किसी निकट संबंधी की जैसे किसी के पिता अथवा माता का अकस्मात निधन हो जाने पर, विवाह की योजना के संदर्भ में होनेवाली दुविधा के निराकरण हेतु निम्नलिखित आध्यात्मिक दृष्टिकोण ध्यान में रखे जा सकते हैं :
- किसी निकट संबंधी की मृत्यु होने पर न्यूनतम एक वर्ष तक विवाह समारोह की योजना न बनाना उचित होगा; क्योंकि किसी निकट संबंधी की मृत्यु होने के उपरांत के समय को अशुभ माना जाता है । इसके निम्न कारण हैं :
- मृत्यु के समय तथा मृत्यु के उपरांत तमोगुण में वृद्धि हो जाती है ।
- जिनकी मृत्यु हुई है, उनकी अपूर्ण इच्छाओं के कारण उनकी आसक्तियों से संबंधित शक्तिशाली स्पंदन वे जहां रहा करते थे, उसी घर में रहते हैं ।
- पैतृक घर मृत व्यक्ति के सूक्ष्म देह से प्रभावित होता है । यदि होनेवाला दूल्हा अन्य देश में भी रहता हो, तब भी मृत व्यक्ति के साथ कार्मिक संबंध होने के कारण वह तथा उसका घर प्रभावित होगा ।
- आध्यात्मिक शोध यह दर्शाता है कि ऐसे लोग जिनसे हमारा अत्यधिक भावुक संबंध है जैसे हमारे घनिष्ठ मित्र, वे हमारे निकट संबंधियों की परिभाषा में नहीं आते ।
- ऐसे समय में, यदि विवाह एक वर्ष के भीतर हुआ तो नवविवाहित दंपति को मृत पूर्वजों जो कि परिवार में ही अटके हुए हैं, उनसे कष्ट हो सकता है । इसके अतिरिक्त, मृत पूर्वज का सूक्ष्म-देह यदि किसी आध्यात्मिक कष्ट जैसे भूतावेश से पीडित हो, तो विवाह में सम्मिलित होनेवाले सभी लोगों को आध्यात्मिक कष्ट हो सकता है ।
- इसलिए, निकट के संबंधियों की मृत्यु होने के एक वर्षतक विवाह अथवा अन्य किसी शुभ कार्यक्रम का आयोजन न करना ही उचित होगा ।
- निकट संबंधियों की मृत्यु के हानिकारक प्रभावों को अल्प करने के लिए नियमित साधना करना ही श्रेयस्कर है ।