत आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्तिद्वारा अध्यात्म विषय पर लिखित ग्रंथ पढने का प्रभाव
- ५. ढोंगी गुरु द्वारा लिखित अध्यात्म विषयक ग्रंथ पढने का प्रभाव
- ६. संतद्वारा लिखित अध्यात्म विषयक ग्रंथ पढने के प्रभाव
- ७. सारांश
१. लेखक का उसके अध्यात्मविषयक ग्रंथ पर प्रभाव का प्रस्तावना
‘अध्यात्म का अध्ययन’ लेख में हमने इस बात पर बल दिया है कि व्यक्ति को संत अथवा गुरु द्वारा लिखित अध्यात्मविषयक ग्रंथ का ही चयन अध्ययन हेतु करना चाहिए । इस लेख में हम इस विषय को और अधिक गहरार्इ से समझेंगे । आज अध्यात्म पर असंख्य ग्रंथ उपलब्ध हैं और अध्यात्म के प्रति गंभीर विद्यार्थी के लिए यह एक समस्या ही है । प्रत्येक लेखक अपनी दृष्टि से अध्यात्म पर लिखता है और कभी-कभी इससे संभ्रम भी उत्पन्न हो सकता है । ऐसे ग्रंथों में आध्यात्मिक सत्य की मात्रा अत्यल्प होती है, किंतु उनका प्रस्तुतिकरण बहुत अच्छे तथा कलात्मक ढंग से किया हुआ होता है, परिणामस्वरूप इनमें विद्यार्थी के अटक जाने की संभावना होती है । इसलिए व्यक्ति को कौनसे दिशानिर्देश का अनुकरण करना चाहिए तथा व्यवहार में लाना चाहिए ? ग्रंथ की दुकानों में सर्वाधिक बेचे जानेवाले अध्यात्म विषयक ग्रंथों का लेखक कौन है, यह जाने बिना उस ग्रंथ का अनुकरण करने का आध्यात्मिक महत्त्व क्या है ? इस लेख में हम लेखक के आधार पर आध्यात्मिक ग्रंथों के अध्ययन के लाभ तथा हानि एवं उन ग्रंथों के अध्ययन से पाठक को वास्तव में क्या प्राप्त होगा, इस पर चर्चा करेंगे ।
२. लेखक के आधार पर आध्यात्मिक प्रभाव
जब हमने इस विषय पर आध्यात्मिक शोध किया, हमने सभी लेखकों को चार सामान्य वर्गों में बांटा । ये वर्ग थे :
२.१ ग्रंथ की आध्यात्मिक शक्ति के स्तर पर ग्रंथ के लाभ
आगे दी गर्इ सारणी परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के द्वारा किया गया सूक्ष्म-परीक्षण है ।
पहला निष्कर्ष ग्रंथ की कुल आध्यात्मिक शक्ति से संबंधित है और हम इसका मापन निम्नलिखित के संदर्भ में करते हैं :
- शब्दों में विद्यमान आध्यात्मिक शक्ति,
- शब्दों की ध्वनि में तथा
- लेखक के आध्यात्मिक स्तर के प्रभाव के कारण शब्दों तथा उनकी ध्वनियों में निर्मित आध्यात्मिक शक्ति
इस सारणी में दिए गए सूक्ष्म-परीक्षण लेखक की श्रेणी के आधार पर सभी ग्रंथों पर लागू होते हैं ।
टिप्पणियां :
१. इस स्तंभ में हमने लेखकों की दो श्रेणियों को एकत्रित किया है क्योंकि ग्रंथ के आध्यात्मिक लाभ के संदर्भ में उनका प्रभाव समान है, अर्थात
- आध्यात्मिक रूप से औसत लेखक द्वारा सामान्य विषय पर लिखा ग्रंथ
- आध्यात्मिक रूप से औसत लेखक द्वारा लिखा आध्यात्मिक ग्रंथ
२. शब्द-शक्ति : आध्यात्मिक नियम के अनुसार, ‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा शक्ति एकसाथ होती है ।’ प्रत्येक शब्द स्वयं की आध्यात्मिक शक्ति का वहन करते हैं । प्रकाशन में विद्यमान कुल शक्ति उसमें प्रयुक्त शब्दों पर निर्भर करती हैं ।
३. नाद-शक्ति : ऊपरोक्त आध्यात्मिक नियम के अनुसार ध्वनि भी अपनी आध्यात्मिक शक्ति का वहन करती है ।
२.२ ग्रंथ लिखने के लिए ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया
तब हम एक चरण आगे बढे । हमने प्रत्येक श्रेणी से ऐसे ही एक लेखक का ग्रंथ उठाया । ऐसा यह समझने के लिए किया गया कि ज्ञानप्राप्ति कैसे हुर्इ तथा सूक्ष्म-दृष्टिद्वारा ग्रंथ कैसा दिखता है । हमें प्राप्त निष्कर्ष नमूने के समूह में से केवल ३ लेखकों तथा उनके ग्रंथों तक ही सीमित नहीं रहे; अपितु सभी श्रेणियों के लेखकों के संदर्भ में रहे ।
टिप्पणियां :
१. मुख्य टिप्पणी : हमने इस श्रेणी को दर्शाने के लिए ग्रंथ का सूक्ष्म-परीक्षण नहीं किया क्योंकि यह अगले स्तंभ जैसा है, अर्थात ‘आध्यात्मिक ग्रंथ का एक आध्यात्मिक रूप से औसत लेखक’ । अधिकतर प्रकरणों में संत के आध्यात्मिक स्तर से अल्प स्तरवाला एक औसत आध्यात्मिक स्तरवाला व्यक्ति जब आध्यात्मिक ग्रंथ लिखता है, वह निश्चित रूप से किसी जीवद्वारा प्रभावित होगा । यह कोर्इ निम्नस्तरीय सकारात्मक शक्ति हो सकती है अथवा वह किसी अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) से प्रभावित अथवा आविष्ट होगा । शक्ति जो भी हो किंतु नकारात्मक काली शक्ति से उसके घिर जाने की संभावना अत्यधिक है । कभी-कभी
२. अनिष्ट शक्तियां सही जानकारी देती है; किंतु वे ज्ञान पर काली शक्ति की परत चढा देते हैं ।
ढोंगी गुरुद्वारा अध्यात्म पर ग्रंथ लिखने के लगभग सभी प्रकरणों में वह उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) द्वारा प्रभावित अथवा आविष्ट होते ही हैं । क्योंकि वह साधकों तथा जनता को सामूहिक रूप से दिग्भ्रमित करने का माध्यम बन जाता है ।
३. ७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाले संत अपने लेखन में ३० प्रतिशत पूर्ण सत्य को धारण कर सकते हैं । १०० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाले संत अपने लेखन में १०० प्रतिशत पूर्ण सत्य को धारण कर सकते हैं । इसलिए हम इसे पूर्ण सत्य की अधिकतम मात्रा को ग्रहण करने तथा उसे शब्दों के रूप में प्रसारित करने में सक्षम होने की दृष्टि से देखते हैं । अंतिमतः पूर्ण सत्य लिखे शब्दों के परे जाने से ही पूर्ण रूप से प्रसारित हो सकता है ।
३. शोध की कार्यप्रणाली
SSRF की एक साधिका प्रियंका लोटलीकरजी के सामने तीन पुस्तकें रखी गर्इं । उन्होंने पुस्तकें नहीं पढीं । अपनी विकसित छठवीं इंद्रियद्वारा उन्होंने उन ग्रंथों तथा उनके आध्यात्मिक आयाम के विविध पहलुओं का निरीक्षण किया । परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के संकल्प के कारण वे वैश्विक मन तथा बुद्धि के ज्ञान को चित्र के माध्यम से अर्थात सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र के रूप में तथा लिखित स्वरूप में भी ग्रहण करने में सक्षम हैं । तत्पश्चात परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के द्वारा ये जानकारी जांची गई तथा उनकी पुष्टि हुर्इ । सभी श्रेणियों का सूक्ष्म-परीक्षण करते समय प्रियंकाजी ने निम्नलिखित का सूक्ष्म-परीक्षण किया :
अ. ग्रंथ का प्रभाव, अर्थात मुखपृष्ठ तथा भीतर के पृष्ठों का सूक्ष्म-स्तर पर, तथा
आ. इन लेखकों के ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया
उन्होंने ग्रंथ पढनेवाले व्यक्ति पर होनेवाले सूक्ष्म-स्तरीय प्रभाव का भी वर्णन किया ।
४. औसत आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्तिद्वारा अध्यात्म विषय पर लिखित ग्रंथ पढने का प्रभाव
४.१ औसत आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्तिद्वारा अध्यात्म विषय पर लिखित ग्रंथ का सूक्ष्म परीक्षण
औसत आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्तिद्वारा लिखित ग्रंथ को देखने पर प्रियंकाजी को आध्यात्मिक आयाम में जो दिखा, उसी का सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र आगे दिया गया है ।
‘‘इस ग्रंथ का लेखन पाठक को मायावी विचारों में अटकाता है । सूक्ष्म में इस ग्रंथ का रंग गुलाबी था । गुलाबी रंग साधारणतः प्रसन्नता का सूचक है । तथापि ग्रंथ का यह गुलाबी रंग ग्रंथ के मायावी प्रकृति के होने के कारण था, जिसका उद्देश्य आध्यात्मिक आधार न होते हुए भी पाठक को सुखदायक अनुभव देना था ।ग्रंथ से कुंडली समान सर्पिले आकार की तरंगें वातावरण में प्रेषित होती हैं । और काली शक्ति प्रेषित करनेवाली तरंगें आकर मेरे मन पर आघात कर रही थीं ।
ग्रंथ का मुखपृष्ठ सौंदर्यपूर्ण था; तथापि मुझे वह ग्रंथ रज-तम कणों से घिरा लगा । यह ऐसा ग्रंथ था कि आरंभ में व्यक्ति को अच्छा लगता है; किंतु जब वह उसे पूरा पढ लेता है तब उसके मन को अपूर्णता का अनुभव होता है । वास्तव में व्यक्ति (साधक) को भान होता है कि उसका समय व्यर्थ हुआ और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ ।
क्योंकि आरंभ में ग्रंथ हमें अपनी मोहिनी रूप में फंसा लेता है, तब उसके लिए हमारे मन तथा बुद्धि में काली शक्ति प्रेषित करना सरल हो जाता है । ग्रंथ के सूक्ष्म मायावी प्रकृति के कारण, इसका प्रभाव मोहित करनेवाला होता है और पाठक को सतत जिज्ञासा होती है कि आगे क्या होगा ।
इस ग्रंथ का चित्र बनाने के उपरांत, मैं उसे बहुत समय तक देखती रही और इसके उपरांत मुझे चक्कर जैसे आने लगे । तत्पश्चात मुझे उसे देखने का मन नहीं किया ।’’
४.२ औसत आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्तिद्वारा अध्यात्म विषय पर ग्रंथ के लिए ज्ञान प्राप्ति तथा लिखने की प्रक्रिया
एक सामान्य व्यक्ति ग्रंथ लिखने के लिए विचारों को प्राप्त करने में क्यों सक्षम होता है इसके सामान्य कारण निम्नलिखित हैं :
इसका अर्थ है कि जब औसत आध्यात्मिक स्तरवाला व्यक्ति अध्यात्म विषय पर ग्रंथ लिखने का प्रयास करता है, औसतन ७० प्रतिशत प्रकरणों में वह अनिष्ट शक्तियों अथवा निम्नस्तरीय अच्छी सूक्ष्म-शक्तियों से प्रभावित/आविष्ट होगा ।
जब एक औसत आध्यात्मिक स्तरवाला व्यक्ति अध्यात्म पर ग्रंथ लिखता है, लेखक स्वयं ही माया में रम जाता है । उसके पास ग्रंथ में मसाला डालने हेतु सक्रिय कल्पना तथा योजना होती है । इसलिए उसमें अत्यल्प सात्त्विकता होती है । इसप्रकार के सभी लेखन मायावी विचारों से प्रधानता से प्रभावित होते हैं । वे साेचते हैं कि ग्रंथ लिखने में उनके सारे विचार उनकी बुद्धि की एक ऊंची छलांग है ।
चूंकि लेखकों का साधना का दृढ आधार नहीं होता इसलिए उनका दृष्टिकोण माया के साथ अधिकतर संबंधित होता है । न कि जीवन का मूलभूत उद्देश्य, र्इश्वरप्राप्ति से । इसलिए र्इश्वर उनकी सहायता नहीं करते और ना ही वे वैश्विक मन तथा बुद्धि के ज्ञान को ग्रहण कर सकते हैं । लेखक को यह अहं होने के कारण कि ‘मैं ग्रंथ लिख रहा हूं, मेरी बुद्धि में विचार उत्पन्न हो रहे हैं’ इसलिए उनके लेखन से काली शक्ति की तरंगें संचारित होती हैं । लेखक के अहं तथा माया के प्रति आकर्षण के कारण आध्यात्मिक आयाम के सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिकों जैसी नकारात्मक शक्तियों के लिए उस व्यक्ति पर नियंत्रण कर पाना अत्यधिक सरल हो जाता है । लेखन भी अध्यात्म के मायावी सिद्धांतों से भरे होते हैं । ये लेखन पाठक को इस स्वाभाविक ज्ञान से कि र्इश्वरप्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य है, से दूर ले जाते हैं और वे माया में फंस जाते हैं । परिणामस्वरूप इस प्रकार के ग्रंथों में पंच ज्ञानेंद्रिय, मन तथा बुद्धि को लय करनेवाली साधना पर बल देने का अभाव होता है ।
इस कारण उनके लेखन से मायावी लहरें वायुमंडल में फैलती हैं । इसके साथ ही रज-तम की तरंगें, मायावी तरंगें भी इन ग्रंथों से प्रेषित होती हैं । यही कारण है कि सामान्य लोग उनकी ओर आकर्षित होते हैं और अपनी केवल आध्यात्मिक हानि करवाने के लिए वैसे ग्रंथों को पढना पसंद करते हैं ।
५. ढोंगी गुरु द्वारा लिखित अध्यात्म विषयक ग्रंथ पढने का प्रभाव
५.१ ढोंगी गुरु द्वारा लिखित अध्यात्म विषयक ग्रंथ का सूक्ष्म परीक्षण
ढोंगी गुरु द्वारा लिखित अध्यात्म विषयक ग्रंथ का जब प्रियंका ने जब सूक्ष्म–परीक्षण किया, तब उन्हें जो आध्यात्मिक आयाम में दिखा, वह आगे दर्शाया गया है ।
‘‘जब मैं ढोंगी गुरु द्वारा लिखित अध्यात्म विषयक ग्रंथ का सूक्ष्म-चित्र बना रही थी, मैंने उसमें अनेक कुंडलियां/चक्र देखे । जब मैं उन कुंडलियों के संदर्भ में विचार कर रही थी – उसी समय मुझे वे कुंडलियां सक्रिय होती दिखीं और मुझे चक्कर जैसे आने लगे । मुझे अपने शरीर के चेतना शून्य होने जैसे अनुभव हुआ । उसी समय में कुंडलियां अनेक विचार उत्पन्न कर रही थीं और मुझे मानसिक कष्ट होने लगा ।
जैसे मक्खियां खाद्यसामग्री पर मंडराती हैं वैसे ही मैंने तम कणोंको ग्रंथ पर गतिविधि करते देखा । मैंने एक कांटेदार काला आवरण भी देखा । यह इसलिए क्योंकि ढोंगी गुरु को नियंत्रित करनेवाला सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक समाज को कुमार्ग पर ले जाने अथवा आक्रमण करने के हेतु से ज्ञान प्राप्ति के लिए अपनी सिद्धि का प्रयोग कर कर रहा था । मुझे उस ग्रंथ में अत्यधिक काली शक्ति भी अनुभूत हुर्इ ।’’
५.२ ढोंगी गुरुद्वारा ज्ञानपाप्ति की प्रक्रिया तथा अध्यात्मविषयक ग्रंथ लिखना
ढोंगी गुरुओं का आध्यात्मिक स्तर लगभग ५० प्रतिशत होता है । इसलिए उनका ज्ञान तथा अध्यात्म का प्रत्यक्ष अनुभव सीमित होता है । अपने पिछले जन्मों अथवा वर्त्तमान जन्म में थोडी साधना करने के कारण उन्हें ये आध्यात्मिक स्तर प्राप्त हुआ होगा । प्रसिद्धि तथा सौभाग्य प्राप्ति की उनकी अपनी भी तीव्र इच्छा होती है । इसका दुरुपयोग उन्हें आविष्ट करनेवाली उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां करती हैं । उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां ढोंगी गुरु को अपनी सिद्धियां तथा प्रतिभा प्रदान करती हैं । उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के लिए तीव्र अहं से युक्त उच्च आध्यात्मिक स्तरवाले मनुष्य से अपने नकारात्मक आध्यात्मिक कार्य करवाना सरल है । इससे साधारण व्यक्ति को प्रोत्साहन मिलता है तथा ढोंगी गुरु को एक विशाल अनुयायी मंडली । औसत आध्यात्मिक स्तरवाला व्यक्ति खरे तथा ढोंगी गुरु में अंतर नहीं समझ सकता ।
इन दोनों कारकों के परिणामस्वरूप उनका अहं औसत आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्ति समान बढ जाता है । उनके अहं, सिद्धि तथा अनुयायियाें के कारण सूक्ष्म स्तरीय–मांत्रिकों के लिए उन पर नियंत्रण पाना तथा उनके माध्यम से कार्य करना सरल तथा सहायक हो जाता है । वास्तविकता तो यह है कि सूक्ष्म स्तरीय–मांत्रिक ही उनके माध्यम से सब कार्य करता है और ढोंगी गुरु सूक्ष्म स्तरीय–मांत्रिक के हाथों की एक कठपुतली समान होते हैं ।
ये काले बादल र्इश्वर के निर्गुण तत्व से आनेवाले विचारों को सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिकद्वारा अवरोध उत्पन्न करने का सूचक है । ढोंगी गुरु अथवा संतों के तीव्र अहं के कारण उन्हें र्इश्वर से सहायता नहीं मिलती । चूंकि ज्ञान का स्रोत सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक होता है इसलिए ज्ञान सूक्ष्म काली शक्ति से भरा होता है । ज्ञान के स्रोत तथा सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिकद्वारा आविष्ट होने कारण ढोंगी गुरु अथवा संत का लिखना आरंभ करने से पूर्व ही उनके चारोंओर काली शक्ति फैल जाती है । ढोंगी गुरुद्वारा लिखित ग्रंथ को जब व्यक्ति पढता है, वह भी इस काली शक्ति से प्रभावित हो जाता है । यह दुर्भाग्य है कि औसत आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्ति के पास सूक्ष्म-क्षमता नहीं होती कि वह समझ सके कि वह काली शक्ति से प्रभावित हो रहा है । औसत पाठक पूर्णतः मानसिक स्तर पर पढते हैं इसलिए वे उसकी कलामयी लिखावट से आकर्षित होते हैं तथा कर्इ बार उस ग्रंथ में दी गर्इ सीख तथा उस ढोंगी गुरु के अन्य ग्रंथों के प्रति निष्ठावान बन जाता है ।
वास्तव में जब ५ साधकों को लेखक के सूचनाजाल स्थल (वेबसार्इट) को देखकर सूक्ष्म-परीक्षण करने को कहा, तब साधकों को वमन, सिरदर्द, लेखक का छायाचित्र न देखने की इच्छा होना जैसे अनुभव हुए । साथ ही वेबसार्इट पर तथा उसके अन्य उत्पादों की श्रृंखला में काले रंग का प्रयोग अत्यधिक किया गया था । वास्तव में काला रंग अत्यधिक तामसिक है और शक्ति प्रेषित करने हेतु यह रंग काली अनिष्ट शक्तियों के पसंद का है ।
६. संतद्वारा लिखित अध्यात्म विषयक ग्रंथ पढने के प्रभाव
६.१ संतद्वारा लिखित अध्यात्म विषयक ग्रंथ का सूक्ष्म परीक्षण
संत अपनी साधना के आधार पर वैश्विक मन तथा बुद्धि से दिव्य ज्ञान आत्मसात करने की क्षमता रखते हैं । वे इस ज्ञान को ग्रंथों के माध्यम से जनसाधारण तक पहुंचाते हैं । संतों का उन्हें प्राप्त ज्ञान पर ग्रंथ लिखने के पीछे प्रसिद्धि अथवा पैसा कमाने जैसा कोर्इ सांसारिक दृष्टिकोण नहीं रहता । साथ ही उनमें कर्त्तापन नहीं होता कि उनका ग्रंथ संसार को बदल देगा । वे ऐसा र्इश्वर की इच्छानुसार अपनी साधना के लिए तथा मानवता के प्रति अपेक्षारहित प्रेम के कारण करते हैं । जिससे जो व्यक्ति आध्यात्मिक प्रगति करना चाहते हैं, उनके पास अंतिम लक्ष्य र्इश्वरप्राप्ति करने हेतु साधना का दिशानिर्देश हो । संत जीवन के मूलभूत आध्यात्मिक उद्देश्यों के आधार पर ग्रंथ लिखते हैं, जो कि अपना प्रारब्ध भोग कर पूर्ण करना तथा र्इश्वरप्राप्ति है । यही उनका एकमात्र उद्देश्य होता है । विक्रय हुए ग्रंथों का धन लोगों की आध्यात्मिक प्रगति के लिए प्रयुक्त होता है । इस प्रकार वे र्इश्वर के उद्देश्य से पूर्णतः संलग्न होते हैं । उनके ग्रंथ कभी भी माया में कैसे सफल हो इसके संदर्भ में न होकर आसक्तियों से स्वयं को कैसे अलग करें, इस पर होता है ।
परिणामस्वरूप संतोंद्वारा लिखित ये ग्रंथ केवल साधको में ही प्रचलित होते हैं । वे कभी सर्वाधिक बिक्री होनेवाले ग्रंथ नहीं बनते ।
६.२ ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया तथा संतद्वारा अध्यात्म विषयक ग्रंथ लिखा जाना
जब संतद्वारा ग्रंथ लिखा जाता है तब उसमें लिखा सबकुछ उनकी स्वयं की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है । चूंकि वे अपनी व्यक्तिगत अनुभूति से लिखते हैं, अर्थात वे आनदं अथवा शांति की उस प्रगत स्थितितक गए – इसीलिए उन ग्रंथों में निर्गुण चैतन्य अत्यधिक मात्रा में विद्यमान होता है । इसलिए वे जब कोर्इ आध्यात्मिक शब्द का प्रयोग करते हैं, तब वह केवल बौद्धिक व्यायाम नहीं अपितु उनकेद्वारा अनुभव किया गया है । उन ग्रंथों से चैतन्य प्रेषित होता है और उनमें र्इश्वरीय संकल्प होता है और यही कारण है कि जब व्यक्ति उसे पढता है, तब उसे शांति की अनुभूति होती है । सच्चे संतों को जानकारी प्राप्त करने के लिए सूक्ष्म-जीवों के समान माध्यम की आवश्यकता नहीं होती ।
इस ज्ञान का लाभ पाठकों को आध्यात्मिक स्तर पर अपने जीवन के मूलभूत आध्यात्मिक उद्देश्य प्राप्ति के दृष्टिकोण से होता है । संतों द्वारा लिखित अथवा संकलित ग्रंथों को पढने से आध्यात्मिक उपचार भी होते हैं ।
७. सारांश
- अध्यात्म विषयक ग्रंथ सदैव अनिष्ट शक्ति का लक्ष्य बनते हैं, जब वे लिखे जाते हैं । लेखक के विचार सूक्ष्म-शक्तियों से प्रभावित होते ही हैं । यदि लेखक का साधना का आधार दृढ नहीं है तब वह अपनी विचार प्रक्रिया को अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित होने से नहीं रोक सकता । वास्तव में उसे पता ही नहीं चलेगा कि वह प्रभावित हो रहा है ।
- निम्न आध्यात्मिक स्तरवाले लेखक का अहं तथा प्रसिद्धि प्राप्ति की लालसा अनिष्ट शक्तियों (राक्षस, भूत, प्रेत इत्यादि) को उनके माध्यम से कार्य करने हेतु दीपस्तंभ का काम करती है ।
- र्इश्वर उन लेखकों की सहायता नहीं करते जो र्इश्वरप्राप्ति के हेतु से साधना नहीं करते । ना ही सूक्ष्म आयाम के आध्यात्मिक रूप से प्रगत जीव उनकी सहायता करते हैं क्योंकि वे र्इश्वरेच्छा के अनुसार कार्य करते हैं । इसलिए क्या शेष रह जाता है, तो आध्यात्मिक आयाम की अनिष्ट शक्तियां, जो निम्न आध्यात्मिक स्तरवाले लेखक के साथ क्रीडा दिवस जैसा होता है I
- दुर्भाग्य से पाठकों को यह आघात झेलना पडता है । निम्न आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्ति, ढोंगी गुरु अथवा संतों द्वारा लिखित ग्रंथ पाठकों को मुख्यतः सांसारिक आसक्तियों तथा माया में और अधिक उलझाने का कार्य करते हैं । इसके साथ ही वे काली शक्ति उत्सर्जित करते हैं, जो पाठको के लिए दूरगामी समस्याएं उत्पन्न करती है ।
- केवल संतों तथा गुरुद्वारा लिखे ग्रंथ ही हमारे आध्यात्मिक उन्नति में लाभदायक होते हैं । यही वे ग्रंथ हैं, जो सदियों से समय के साथ रहे । कृपया संदर्भ हेतु पढें लेख – ‘संत कौन हैं’ तथा ‘गुरु कौन हैं’ ।