अंग दान – एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण

इस लेख को अच्छे से समझने के लिए, आप निम्नलिखित लेखों से परिचित हो जाएं :

१. अंग दान – परिचय

अंग दान यह एक सामान्य प्रथा बन गई है और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा व्यापक रूप से इसे प्रोत्साहित किया जा रहा है । अंग प्रत्यारोपण शल्य चिकित्सा की आरंभिक तथा विशेष रूप से वर्ष १९६० और उसके पश्चात की सफलताओं के कारण दुनिया भर में हो रहे प्रत्यारोपण की संख्या में शीघ्रता से वृद्धि हुई है । नेशनल ऑर्गन डोनर रजिस्ट्री (राष्ट्रीय अंग दाता रजिस्ट्री) उन लोगों की सूची का संपोषित करता है जिन्होंने मृत्यु पश्चात (मृत्यु की स्थिति में) अपने अंग दान करने के लिए सहमति दी है । आज अनेक देशों ने अंग दान के इस प्रपत्र (फॉर्म) पर ऑप्ट आउट (बाहर होने की) नीतियों को अंगीकृत कर लिया है । I

२. अंग दान के आध्यात्मिक प्रभाव

हमारे प्रत्येक कर्म में लेन-देन निर्माण करने की क्षमता होती है । कर्म जो दूसरों को सुख दे वह पुण्य है और फलस्वरूप हमें सुख देती है तथा जो कर्म दूसरों को दु:ख देती हैं, उसके फलस्वरूप हमें भी दु:ख ही मिलता है ।

अंग दान करने से किसी का जीवन बचने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि उससे हमें पुण्य प्राप्त होगा । परंतु सदैव यही हो, यह आवश्यक नहीं है । हमारे आध्यात्मिक शोध द्वारा यह देखा गया है कि जब हम अंग दान करते हैं, तब हम लेन-देन निर्माण करते हैं और अंग प्राप्त होनेवाले व्यक्ति के कर्मों द्वारा संचित पाप तथा पुण्य में सहभागी होते हैं । इसका अर्थ यह है कि दुष्ट व्यक्ति को अंग दान करने के फलस्वरूप हम पाप अर्जित कर सकते हैं ।

यदि परोपकार की भावना से हम किसी अंग को दान करने की इच्छा रखते हैं तब इस बात को समझना महत्वपूर्ण है कि उस कर्म द्वारा हम जो पुण्य संचित करते हैं, वह हमें जन्म और मृत्यु के चक्र में उलझा सकता है । आध्यात्मिक उन्नति के परिप्रेक्ष्य से, पुण्य अर्जित करने के लिए सीमाएं हैं । यह हमारे लेख पुण्य और पाप में विस्तार से स्पष्ट किया गया है ।

इसके अतिरिक्त, वर्तमान समय में, ३० प्रतिशत समाज अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट है, इसलिए इसकी भी संभावना है कि हम किसी ऐसे व्यक्ति को अंग दान कर सकते हैं, जो आविष्ट है । ऐसी स्थिति में हमें भी कष्ट हो सकता है और अनिष्ट शक्तियों (असुर, पिशाच, भूत, आदि) से आविष्ट होने के लिए हम अधिक संवेदनशील बन सकते हैं । इस परिप्रेक्ष्य से यह बुद्धिमानी होगी कि हम अंग दान न करें । इस परिदृश्य में, परोपकार के हमारे इस कार्य का भी वास्तव में विश्व को आध्यात्मिक दृष्टि से स्वस्थ स्थान बनाने की दिशा में कोई योगदान नहीं होगा ।

३. मृतक व्यक्ति से अंग प्राप्त होना

कई बार मृतक से अंगों की प्राप्ति होती है ।

मृत्यु के उपरांत हमारा क्या होता हैं यह समझना, एक मृतक व्यक्ति से प्राप्त अंगों के आध्यात्मिक निहितार्थ को समझने की प्रधान कुंजी हैं । मृत्यु के उपरांत, सूक्ष्म-शरीर की भौतिक शरीर तथा संपत्ति के प्रति आसक्ति तत्काल न्यून नहीं होती । इसी कारण सूक्ष्म-शरीर एक वर्ष अथवा अधिक समय तक उसके दान किए अंगों सहित, स्थूल-शरीर और उसकी पूर्व संपत्ति के आसपास मंडरा सकता है ।

जब सूक्ष्म-शरीर अंगों के समीप आता है, तब दो घटनाएं हो सकती हैं । पहली, मृत्यु उपरांत अपनी आगे की यात्रा में न बढने के कारण उस पर अनिष्ट शक्तियां सहजता से आक्रमण कर सकती हैं । दूसरी, सूक्ष्म-शरीर को प्रभावित करनेवाली कोई भी काली शक्ति अंगों को प्राप्त करनेवाले व्यक्ति में संचारित हो सकती है । यह व्यक्ति के चारों ओर काला आवरण बढा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप उस व्यक्ति के भौतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक कष्टों में वृद्धि हो सकती है ।

इसके साथ-साथ, मृत्यु के समय अंग नकारात्मक स्पंदनों से आवेशित हो जाता है; क्योंकि सामान्य व्यक्ति की मृत्यु मुख्यत: आध्यात्मिक रूप से नकारात्मक स्पंदनों से आवेशित होती है । ऐसे नकारात्मक स्पंदनों से आवेशित अंगों को प्राप्त करनेवाले व्यक्ति को उनके स्पंदनों को आत्मसात करने के लिए बाध्य करती है और उसके चारों ओर काले आवरण में भी वृद्धि करती है ।

४. दोषपूर्ण अंग दान कानून का उदाहरण

सिंगापुर के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मानव अंग प्रत्यारोपण का अधिनियम बनाया है ।

 “मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (HOTA) यह अनुमति देता है कि किसी भी कारण से मृत्यु होने की स्थिति में किडनी (गुर्दे), हृदय, लीवर (यकृत) तथा कॉर्निया इन्हें प्रत्यारोपण के उद्देश्य के लिए निकाला जा सकता है । १ नवंबर २००९ से,  HOTA में समस्त सिंगापुर के २१ और उससे अधिक आयु के नागरिक तथा स्थायी निवासी जो मानसिक रूप से असंतुलित नहीं हैं और यदि उन्होंने बाहर रहने अर्थात अंगदान न करने का विकल्प न चुना हो, उनका समावेश किया गया है । ६० वर्ष की अधिकतम आयु सीमा हटा दी गई है ।

जो कोई HOTA से बाहर रहता है यदि उसे भविष्य में अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, तब वह राष्ट्रीय प्रतीक्षा सूची में अंग प्राप्त करने के लिए निचली प्राथमिकता प्राप्त करता हैं । यह उस विशिष्ट अंग के विषय में होगा जिसे दान करने से वह अधिनियम के बाहर है ।

HOTAHOTA के अंतर्गत प्राप्त अंगों का प्रयोजन संबंधित अंग प्रत्यारोपण प्रतीक्षा सूची में होनेवाले रोगियों के सामान्य समूह के लिए दान करना  हैं । इसलिए HOTA के अंतर्गत प्राप्त अंगों हेतु ना तो किसी विशिष्ठ प्राप्तकर्ता का नाम लेकर बताया जा सकता है और ना ही किसी विशिष्ठ व्यक्ति का नाम प्राप्तकर्ताओं की सूची से बाहर किया जा सकता है । अंग प्राप्तकर्ता को दानकर्ता की जानकारी देना भी संभव नहीं हैं ।

HOTA केवल अस्पतालों में हुई उन मृत्युओं पर लागू होता है जो विशिष्ट प्रतिबंधों (शर्तों) को पूर्ण करते हैं (नीचें देखें) ।

केवल निम्नलिखित प्रतिबंधों को पूर्ण करने की परिस्थिति में ही अंगों की वसूली की जाएगी :

  • पहला, दानकर्ता की आयु २१ वर्ष से अधिक होनी चाहिए, वह स्वस्थ मन का होना चाहिए और आपत्तिकर्ता नहीं हो ।
  • दूसरा, अंग प्रत्यारोपण के लिए उपयुक्त हो ।
  • तीसरा, प्राप्त अंग (अंगों) से लाभान्वित होनेवाला उचित प्राप्तकर्ता (प्राप्तकर्ताएं) उपलब्ध हों ।

उपरोक्त विवरण HOTA से संबंधित नीचे दी गई सामान्यत: पूछे जाने वाले प्रश्न इस लिंक पर उपलब्ध हैं ।”’’

धर्म के सिद्धांत के साथ-साथ कर्म के सिद्धांत के अनुसार, इस प्रकार लोगों को अंग दान करने के लिए बाध्य करना तथा यहां तक कि उन्हें इस विकल्प का चयन न करनेवाले को दंडित करना सर्वथा अनुचित है । इस प्रकार के व्यवहार के माध्यम से पाप संचित होता हैं । मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (HOTA) में निर्णय लेनेवालों ने ५० प्रतिशत पाप (० से १०० प्रतिशत माप के अनुसार, जहां १०० प्रतिशत पाप एक व्यक्ति की हत्या के समान होता है) अर्जित करते हैं क्योंकि यह निर्णय अनेक लोगों को प्रभावित करता है ।

इस प्रकार के नियमों पर निर्णय लेनेवालों को केवल भौतिक अथवा मानसिक स्तर पर ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक स्तर पर भी नए नियमों को निश्चित करना सीखना चाहिए । तभी उनके निर्णय योग्य होंगे और समस्त लोगों के लिए तथा उनके लिए भी लाभदायक होंगे । – परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी

आध्यात्मिक आयाम को ध्यान में रखकर निर्णय लेने में सक्षम होने के लिए, व्यक्ति को अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करनी चाहिए ।

५. सारांश में – अंग दान

अंत में, हम देख सकते हैं कि अंग दान के अवांछित आध्यात्मिक प्रभाव, उनके सकारात्मक परिणामों पर अधिक भारी है । सामान्यत:, साधारण व्यक्ति के लिए अंग दान न करना ही श्रेष्ठ होगा । कुछ स्थितियों जैसे कि निकट संबंधी के साथ, व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्य के प्रति अपना कर्तव्य बाध्य कर सकता है । अन्यथा, हम इसे टाल सकते हैं ।

आध्यात्मिक आयाम, अंग दान सहित हमारे जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है । आध्यात्मिक आयाम को ध्यान में रखना यह सुनिश्चित करने का सर्वोत्तम मार्ग है कि हम आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से योग्य निर्णय लेते हैं और चिरंतन सुख अथवा आनंद का अनुभव करते हैं । योग्य साधना हमारी छठवीं इंद्रिय को जागृत करती है, जो हमें अंतर्मन से समझने में सहायता करती है कि आध्यात्मिक दृष्टि से क्या लाभदायक हैं और क्या नहीं ।