मैं वर्ष १९९८ से SSRF के मार्गदर्शन में साधना कर रहा हूं । वर्ष २००१ में मुझे बारंबार मुंह के छाले होने लगे । वे प्रत्येक पंद्रह दिनों के उपरांत मेरे मुंह रिक्तिका के अलग-अलग स्थानों पर हो जाते । मैंने अनेक चिकित्सकों से परामर्श लिया । उनके द्वारा बी-कॉम्प्लेक्स तथा डोलोजेल (छालों पर लगाया जानेवाला एक स्थानीय एनेस्थेटिक द्रव) उपचार हेतु दिया जाता । मैंने होमियोपेथी चिकित्सक से भी परामर्श लिया; किंतु उसका भी कोर्इ लाभ नहीं हुआ । पांच वर्षों तक मैं मुंह के छालों से पीडित रहा ।
एक दिन मैंने अपनी समस्या को SSRF के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के एक साधक को बताया । उन्होंने मुझे बताया कि यह पितृदोष के कारण है । उस समय मैं दत्त भगवान का नामजप तीन माला (अर्थात ३ X १०८ = ३२४) करता था । उन्होंने मुझे इसे बढाकर ९ माला प्रतिदिन करने को कहा । बढे नामजप के लाभ को मैं शीघ्र ही अनुभव करने लगा । छालों की गंभीरता तथा उनके होने की बारंबारता भी घट गर्इ । लगभग दो माह के उपरांत वे पुनः नहीं हुए |
पूर्व की एक घटना जो मुझे यह कष्ट आध्यात्मिक होने का संकेत दे सकती थी, वह यह थी कि छाले प्राय: पूर्णिमा अथवा अमावस्या के दिन के आसपास होते थे |
संपादक की टिप्पणी :
यद्यपि श्री मराठे SSRF के मार्गदर्शन में साधना आरंभ करने के समय से भगवान दत्त का नामजप प्रतिदिन ३ माला करते थे | परंतु जप की इतनी संख्या छालों के कष्ट का सामना करने में पर्याप्त नहीं थी | जब आवश्यक मात्रा में नामजप में वृद्धि की गई तभी कष्ट का पूर्णतः निवारण हुआ |