विषय सूची
- १. मिट्टी एवं भूमि के मूल्यांकन की प्रस्तावना
- २. प्रकरण अध्ययन – ताजमहल के परिसर की मिट्टी एवं जल के नमूनों में पाई गई नकारात्मकता
- ३. अब तक का नापा गया आध्यात्मिक रूप से सबसे शुद्ध मिट्टी का नमूना
- ४. भारत से सकारात्मक प्रभामंडल से युक्त मिट्टी के इतने अधिक नमूनें कैसे /क्यों पाए गए ?
- ५. वातावरण के सूक्ष्म स्पंदनों को मानवजाति कैसे प्रभावित कर रही है
- ६. धार्मिक स्थलों की मिट्टी के नमूनों में इतने उच्च स्तर के नकारात्मक स्पंदन क्यों पाए गए ?
- ७. ऐसे अध्ययन के क्या मायने हैं ?
- ८. भूमि विकासक (भूमि विकसित करने वाले) एवं वास्तुकारों को सुझाव – इस जानकारी का उपयोग हम कैसे कर सकते हैं
- ९. निष्कर्ष
१. मिट्टी एवं भूमि के मूल्यांकन की प्रस्तावना
भाग १ में, SSRF एवं महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय ने परीक्षण कैसे संचालित/आयोजित किया तथा इस विषय में तथा मिट्टी के प्रत्येक प्रकार के कुछ मुख्य निष्कर्ष भी कैसे प्रस्तुत किए, यह हमने देखा । भाग २ में, लोगों का मिट्टी पर कैसे प्रभाव पडता है, इस विषय में विस्तृत जानकारी दी गई है । इसमें विश्व के कुछ सबसे बडे पर्यटन स्थल भी नकारात्मक स्पंदनों से वस्तुतः कैसे प्रभावित हैं, इसका विश्लेषण सम्मिलित है । इस विवरणी (रिपोर्ट) के समय नापे गए १६९ नमूनों में से, विश्व की आध्यात्मिक रूप से सबसे पवित्र/शुद्ध मिट्टी का पता चला है । अध्ययन अभी भी जारी है और विश्वभर से अभी कम से कम १००० और नमूनों का नाप लेने की योजना है ।
२. प्रकरण अध्ययन – ताजमहल के परिसर की मिट्टी एवं जल के नमूनों में पाई गई नकारात्मकता
धरोहर स्थलों की मिट्टी के नमूनों में, भारत के आगरा स्थित ताजमहल की मिट्टी एवं जल के नमूने, आध्यात्मिक स्तर पर सबसे प्रतिकूल रूपसे प्रभावित पाए गए क्योंकि उन सबमें अत्यधिक नकारात्मक प्रभामंडल पाया गया । ये निरीक्षण यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर (यूटीएस) उपकरण के उपयोग से नाप लिए गए । ताजमहल की मिट्टी एवं जल में न केवल इंफ्रारेड नकारात्मक प्रभामंडल पाया गया अपितु उनमें अल्ट्रावायलेट नकारात्मक प्रभामंडल भी पाया गया, जो कि कष्ट देने वाली तीव्र अनिष्ट (/अत्यधिक नकारात्मक) शक्ति के सक्रिय होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है । नीचे दी गई सारणी में ताजमहल के परिसर से प्राप्त मिट्टी एवं जल के नमूनों के पाठ्यांकों को प्रस्तुत किया गया है ।
सभी धरोहर स्थलों की मिट्टी के नमूनों की तुलना में, ताजमहल के मकबरे के प्रवेशद्वार की धूलसे सर्वाधिक इंफ्रारेड नकारात्मक प्रभामंडल पाया गया ।
विश्व भर के सभी जल के नमूनों की तुलना में, ताजमहल के एकदम निकट स्थित वजू टैंक के नमूने से सर्वाधिक इंफ्रारेड नकारात्मक ऊर्जा पाई गई ।
२.१ यमुना नदी और ताजमहल में जारी सूक्ष्म युद्ध
रोचक बात यह है कि ताजमहल के ठीक पीछे यमुना नदी प्रवाहित होती है । यद्यपि लोग इस नदी को अब दूषित (स्थूल स्तर पर) समझने लगे है, किंतु इसके यूटीएस पाठ्यांक बहुत ही सकारात्मक पाए गए । ताजमहल के निकट होने पर भी इसमें कोई नकारात्मक स्पंदन नहीं पाए गए । इस प्रकार यह तथ्य, भूमि और जल के संबंध में एक रोचक और महत्वपूर्ण खोज और अवधारणा को उजागर करता है । स्थूल/भौतिक रूप से प्रदूषित होने का अर्थ यह नहीं कि वह आध्यात्मिक रूप से भी प्रदूषित ही हो तथा इसी प्रकार दिखने में साफसुथरे स्थान का अर्थ यह नहीं कि वह आध्यात्मिक रूप से भी साफ/शुद्ध ही हो ।
एक अन्य रोचक अवलोकन यह था कि यमुना नदी से प्राप्त जल के नमूनों में से जिस नमूने को ताजमहल के निकट बहने वाले स्थान से लिया गया था, वह सर्वाधिक सकारात्मक पाया गया । यमुना नदी ताजमहल के १२ किमी ऊपर की ओर थोडी न्यून सकारात्मक पाई गई तथा ताजमहल के एकदम निकट उसमें अधिक सकारात्मकता पाई गई । आश्चर्य की बात है कि ताजमहल का विश्व के आध्यात्मिक रूप से सबसे प्रदूषित धरोहर स्थलों में से एक होने पर भी ऐसा देखने को मिला । ऐसा प्रतीत होता है कि यमुना नदी की सकारात्मकता ताज की नकारात्मकता से पूर्ण रूप से अप्रभावित है । क्या था इसका कारण ?
आध्यात्मिक शोध दल में ऐसे साधक हैं, जो व्यक्ति एवं वस्तुओं से प्रक्षेपित होने वाले स्पंदनों को वास्तविक रूप से देख सकते हैं । उन्हें चित्रित कर, वे आध्यात्मिक एक्स-रे के रूप में सेवा करते हैं तथा घटनाओं के घटित होने के मूल में वास्तविक सत्य क्या है, इसके बारे में स्पष्टता प्रदान करते हैं । नीचे दिया गया चित्र, यमुना नदी और ताजमहल के सूक्ष्म स्पंदन तथा उनमें होने वाली आपस की सूक्ष्म गतिविधि को दर्शाता है । (ताजमहल के निकट बहती यमुना नदी के उपर्युक्त हवाई चित्र को देखने पर सूक्ष्म चित्रकार को जो सूक्ष्म में दिखाई दिया, उसे उन्होंने चित्रित किया है ।)
आध्यात्मिक शोध से हमें यह पता चला कि यह ताजमहल की नकारात्मकता अथवा नकारात्मकता से प्रभावित अन्य क्षेत्रों से युद्ध करने का प्रकृति का एक दैवीय ढंग/तरीका है । इस सूक्ष्म चित्र से पता चलता है कि यमुना और ताज के बीच एक सूक्ष्म युद्ध चल रहा है तथा कैसे चैतन्य लगातार ताजमहल की ओर प्रवाहित हो रहा है । यह चैतन्य ताजमहल से वातावरण में उत्पन्न होने वाली नकारात्मकता को न्यून करता है और इस नकारात्मकता को बडे/अधिक क्षेत्र में फैलने से नियंत्रित करता है ।
आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से ताजमहल में इतनी नकारात्मकता क्यों है ?
वस्तुतः ताजमहल एक मकबरा है । आध्यात्मिक रूप से औसत व्यक्ति के मकबरे से भी ठीक वैसे ही नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं जैसे कि किसी कब्रिस्तान से होते हैं । किंतु, ताजमहल में पर्यटकों एवं आगंतुकों का बहुत अधिक मात्रा में आना जाना लगा रहने के कारण, यह अनिष्ट शक्तियों के लिए लोगों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने का एक उपयुक्त स्थल बन चुका है । इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए, अनिष्ट शक्तियों ने सूक्ष्म में पूरे परिसर को नियंत्रण में ले लिया है तथा इसमें और अधिक नकारात्मकता का संचार किया (नकारात्मकता से प्रभावित किया) हैं । अतः, आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से ताजमहल का पूरा परिसर बुरी तरह (प्रतिकूल रूपसे) प्रभावित हो चूका है और इसलिए इस धरोहर स्थल पर आने वाला प्रत्येक पर्यटक अनजाने में ही प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो जाता है ।
अब तक, ताजमहल के अतिरिक्त, कुछ अन्य धरोहर स्थलों में भी इंफ्रारेड नकारात्मक ऊर्जा और अल्ट्रावायलेट नकारात्मक ऊर्जा दोनों ही पाई गई । उनके स्थलों के नाम हैं
- हरमिटेज संग्रहालय, सेंट पीटर्सबर्ग, रूस
- शॉनब्रुनन पैलेस, वियना, ऑस्ट्रिया
- स्टेफन्स-डोम कैथेड्रल, वियना
- कैथरीन पैलेस, सेंट पीटर्सबर्ग, रूस
- म्यूजियम/संग्रहालय कोन्फेरेंसि एशिया अफ्रिका, बांडुंग, इंडोनेशिया
- हुमायूं का मकबरा, नई देहली, भारत
- हॉफबर्ग इंपीरियल पैलेस, वियना, ऑस्ट्रिया
- अगुआडा किला, गोवा, भारत
- बायब्लोस कैसल, लेबनान
अन्य धरोहर स्थल विशेष रूप से जो हिंसा (हिंसक घटनाओं) से संबंधित थे, जैसे कि रोम में कोलोसियम अथवा संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित सैन फ्रांसिस्को खाडी का अलकाट्राज द्वीप, इनमें भी उच्च स्तर के नकारात्मक स्पंदन होने की संभावना है ।
३. अब तक का नापा गया आध्यात्मिक रूप से सबसे शुद्ध मिट्टी का नमूना
भारत के गोवा स्थित अध्यात्म शोध केंद्र एवं आश्रम के विभिन्न स्थानों की मिट्टी और जल के नमूनों से यूटीएस उपकरण द्वारा शतप्रतिशत सकारात्मक सूक्ष्म स्पंदन पाए गए । इनमें न केवल सकारात्मक स्पंदन पाए गए, अपितु उल्लेखनीय तथ्य यह है कि सकारात्मक प्रभामंडल दर्शाने वाले प्रमुख १० मिट्टी के नमूनों में से ७ नमूनें भारत के गोवा स्थित अध्यात्म शोध केंद्र एवं आश्रम के थे । नीचे दी गई सारणी में, आश्रम के नमूनों को एक बडे लाल बिंदु से चिह्नित किया गया है ।
अध्यात्म शोध केंद्र की मिट्टी के नमूनों में, इसके परिसर के आसपास के क्षेत्रों के नमूनों की तुलना में सकारात्मकता का स्तर अधिक पाया गया । मिट्टी का एक नमूना, जिसे आश्रम परिसर के ठीक बाहर से एकत्रित किया गया था, उसमें ५० प्रतिशत कम सकारात्मकता पाई गई । आश्रम के भीतर के मिट्टी एवं जल के नमूनों के पाठ्यांकों से यह ज्ञात होता है कि आश्रम, तीव्र सकारात्मक स्पंदनों के एक बडे बुलबुले में स्थित है, जो अपने परिसर के भीतर की प्रत्येक वस्तु एवं व्यक्ति को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है ।
यह चित्र (नीचे देखें) परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी के कक्ष की बालकनी में रखे गमले का है, जिसकी मिट्टी का नमूना लिया गया तथा इसमें ६.१२ मीटर उच्चतम सकारात्मक प्रभामंडल तथा ९.३० मीटर कुल प्रभामंडल पाया गया । परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी स्वयं इस कृष्णा तुलसी के पौधे को प्रतिदिन जल डालते हैं ।
नीचे दिया गया चित्र दर्शाता है कि उपर्युक्त पौधा एवं मिट्टी सूक्ष्म से कैसे दिखते हैं । सूक्ष्म चित्रकार ने देखा कि पौधे में सकारात्मक शक्ति का प्रवाह आकर्षित हो रहा है तथा पौधे एवं मिट्टी से यह वातावरण में प्रक्षेपित भी हो रहा है ।
४. भारत से सकारात्मक प्रभामंडल से युक्त मिट्टी के इतने अधिक नमूनें कैसे /क्यों पाए गए ?
भारत के ६८ नमूनों में से, ४५ प्रतिशत नमूनों में सकारात्मक प्रभामंडल पाया गया । सकारात्मक प्रभामंडल प्रक्षेपित करने वाले मिट्टी के नमूनों का इतनी मात्रा में केवल एक देश भारत में ही होना, इस विषय में ‘ऐसा क्यों’, यह प्रश्न कोई भी पूछ सकता है । इसके अनेक कारण हैं, कुछ इस प्रकार है ।
- भारत में आध्यात्मिक सकारात्मकता की मात्रा अधिकतम है क्योंकि अध्यात्म यहां की संस्कृति के प्रत्येक पहलू में अंतर्निहित (समाया हुआ) है ।
- भारत की मूल संस्कृति, जीवन के सभी पहलुओं में सकारात्मक स्पंदनों की वृद्धि करने एवं नकारात्मक स्पंदनों को न्यून करने पर आधारित है । यद्यपि आधुनिक प्रचलन से इसे कुछ मात्रा में क्षति पहुंची है, किंतु फिर भी कुल मिलाकर यह भारतीयों में व्यापकरूप से व्याप्त है ।
- विश्वभर में यहां संत अधिक संख्या में हैं । वस्तुतः, संयुक्त रूप से अन्य सभी देशों की तुलना में भारत में अधिक संत हैं ।
- संस्कृत में मंत्रों के उच्चारण के साथ यज्ञों के अनुष्ठान होने से वातावरण पर अत्यधिक सकारात्मक प्रभाव पडता है तथा यह प्रभाव अनेक माह तथा वर्षों तक बना रहता है ।
- भूमि पर निर्माणकार्य करने से पहले और गृहप्रवेश करने से पहले पूजाएं (धार्मिक विधियां) की जाती है । स्थान एवं शहर/नगर के देवता (ग्रामदेवता) की प्रायः विधिवत पूजा की जाती है, जिससे उन देवताओं का दैवीय/ईश्वरीय तत्त्व उस क्षेत्र में सक्रिय होता है ।
- वास्तुकला की प्राचीन भारतीय प्रणाली वास्तुशास्त्र, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘वास्तुकला का विज्ञान’ है, उसका पालन किया जाता है । वास्तुशास्त्र अध्यात्म पर आधारित है तथा परिसर में सकारात्मक सूक्ष्म स्पंदनों में वृद्धि होने हेतु इसकी निर्मिती हुई है । वास्तुशास्त्र में प्रकृति, घर के विविध भागों के कार्य, दिशा तथा यंत्रशास्त्र का विचार किया गया है ।
- विश्व की तुलना में भारत में मांसाहार करनेवलों की संख्या अल्प है । यहां की लगभग ३०-३५ प्रतिशत जनसंख्या शाकाहारी है । व्यापारीक स्तर के पशुवधगृहों से उच्च स्तर की आध्यत्मिक अशुद्धता उत्पन्न होती है ।
- भारत में मृत्योपरांत अधिकांश लोगों (लगभग ७५ प्रतिशत) पर दाह (अग्नि) संस्कार किया जाता है, इसलिए शेष विश्व की तुलना में शमशान से प्रति व्यक्ति होनेवाला आध्यात्मिक प्रदूषण अल्पतम है ।
५. वातावरण के सूक्ष्म स्पंदनों को मानवजाति कैसे प्रभावित कर रही है
यह चित्र मानव वातावरण को कैसे प्रभावित कर रहा है, इसका एक सूक्ष्म चित्र है तथा यह दर्शाता है कि कैसे प्रत्येक व्यक्ति के विचार और दृष्टिकोण, उसके भौतिकतावादी व्यवहार/आचरण, साधना के अभाव, स्वभावदोष और अहं के कारण, वातावरण में सूक्ष्म नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करता है तथा यह स्पंदन भूमि एवं जल, वनस्पतियों और जीवों द्वारा अवशोषित हो जाते हैं । इसके साथ ही, अनिष्ट शक्तियां मानवता की इन कमियों का लाभ उठाकर वातावरण में व्यापक रूप से नकारात्मकता को बढा देती है । एक और पहलू यह है कि अधिकांश लोग उन सामाजिक उथल-पुथल और युद्धों की पीडाओं/कष्टों को भूल गए होंगे, जिनके कारण सदियों से लाखों लोगों की मृत्यु हुई थी, किंतु मिट्टी वह घटनाएं नहीं भूली तथा इसने उन प्रतिकूल घटनाओं की स्मृतियों को नकारात्मक स्पंदनों के रूप में संजोएं रखा ।
६. धार्मिक स्थलों की मिट्टी के नमूनों में इतने उच्च स्तर के नकारात्मक स्पंदन क्यों पाए गए ?
वैसे, इसका संक्षिप्त उत्तर यह है कि सूक्ष्म जगत से अनिष्ट शक्तियां ऐसे स्थलों पर आक्रमण करती है तथा पुजारियों एवं भक्तों को दोनों को ही प्रभावित करती है । इस कारण उनकी साधना करने की क्षमता न्यून हो जाती है और फलस्वरूप वातावरण की आध्यत्मिक सकारात्मकता भी न्यून होती है । जब तक वहां संतों की उपस्थिति और भक्तों के लिए उनका मार्गदर्शन नहीं होता, तब तक वे अपनी साधना में प्रगति नहीं कर पाते । जो धार्मिक स्थल प्रभावित नहीं थे, वे ऐसे स्थान थे जहां योग्य साधना की जा रही थी, जहां ईश्वरीय तत्त्व सक्रिय था अथवा जहां किसी संत का निवास था ।
७. ऐसे अध्ययन के क्या मायने हैं ?
- सभी के लिए, यह इस विषय पर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है कि भूमि का मूल्यांकन कैसे किया जाना चाहिए तथा अचल/स्थावर संपत्ति का वास्तविक मूल्य (महत्त्व) क्या होता है ।
- वातावरण पर मानवता का प्रत्यक्ष प्रभाव पडता है तथा यह शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तरों पर होता है । इसका पाशन/लूपिंग (पुनः स्वयं पर पडना) प्रभाव होता है अर्थात लोग जिस स्थान की मिट्टी एवं जल को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते है, उस स्थान की मिट्टी एवं जल से नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होने लगते हैं तथा वही स्पंदन प्रत्यावर्ती बाण (बूमरैंग) के समान पुनः उन्हीं लोगों को प्रभावित करते हैं । इससे लोगों की मानसिकता पर प्रभाव पडता है तथा आध्यात्मिक आयाम से अनिष्ट शक्तियां इसका भरपूर लाभ उठाती है । परिणामस्वरूप, एक नकारात्मक भंवर बन जाता है, जहां लोग किसी भी प्रकार की साधना करना छोड देते है अथवा उससे दूर हो जाते है तथा भौतिकवाद एवं जीवन के स्वार्थी दृष्टिकोण को अपना लेते है ।
- नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करने वाली भूमि पर रहने वाले उन परिवारों पर भी इसका प्रभाव पडता है , जिससे बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जैसे कि आपसी कलह, निराशा/अवसाद, व्यसन लगना इत्यादि । यह समाज में विभिन्न दुष्प्रवृत्तियों को भी जन्म देता है, फलस्वरूप जीवन की समग्र गुणवत्ता न्यून हो जाती है ।
- प्रमुख रूप से मानवों एवं (सहायक रूप में) अनिष्ट शक्तियों के कारण वातावरण की नकारात्मकता में जो निरंतर वृद्धि हुई है, वह पृथ्वी, आप, अग्नि, वायु और आकाश इन मूलभूत पंचमहाभूतों के संतुलन को निरंतर बिगाडती जाती है । परिणामस्वरुप विचित्र रूप के मौसम बन रहे है तथा विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हुई है । जब वातावरण में सकारात्मकता होती है तब मूल पंचमहाभूत स्थिर/संतुलित रहते हैं तथा मौसम की स्थिति नियंत्रित और पूर्वानुमान में होती है ।
८. भूमि विकासक (भूमि विकसित करने वाले) एवं वास्तुकारों को सुझाव – इस जानकारी का उपयोग हम कैसे कर सकते हैं
कुछ ऐसे उपाय हैं जो भूमि विकासक वातावरण में आध्यात्मिक सकारात्मकता की वृद्धि होने हेतु कर सकते हैं ।
- सर्वप्रथम भूमि पर कुछ भी विकास/निर्माण करने से पूर्व भूमि की शुद्धि के लिए अनुष्ठान करें ।
- नगर एवं स्थान देवता को नमस्कार/पूजा करें ।
- वास्तुशास्त्र का पालन करें, जो कि वास्तुकला का अध्यात्मशास्त्र है । यह विकसित हो रही (निर्माणाधीन) भूमि के तथा जिस प्रकार इमारतों, भवनों तथा फ्लैट को रूपांकित और निर्मित किया जाता है, इन दोनों के संदर्भ में है ।
- कब्रिस्तान के निकट भवन निर्माण न करें क्योंकि यह परिसर के निवासियों को उस पूरी अवधि तक नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा जब तक वे वहां रहेंगे ।
९. निष्कर्ष
- यदि कोई भूमि का मूल्यांकन करते समय इसके आध्यात्मिक एवं सूक्ष्म पहलुओं पर ध्यान नहीं देता है, तो इसका अर्थ है कि एक उचित मूल्यांकन हेतु ध्यान रखी जाने वाली आवश्यक बातों का ७० प्रतिशत से अधिक भाग छूट गया है ।
- स्थूल/भौतिक स्तर पर साफसुथरा और व्यवस्थित दिखने वाला स्थान आवश्यक नहीं कि आध्यात्मिक रूप से भी वह अच्छा ही होगा । मिट्टी के अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि विश्व के कुछ सबसे समृद्ध/संपन्न स्थानों से वस्तुतः सर्वाधिक नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं ।
- वास्तव में, किसी भी भूमि एवं जलमार्गों का उपयोग किस प्रकार किया जाता है तथा किस उद्देश्य से किया जाता है, इस बात पर इनसे प्रक्षेपित होने वाले स्पंदन निर्भर होते हैं । तदनुसार, आध्यात्मिक स्पंदनों के संदर्भ में वे अच्छे (स्वर्गसमान) अथवा बुरे (नरकसमान) हो सकते हैं । भौतिक दृष्टि से वह भूमि कितनी भी मूल्यवान क्यों न हों, इससे इसका कोई संबंध नहीं है । उदाहरण के लिए, विश्व की अचल-संपत्ति के मूल्यों से तुलना करें, तो जिस भूमि पर अध्यात्म शोध केंद्र एवं आश्रम निर्मित है, उसका मूल्य तो बहुत ही अल्प है (दान में मिली भूमि है) । किंतु जब आध्यात्मिक सकारात्मकता की बात आती है, तो यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर उपकरण से प्राप्त हुए पाठ्यांकों ने यह दर्शाया है कि आध्यात्मिक स्पंदनों के संदर्भ में, आश्रम, विश्व की अब तक की सबसे मूल्यवान अचल संपत्ति है । यद्यपि अध्ययन अभी भी जारी है, आश्रम की मिट्टी के नमूनों ने जो कीर्तिमान स्थापित किया है, उस तक पहुंचना कठिन होगा ।
- वर्तमान में विश्व की मिट्टी एवं जलमार्ग आध्यात्मिक दृष्टि से प्रदूषित हैं तथा इसका प्रतिकूल प्रभाव मानवता पर हुआ है । लोग व्यक्तिगत रूप से मानवता के तौरतरीके/व्यवहार नहीं बदल सकते, किंतु अध्यात्म के वैश्विक सिद्धांतों के अनुसार साधना करने से, व्यक्ति के चारों ओर एक सुरक्षा कवच निर्माण होने में सहायता होती है तथा वह मानसिक स्थिरता एवं जीवन की बेहतर/श्रेष्ठतर गुणवत्ता को अनुभव करने में सक्षम हो पाता है । इस प्रकार, व्यक्ति अपनी साधना से कुछ आध्यात्मिक सकारात्मकता को वातावरण में जोडकर सकारात्मक रूप से योगदान दे सकता है ।