कोरोना वायरस (विषाणु) मंत्रजप द्वारा आध्यात्मिक सुरक्षा

०३ जनवरी २०२२ को अद्यावत (अपडेटेड)

डिस्क्लेमर : आरंभ में, SSRF का सभी पाठकों को परामर्श है कि अपने क्षेत्र में कोरोना विषाणु के प्रकोप (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिए सभी स्थानीय और राष्ट्रीय निर्देशों का पालन करें। SSRF आपके क्षेत्र में चिकित्सा अधिकारियों द्वारा सलाह के अनुसार पारंपरिक चिकित्सा उपचार जारी रखने सुझाव देती है । इस लेख में दिए गए आध्यात्मिक उपचार पारंपरिक चिकित्सा उपचार अथवा  कोरोना विषाणु के प्रसार को रोकने के लिए किसी भी निवारक उपायों का विकल्प नहीं हैं। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने विवेक से कोई भी आध्यात्मिक उपचार करें ।

विषय सूची

१. कोरोना विषाणु के संदर्भ में आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य की प्रस्तावना

गत कुछ सप्ताह से COVID-19, जिसे कोरोना महामारी भी कहा जाता है, के संदर्भ में हमसे अनगिनत प्रश्न पूछे गए, इसलिए हमने एक साथ पूर्ण जानकारी को लाइव प्रेजेंटेशन सहित यहां प्रस्तुत किया है । हमारे वेबसाइट के लाइव चैट (LiveChat) पर हमें प्रतिदिन सैकडों प्रश्न इस महामारी के बारे में पूछे जा रहे हैं ।

पूरे विश्व में सभी चिंतित तथा तनावग्रस्त हैं ।

यह स्वाभाविक भी है और अपेक्षित भी । हम एक अभूतपूर्व संकटकाल का सामना कर रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता ही एक पूर्ण रूप से अनजान क्षेत्र के संदर्भ में निर्णय ले रही है ।

आपमें से जो SSRF वेबसाइट के नियमित पाठक हैं, आपको संभवतः ज्ञात होगा कि वर्ष २०२० में पूरे विश्व में प्रारंभ हीहोने वाली यह विश्वव्यापी उथल-पुथल में कुछ ऐसी है कि जिस पर हम वर्ष २००७ से, जब हमने जलवायु परिवर्तन और तृतीय विश्व युद्ध पर पहली बार लेख प्रकाशित किया था, तब से इस विषय/संदर्भ में अपने दर्शकों/पाठकों से चर्चा कर रहे हैं तथा उन्हें सावधान कर रहे हैं ।

खैर अब यह संकट काल अंततः हमारे ऊपर आ गया है और कोरोना विषाणु के रूप में यह महामारी  (वर्तमान समय में इतना बड़ा और विनाशकारी है) वर्ष २०२० से २०२५ के बीच में हमारे आने वाले कठिन समय  का केवल एक अंश मात्र बनने जा रही है ।

अब तक सरकारों और चिकित्सा जगत ने कोरोना विषाणु की महामारी के कारणों और इसे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्तर से रोकने के तरीकों पर ध्यान दिया है । जबकि, जब हम इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखते हैं – तो सब कुछ बदल जाता है ।

२. इस कोरोनाविषाणु का जन्म कैसे और क्यों हुआ ?

आध्यात्मिक आयाम में व्याप्त बलशाली अनिष्ट शक्तियां इस विषाणु  का मुख्य उत्प्रेरक है ।

(आध्यात्मिक आयाम में अनिष्ट शक्तियां और सकारात्मक शक्तियां दोनों होती है । सकारात्मक शक्तियां हमारी सहायता करने का करती हैं और अनिष्ट शक्तियां हमें हानि पहुंचाने का प्रयास करती हैं ।)

कोरोना वायरस (विषाणु) – मंत्रजप द्वारा आध्यात्मिक सुरक्षा

जो अनिष्ट शक्तियां इस प्रकार की महामारी (जिसका परिणाम पूरे विश्व में फैला है) को उत्पन्न करने में सक्षम होती हैं, वे उच्च स्तर की होती हैं, उन्हें सूक्ष्म मांत्रिक

कहते हैं । ऐसी स्थिति में दो में से सामान्यतः एक चीज/घटना होती है । या तो अनिष्ट शक्तियां ऐसे विषाणुओं का निर्माण खरोंच से घनीकरण द्वारा करती है तथा उसे छोड देती है अथवा वे मनुष्यों के अनुचित व्यवहार अथवा अनुचित जीवन शैली तथा अनुचित कृतियों को माध्यम बनाकर इस विषाणु का निर्माण कर उसे फैलाती है । ये दोनों बातों/स्थितियों का मिश्रण भी हो सकती हैं । अनिष्ट शक्तियों ने कोरोना विषाणु महामारी की निर्मिति कैसे की, यह एक चार्ट के माध्यम से नीचे दिखाया गया है ।

कोरोना विषाणु (COVID-19) गति से फैलने का कारण क्या है ?

COVID-19  के फैलने की गति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंक इसका कारण  सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिकों की सूक्ष्म काली शक्ति  है जिसे विषाणु में  संचारित किया गया है । जिसने विषाणु की उग्रता को (तीव्रता और हानिकारक वृत्ति को) और बढा दिया । बलशाली सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिकों ने कोरोना विषाणु को फैलाने के लिए अपने अधीनस्थ अनिष्ट शक्तियों का प्रयोग किया ।

अगला प्रश्न है अभी क्यों ?

इसके लिए हमें एक थोडा पीछे जाना होगा और एक विशाल घटक जिसे ‘काल चक्र’ कहते है उसको समझना पडेगा । सब कुछ काल के अनुसार ही होता है और सब कुछ कालचक्र से ही घटित होता (गुजरता) है ।

कोरोना वायरस (विषाणु) – मंत्रजप द्वारा आध्यात्मिक सुरक्षा

उदाहरण स्वरूप – प्रत्येक दिन विविध अवस्थाओं जैसे सूर्योदय, सुबह, दोपहर, सूर्यास्त और रात से होकर गुजरता है । उसके बाद पुनः सूर्योदय होता है और इस प्रकार आगे चलता रहता है । जैसे पृथ्वी एक नियमित नित्य चक्र के अनुसार चलती है, उसी प्रकार ब्रह्मांड भी चक्रों से गुजरता है । ये चक्र आध्यात्मिक स्वरूप के होते हैं ।

कोरोना वायरस (विषाणु) – मंत्रजप द्वारा आध्यात्मिक सुरक्षाप्रत्येक चक्र में तीन चरण होते हैं, निर्मिति, पालन और विनाश । जैसे ही हम चक्र के अंत की ओर पहुंचते हैं, तब वातावरण में आध्यात्मिक अशुद्धि अर्थात पाप अत्यधिक मात्रा में बढकर वह उच्चतम स्तर तक पहुंच जाता है, जिसके कारण इस चक्र के विनाश का चरण आता है अगले और चक्र का प्रारंभ होता है ।

मार्च २०२० में हम ब्रह्मांड के ऐसे ही चक्र के अंत की ओर बढ़ रहे हैं, जहां ४ वर्षों के उपरांत (वर्ष २०२४) में एक नए चक्र का प्रारंभ होगा । इसलिए वर्तमान में पाप चरम सीमा पर है । मानवता (साधना के अभाव के कारण) आध्यात्मिक रूप से तैयार नहीं है और इसलिए इस पाप के पडाड से आसानी से प्रभावित हो रही है । फलस्वरूप, कालांतर से पाप के कारण मनुष्य का झुकाव निम्न स्तर का व्यवहार करने की ओर बढ़ जाएगा, जिससे वातावरण का आध्यात्मिक पतन और अधिक होता जाएगा ।

समष्टि प्रारब्ध का सिद्धांत

एक अन्य महत्वपूर्ण कारण है ‘समष्टि प्रारब्ध’, जो सशक्त रूप से बढता ही जा रहा है ।

कोरोना वायरस (विषाणु) – मंत्रजप द्वारा आध्यात्मिक सुरक्षा

प्रत्येक अनुचित कृति का कर्म फल न्याय होता ही है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति को भोगना पडता है । यह कर्म का परिणाम व्यक्ति को इस जन्म में अथवा आने वाले किसी जन्म में किसी कष्ट के रूप में भोगना ही पड़ता है । इसे प्रारब्ध कहते हैं  (विशिष्ट तौर पर व्यष्टि प्रारब्ध कहते हैं) । जैसे किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत प्रारब्ध होता है, वैसे ही किसी क्षेत्र, देश या मानव जाति का भी उनके द्वारा किया जानेवाला व्यवहार और कृतियों के आधार पर एक विशिष्ट प्रारब्ध होता है । जिसे उस क्षेत्र तथा वहां के रहने वालों का समष्टि प्रारब्ध कहते हैं । समष्टि प्रारब्ध  अच्छा अथवा बुरा हो सकता है, महत्त्व की बात यह है कि वर्तमान काल में समाज के अनुचित व्यवहार और अधर्म के कारण व्यष्टि प्रारब्ध और यही/इसी समष्टि प्रारब्ध के कारण विपत्ति की मात्रा अत्यधिक हो गई है और यही विश्व के लोगों के कष्ट से पीडित रहने का मुख्य कारण है ।

वर्तमान काल में हम अपने जीवन का ३५% अपनी इच्छा (क्रियमाण कर्म) के अनुसार व्यतीत कर सकते हैं, शेष ६५ प्रतिशत भाग हमारा जीवन प्रारब्ध पर आधारित होता है, प्रारब्ध के कारण हमें ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है जो हमारे नियंत्रण के परे है । यदि हम अपनी जीवन के केवल प्रारब्ध जनित पहलू को देखें तो हमें ध्यान में आएगा कि यह व्यक्तिगत/व्यष्टि प्रारब्ध तथा समष्टि प्रारब्ध से बना होता है । वर्तमान समय में (अर्थात वर्ष २०१९ से २०२५) समष्टि प्रारब्ध की मात्रा में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और यह सारणी के माध्यम से नीचे दिखाया गया है

जीवन का पहलू सामान्य काल (प्रतिशत में) २०१९ – २०२५ (प्रतिशत  में)
१. समष्टि प्रारब्ध १० ३०
२. व्यष्टि प्रारब्ध ६० ४५
३.क्रियमाण कर्म ३० २५
कुल १०० १००

स्रोत: आध्यात्मिक शोध, अक्टूबर २०१७

टिप्पणी १ : कृपया ध्यान दें कि प्रारब्ध और क्रियमाण कर्म की मात्रा ६५ प्रतिशत तथा ३५ प्रतिशत क्रमश: होती हैं । वर्तमान काल में व्यक्ति के जीवन के प्रारब्ध में इस मात्रा में ५ से १० प्रतिशत तक परिवर्तन हो सकता है ।

इसका अर्थ यह है कि अगले ४ वर्षों में जो घटनाएं हमारे जीवन में तथा पृथ्वी पर घटेंगी, वह संबंधित देश का, जिस क्षेत्र में हम हैं वहां के समष्टि प्रारब्ध से अत्यधिक मात्रा में प्रभावित होगी । इसका अर्थ यह हुआ कि इस काल के दौरान मानवजाति आध्यात्मिक स्तर पर विशेष रूप से संवेदनशील/कमजोर/निर्बल हो जाएगी ।

मानवजाति की आध्यात्मिक संवेदनशीलता/निर्बलता का लाभ अनिष्ट शक्तियां उठाती है ।

अनादि काल से ही अच्छाई और बुराई का युद्ध सू्क्ष्म स्तर पर तथा पृथ्वी पर चलता आ रहा है ।

ब्रह्मांड के काल चक्र के अंत में निर्मित हुए पाप का लाभ पुनः अनिष्ट शक्तियां (आध्यात्मिक आयाम की) उठा रही है । उन्होंने अपनी गतिविधियां इस उद्देश्य से बढा दी है जिससे वे सू्क्ष्म के साथ-साथ ब्रह्मांड के भौतिक लोकों में देवता, सकारात्मक शक्तियां तथा मनुष्यों पर आक्रमण कर सके । उनके लिए यह एक शक्ति का खेल है – जिससे वे पृथ्वी तथा ब्रह्मांड के सूक्ष्म लोकों पर नियंत्रण प्राप्त कर सके तथा आसुरी साम्राज्य स्थापित कर सके ।

३. कोरोना विषाणु कैसे फैलेगा ?

२४ मार्च २०२० तक लगभग सभी देश कम अथवा अधिक मात्र में कोरोना विषाणु से प्रभावित हैं ।

भौतिक परिप्रेक्ष्य में, हम यह देखते हैं कि इस संक्रामक कोरोना विषाणु का प्रसारण लोगों की गतिविधियां तथा व्यक्ति के आपसी संपर्क के कारण होता है । यद्यपि आध्यात्मिक स्तर पर, इसके फैलने का कारण अलग है ।

अनिष्ट शक्तियां इस विषाणु को फैलाने के लिए वायु तत्व का प्रयोग कर रही है ।

जैसे कि हमने  ‘काल घटक’ के बारे में पहले जो चर्चा की उसके अनुसार देश अपने समष्टि प्रारब्ध के अनुसार पहले अथवा बाद में इस विषाणु से प्रभावित होंगे । किसी क्षेत्र का समष्टि प्रारब्ध जितना अधिक होगा कोरोनाविषाणु के फैलने की संभावना वहां उतनी अधिक होगी । साथ ही किसी क्षेत्र में पाप की मात्रा जितनी अधिक  होगी, वहां रह रहे लोगों पर कोरोना विषाणु के संक्रमण का खतरा भी उतना अधिक होगा । वातावरण में बढे इस पाप के भागीदार अल्प-अधिक मात्रा में हम सभी हैं । पाप कई कारणों से बढ़ता है जैसे साधना का अभाव, लालच, भौतिकता, पशुओं के प्रति क्रूरता एवं प्रचलन तथा परंपराओं का आध्यात्मिक रुप से अनुचित तरीके से किया जाना इत्यादि ।

जीवन के कुछ पहलू जो नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करते हैं

कृपया ध्यान दें  इस  स्लाइड शो मेंहमारे जीवन के उन विविध पहलूओं के कुछ उदाहरण दर्शाएं गए हैं जिनसे  नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित  होते हैं ।

भारत के गोवा स्थित स्पिरिचुअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन (Spiritual Science Research Foundation) ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के साथ जीवन के सभी पहलुओं तथा प्रतिदिन के जीवन शैली पर गहन अध्यात्मिक शोध किया है । इस शोध के माध्यम से बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिली है कि हम सभी अधिकांशता ऐसे कार्यों में लिप्त होते हैं जिससे नकारात्मक स्पंदन निकलते हैं । यह हमें इसकी भीअमूल्य जानकारी देता है कि हम अपने जीवन में आध्यात्मिक रुप से सकारात्मक स्पंदन कैसे बढाएं ?

४. कोरोना विषाणु का अंत कैसे होगा ?

संसार (विश्व भर) के नेताओं तथा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र से अनेक वक्तव्य सुनने को मिल रहे हैं कि काेरोना विषाणु का प्रकोप कब तक जारी रहेगा । अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह महामारी भविष्य में होनेवाली घटनाओं की श्रृंखला का मात्र प्रारंभ है (जिसमें प्राकृतिक तथा मानव निर्मित आपदाएं सम्मिलित है) जो आने वाले ४ वर्षों में मानव जाति का विनाश कर देगी । यह काल तीसरे विश्वयुद्ध में समाप्त होगा । वर्ष २०२४ से एक नए युग का प्रारंभ होगा । जब विश्व जलवायु परिवर्तन और तीसरे विश्व युद्ध दोनों के कारण अकल्पनीय परिमाण में/के विनाश और मानवीय जीवन की हानि से निपट रहा होगा – तब यह लगभग एक रीसेट (reset) बटन की तरह होगा जिसे मानवता के लिए दबाया गया है जिससे हमें एक बेहतर विश्व बनाने का दूसरा अवसर मिल सके ।

जीवन का एक सामान्य नियम होता है जिसकी भी निर्मिति हुई है, उसका पोषण होता है और कुछ समय उपरांत वह नष्ट हो जाता है । यही नियम कोरोना विषाणु महामारी के संदर्भ में भी है । कोरोनाविषाणु महामारी का अंत तब होगा जब उसे निर्मित करनेवाली अनिष्ट शक्तियों की शक्ति कम होने लगेगी ।

५. कोरोना विषाणु (COVID-19)  से स्वयं की सुरक्षा कैसे हो ?

आधुनिक विज्ञान समस्याओं का विश्लेषण भौतिक और / या मनोवैज्ञानिक / बौद्धिक स्तर पर करता है । यह समस्याओं के विश्लेषण का एक अदूरदर्शी  तरीका है ।

आधुनिक विज्ञान को यह ज्ञात नहीं कि वास्तव में किसी भी समस्या के ३ घटक होते हैं – भौतिक, मनोवैज्ञानिक (जिसमें बौद्धिक घटक भी सम्मिलित है) और आध्यात्मिक ।

निम्न तालिका कोरोनो विषाणु के प्रकोप और समाधान के संबंध में इनमें से प्रत्येक घटक पर प्रकाश डालती है ।

कोरोनो विषाणु की समस्या के कारणीभूत घटक समस्या का पहलू प्रत्येक स्तर पर हम कोरोना विषाणु का समाधान किस प्रकार करते हैं
1. भौतिक वास्तव में विषाणु स्वयं ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल रहा है । विभिन्न रणनीतियां जो वर्तमान में दुनिया भर में लागू हो रही हैं जैसे कि सामाजिक दूरी, संदेहास्पद रोगियों को अकेला रखना (quarantining) , टीका विकसित करना आदि।
2. मनोवैज्ञानिक लोगों की मेलजोल / मेलजोल की आवश्यकता ने विषाणु के प्रसार को बढ़ा दिया है ।

इसके अतिरिक्त, इससे संबंधित  एक समस्या यह है, लोगों के मन में वित्तीय नुकसान, नौकरी छूटने, सामाजिक प्रतिबंध बढ़ने, प्रियजनों को खोने और इस प्रकोप के कारण विषाणु को अनुबंधित करने का डर और चिंता।

लोगों को सामूहीकरण करने की आवश्यकता पर सामाजिक भेद के महत्व को समझना होगा।

संबंधित समस्या के लिए :

-Counselling परामर्श (काऊंसलिंग)

-स्थिति का सामना करने के लिए मन को मजबूत करने के लिए स्वभाव दोष निर्मूलन (पीडीआर) प्रक्रिया को अपनाना।

3. आध्यात्मिक विषाणु का प्रसार शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियोंद्वारा समर्थित होने के कारण इसे नियंत्रित करना अत्यंत कठिन है ।

कोरोना विषाणु की समस्या का यह मूल कारण है ।

आध्यात्मिक उपचार तथा नियमित साधना।

यह उपाय व्यक्ति को उसके प्रतिकूल प्रारब्ध से रक्षा कर सकता है तथा विषाणु की भयावहता को कम कर सकता है ।

आगे कुछ आध्यात्मिक उपचार दिए गए हैं जिनका पालन करने से हम आध्यात्मिक स्तर पर सुरक्षित हो सकते हैं ।

५.१ कोरोना विषाणु से सुरक्षा हेतु आध्यात्मिक (उपचारिक) नामजप

कोरोना वायरस (विषाणु) – मंत्रजप द्वारा आध्यात्मिक सुरक्षाजब हम ईश्वर के नाम को जपते हैं (दोहराते हैं) तब ईश्वर के उस विशिष्ट नाम से जुड़ी उनकी दिव्य शक्ति तथा आध्यात्मिक शक्ति का सुरक्षा कवच हमारे सर्व ओर निर्माण होता है । कोरोना विषाणु से आध्यात्मिक सुरक्षा हेतु एक विशिष्ट जप आगे दिया गया है । इस नामजप में देवता के नाम संस्कृत में हैं । इस नामजप में आए देवताओं का नाम एक विशेष क्रम में है, जो आध्यात्मिक शोध से ज्ञात हुआ है । इस नाम जप से तीनों देवताओं की आध्यात्मिक शक्ति का आह्वान किया जाता है । दुर्गा देवी असुरों के नाश का कार्य करने वाली देवता हैं, भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मांड में दिवंगत पूर्वजों और अनिष्ट शक्तियों के सूक्ष्म शरीर से होने वाले कष्टों से रक्षा करने वाले देवता है और शिवजी विनाश के देवता हैं ।

मंत्रजप इस क्रम में उच्चारण करना है

  • श्री दुर्गा देव्यै नमः
  • श्री दुर्गा देव्यै नमः
  • श्री दुर्गा देव्यै नमः
  • श्री गुरुदेव दत्त
  • श्री दुर्गा देव्यै नमः
  • श्री दुर्गा देव्यै नमः
  • श्री दुर्गा देव्यै नमः
  • ॐ नमः शिवाय

नामजप सुनने के लिए यहां क्लिक करें

नामजप डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें ।


कृपया ध्यान दें, यह मंत्र/नाम जप काल के अनुसार बदल सकता है इसलिए इस पेज को बुकमार्क करें और नियमित रूप से इस पेज को देखें अथवा हमारे न्यूज़लेटर/पत्रिका को सब्सक्राइब करें (subscribe to our newsletter) जिससे कोई परिवर्तन होने पर हम आपको सूचित कर सकें । कुछ लोग कोरोना विषाणु से रक्षण हेतु मंत्र जप ढूंढते हैं,  किंतु हमें यह ध्यान में आया है कि नामजप ही अधिक प्रभावकारी है ।


इस नाम जप में तेज तत्व प्रमुख रूप से है । इस नामजप में विद्यमान तत्वों की मात्रा नीचे बताई गई है । इस प्रकार है । इसमें महत्वपूर्ण रूप से आकाश तत्व भी है जो सभी तत्वों में सर्वाधिक शक्तिशाली है । तेज तत्व से सूक्ष्म ऊष्मा बढ़ती है, जिससे विषाणु को आगे बढ़ने से रोकने में सहायता होगी । साथ ही सूर्य की रोशनी में बैठने से भी इस विषाणु को फैलने से रोकने  तथा उसकी क्षमता घटाने में सहायता होती है ।

मूलभूत तत्व प्रतिशत मात्रा
पृथ्वी १०
आप १०
तेज ६०
वायु १०
आकाश १०
कुल १००

स्रोत :  आध्यात्मिक शोध २६ मार्च २०२०

इस जप को कितना (कितनी देर) करना चाहिए ?

  • मैं कोरोना विषाणु से प्रभावित नहीं हूं अथवा मुझे इस रोग से कोई लक्षण नहीं है : यदि आपको कोरोना विषाणु संक्रमण से संबंधित कोई लक्षण नहीं दिख रहा है, तो आप प्रतिदिन यह नामजप मन ही मन १०८ बार करें । इसे करने में एक घंटे से थोडा अधिक समय लगता है (अर्थात ये ८ नामजप क्रम से १०८ बार) ।
  • मैं कोरोना विषाणु से प्रभावित हूं अथवा इस रोग के लक्षण मुझमें हैं : यदि आपमें इस रोग के लक्षण दिखते हैं अथवा आप कोरोना विषाणु से प्रभावित हैं तो आप प्रतिदिन यह नामजप मन ही मन ६४८ बार करें । इसे करने में लगभग७.५ घंटे का समय लगता है ।

क्या यह जप मेरी सुरक्षा के लिए पर्याप्त है ?

  • यह जप आध्यात्मिक स्तर पर व्यक्ति की रक्षा करता है : यह इसलिए क्योंकि इस विषाणु के निर्माण और प्रसार का मूल कारण आध्यात्मिक स्वरूप का है । इस कोरोना विषाणु महामारी के कारण का ८० प्रतिशत कारण आध्यात्मिक है और केवल २०% कारण भौतिक / मनोवैज्ञानिक है । यह नामजप ८० प्रतिशत कारण से लड़ने के लिए आवश्यक है, जो कि आध्यात्मिक है । जब तक कोरोना विषाणु के आध्यात्मिक घटक को नियंत्रण में नहीं लाया जाता, तब तक दवा और सामाजिक संतुलन/दूरी बनाएं रखने के साथ भौतिक प्रभावों को नियंत्रण में लाना असंभव है । कृपया ध्यान दें कि यह जप लोगों की समष्टि प्रारब्ध को कम नहीं करता है । यह क्या करता है, कि विषाणु में व्याप्त काली शक्ति (अनिष्ट शक्तियों द्वारा डाली गई) को कम करता है, इससे इसकी भयावहता (अत्यंत तीव्र और हानिकारक प्रभाव)  बहुत कम हो जाती है ।
  • कोरोना विषाणु उपचारात्मक जप और ‘मृत्यु के समय’ की अवधारणा : जो लोग अपने प्रारब्ध के अनुसार निश्चित मृत्यु (महामृत्युयोग) के चरण तक पहुंच रहे हैं, उन्हें कोई नहीं बचा सकता । तथापि, यह जप उन सभी को सहायता करेगा जो अपने जीवन में संभावित मृत्यु (अपमृत्युयोग या मृत्युयोग) की स्थिति में हैं, इस जप से उन्हें इस आध्यात्मिक रूप से दुर्बल अवस्था से निकल पाने के लिए अपेक्षित आध्यात्मिक क्षमता प्राप्त हो सकती है  ।

कृपया पढें – मृत्यु  का समय – आध्यात्मिक दृष्टिकोण

  • यह जप आध्यात्मिक रूप से कुंडलिनी के चक्रों की शुद्धि करता है ।

ये ७ चक्र सूक्ष्म स्तर के होते हैं तथा शरीर के विविध अंग, मन तथा बुद्धि को कार्य करने के लिए सूक्ष्म शक्ति प्रदान करते हैं ।

देवता का नाम कोरोना विषाणु से संबंधित चक्र जिसकी शुद्धि होती है किस लक्षण को घटाता है
श्री दुर्गादेव्यै नमः विशुद्ध चक्र खांसी
श्री गुरुदेव दत्त आज्ञा चक्र बुखार
ॐ नमः शिवाय मणिपुर चक्र शरीर में होनेवाली वेदना, पेट दर्द, चक्र से संबंधित शारीरिक  लक्षण

जप सबसे पहले चक्रों की शुद्धि करता है और प्राणशक्ति प्रदान करता है । फलस्वरूप चक्रों से संबंधित शरीर के अंगों में संक्रमण से लड़ने में सहायता प्राप्त होती है । चक्रों की शुद्धि करने के उपरांत, मंत्र से उत्पन्न ऊर्जा कुंडलिनी प्रणाली के सुषुम्ना नाडी के माध्यम से यात्रा करती है और पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए ब्रह्मरंध्र के माध्यम से जाती है । ब्रह्मरंध्र सहस्रार चक्र के ऊपर एक सूक्ष्म-छिद्र है, जहाँ से ईश्वरीय शक्ति प्राप्त होती है ।

संक्षेप में :

जप करने की पद्धति / सुनना प्रभाव
स्पीकर पर जप बजाकर केवल सुनना आसपास के वातावरण को मुख्यतः शुद्ध करता है ।
भाव से सुनना चक्र तथा आसपास के वातावरण को  शुद्ध करता है ।
भाव से नामजप करना

(नामजप सुनते हुए भी नामजप कर सकते हैं ।)

व्यक्ति तथा उसके आसपास के वातावरण को सर्वाधिक लाभ मिलता है ।
  • चूंकि लक्षण शारीरिक स्वरूप के हैं, इसलिए हमें भौतिक स्तर पर भी सभी उपायों का पालन करना चाहिए (जैसे कि अपने हाथों को धोना, सामाजिक दूरी बनाए रखना, अपने चेहरे को छूने से बचना, किसी की कोहनी में खांसना आदि) जैसा कि डॉक्टरों द्वारा सलाह दी गई है  । साथ ही स्वयं को इससे बचाने के लिए उनके द्वारा बताया गया चिकित्सकीय उपचार भी करवाना चाहिए ।

कृपया ध्यान दें कि डॉक्टरों द्वारा शारीरिक अथवा मनोवैज्ञानिक उपचार के लिए दिए गए परामर्श पर केवल जप एक विकल्प नहीं है ।

५.१.१ ओमाइक्रोन संस्करणसे रक्षा हेतु आध्यात्मिक उपचारक नामजप

दिसम्बर २०२१ तक, ओमाइक्रोन संक्रमणमें वृद्धि हुई है, जो गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम कोरोना विषाणु २ SARS-CoV-2 (एक विषाणु जिसके कारण कोरोना विषाणु निर्मित होता है) का नवीनतम संस्करण है। दक्षिण अफ्रीका ने २४ नवंबर २०२१ को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को इसकी सूचना दी थी, विषाणु के इस स्वरुप को अत्यधिक संक्रामक माना गया है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालयके आध्यात्मिक शोध दल ने विषाणु के इस नए प्रकार से आध्यात्मिक संरक्षण प्रदान करने हेतु एक नवीन नामजप का पता लगाया है और यह इसके उपचार में भी सहायता करेगा ।

इस नामजप में ४ देवताओं के नामों का संयोजन है तथा इसे उसी क्रम में दोहराना है जैसे नीचे बताया गया है ।

  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  • श्री दुर्गादेव्यै नमः

  • श्री हनुमते नमः

  • ॐ नमः शिवाय

  • ॐ नमः शिवाय

ओमाइक्रोन से संरक्षण प्रदान करनेवाले नामजप को डाउनलोड करने अथवा सुनने हेतु यहां क्लिक करें

टिप्पणी/नोट: उन क्षेत्रों में जहां ओमाइक्रोन संस्करण वर्तमान में अधिक सक्रिय है (अर्थात, जहां लोग ओमाइक्रोन संस्करण से संक्रमित हो गए हैं), तो पूर्व में बताए गए नामजप, जो दुर्गा, दत्त और शिव इन देवताओं के नामों का एक संयोजन है, उसे बंद कर देना है । इसके स्थान पर, अब ओमाइक्रोन संस्करण के लिए बताया गया नामजप दोहरा सकते है । उन क्षेत्रों में जहां ओमाइक्रोन संस्करण ने अभी तक लोगों को संक्रमित नहीं किया है, वहां पूर्व में बताए गए नामजप का उपयोग जारी रख सकते है ।

मुझे ओमाइक्रोन संस्करण से सुरक्षा प्रदान करनेवाले नामजप को कितनी बार दोहराना चाहिए ?

संक्रमण की तीव्रता नामजप दोहराए जाने के घण्टोंकी संख्या
सोम्य १-२ घण्टे
मध्यम ३-४  घण्टे
तीव्र ५-६ घण्टे

यद्यपि कोई ओमाइक्रोन संस्करण से संक्रमित न हो, तब भी यह सुझाव दिया जाता है कि ऊपर बताए गए नामजप को प्रतिदिन १ घण्टा दोहराए । यह ओमाइक्रोन संस्करण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने में सहायता करेगा ।

५.२ क्या कोरोनाविषाणु को दूर करने के लिए प्रार्थना सहायता करती है ?

कोरोना वायरस (विषाणु) – मंत्रजप द्वारा आध्यात्मिक सुरक्षायह वास्तव में इस पर निर्भर करता है कि किसका पलडा भारी है – वह प्रारब्ध जिसे व्यक्ति को भोगना है अथवा उस कष्ट को मात देने हेतु की जानेवाली प्रार्थना की आध्यात्मिक शक्ति । यदि यह प्रारब्ध से संबंधित है, तो प्रार्थना उस व्यक्ति (व्यक्तिगत स्तर पर) के लिए सहायक सिद्ध हो सकती है ।

प्रार्थना की आध्यात्मिक शक्ति व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर के समानुपाती होती है । प्रारब्ध पर विजय पाने के लिए प्रार्थना करने वाले व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर उच्च होना चाहिए ।

समष्टि प्रारब्ध के प्रसंग में औसत आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति द्वारा की जाने वाली प्रार्थनाएं उन दुखों का प्रतिकार करने में सक्षम नहीं होती हैं, जिन दुखों को कम करना चाहते हैं । सामूहिक प्रार्थना भी इस संबंध में प्रभावी नहीं होती है । मात्र यह प्रार्थना करने वालों को मानसिक स्तर पर कुछ लाभ प्रदान करता है ।

विरोधाभास यह है कि जो लोग उन्नत आध्यात्मिक स्तर के हैं और जिनकी प्रार्थना संसार की स्थिति में बदलाव ला सकती है, वे सांसारिक प्रार्थना नहीं करते हैं और जो हो रहा है वह ईश्वर की इच्छा के अनुसार हो रहा है, वे यही विश्वास कर उसे स्वीकारते हैं । दूसरी ओर, अशांति के समय में (औसत आध्यात्मिक स्तर के लोग) कुछ परिणामों (जैसे कोरोना विषाणु को रोकना) के लिए प्रार्थना करते हैं, किंतु उनमें समष्टि प्रारब्ध में परिवर्तन होने के लिए अपेक्षित आध्यात्मिक शक्ति नहीं होती है ।

५.3 चिंता को कम करने के लिए स्वसूचना – मन को कठिन प्रसंगों में स्थिर रखने में सहायता करना

स्वभाव दोष निर्मूलन (पीडीआर) प्रक्रिया परात्पर गुरु (डॉ) आठवले जी द्वारा विकसित की गई है । यह मन को तनावपूर्ण और कठिन परिस्थितियों में उचित रूप से कार्य करने के लिए प्रशिक्षित करती है । यह मन को तनाव और चिंता उत्पन्न करने वाले दोषों को कम करने में सक्षम बनाती है, जो किसी भी स्थिति में इसे स्थिर रखने में सहायता करता है । जब मन स्थिर होता है, तो कोई भी ठीक/प्रभावी ढंग से कार्य करने में सक्षम होता है ।

लोगों के मन में कुछ सामान्य भय और चिंताओं के आधार पर स्वसूचना कैसे दे सकते हैं, यह समझने के लिए नीचे दिए गए PDF को डाउनलोड करें ।

डाउनलोड पीडीऍफ़

स्वसूचना देने की विधि को समझने के लिए कृपया पढ़ें – स्वसूचना कैसे दिया जाए ?

५.४ नमकमिश्रित-पानी का उपाय

नमक मिश्रित जल का उपाय एक सरल एवं शक्तिशाली आध्यात्मिक उपचार है जो हमारे शरीर से (सूक्ष्म) काली शक्ति को बाहर निकालता है । अनिष्ट शक्तियां लोगों को उनकी काली ऊर्जा के माध्यम से हानि पहुंचाती हैं जो सूक्ष्म शक्ति का एक रूप है ।

नमकमिश्रित जल के उपाय के बारे में जानें अथवा नीचे दिए गए वीडियो को देखें।

५.५ तुलसीपत्र का सेवन

कोरोना वायरस (विषाणु) – मंत्रजप द्वारा आध्यात्मिक सुरक्षाअभी के काल में तुलसी का पौधे का रोपन करना बहुत अच्छा है । इस पौधे में विष्णुतत्त्व होता है । तुलसी के पौधे की एक पत्ती को पानी में डालकर पीने से भी व्यक्ति पर उपचारात्मक प्रभाव पड़ता है । इसके साथ ही सुबह खाली पेट तुलसी के पौधे की एक पत्ती का सेवन कर सकते हैं। घर पर तुलसी का पौधा उगाने से सकारात्मक आध्यात्मिक (सात्त्विक) स्पंदन फैलते हैं । यह पौधा आने वाले कठिन समय में औषधीय पौधे के रूप में अमूल्य होगा ।

६. निष्कर्ष

कोरोनो विषाणु के प्रकोप ने हमें दिखाया है कि हम मनुष्य के रूप में कितने दुर्बल हैं, और एक सूक्ष्म विषाणु ने हमारी दुनिया को त्रस्त कर दिया है । इस विषाणु ने हमें सिखाया है कि हम जो करते हैं वह दूसरों को भी, चाहे वे कितनी भी दूरी पर हो, तब भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है । इसने हमें यह भी सिखाया है कि यदि इच्छा हो तो हम असंभव कार्यों को संभव बना सकते हैं, जैसे बड़ी आबादी को घर में ही रहने के लिए तैयार करवा लेना (उदा. भारत में १३० करोड लोगों को ३ सप्ताह के लिए), दुनिया भर में यात्रा को प्रतिबंधित करना इत्यादि कर सकते हैं ।

यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है क्योंकि इसने दिखाया  है कि यद्यपि यह कठिन लगे तब भी यदि हम मानव जाति के रूप में एकजुट होते हैं, तो हम सकारात्मक बदलाव भी ला सकते हैं ।

दुनिया में स्थायी सकारात्मक बदलाव लाने का सबसे अच्छा तरीका उन विचारों और गतिविधियों में सम्मिलित होना है जो आध्यात्मिक रूप से शुद्ध (सात्त्विक) हैं । इससे सकारात्मक स्पंदन उत्पन्न होंगे और प्रतिकूल समष्टि प्रारब्ध घट जाएगा । इससे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और वें कोई भी अन्य संघर्ष कम होंगे, जिनका सामना मनुष्य अगले ४ वर्षों के दौरान करेगा ।

मौलिक रूप से, वत्तर्मान समय में इसका अर्थ यह होगा कि सड़न (आध्यात्मिक अशुद्धता) से छुटकारा पाने के लिए हमें पूरी व्यवस्था को प्रभावी ढंग से सुधारने की आवश्यकता होगी क्योंकि हम जानते हैं कि यही व्यवस्था ऐसा करवाती है । नई व्यवस्था को धर्म सापेक्ष होना आवश्यक होगा । इसका अर्थ यह है कि हमें इस संसार में वर्तमान में हम जिसमें भी संलिप्त है और इस संसार में हम जिन्हें महत्व देते हैं, उन सबका पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता होगी। हमें यह  सुनिश्चित करना होगा कि इन चीजों का क्या आध्यात्मिक स्तर पर कोई मूल्य है । क्या वे सकारात्मक अथवा नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करते हैं ? यदि वे सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करते हैं, तो हम उन्हें अपनाएंगे और यदि नहीं, तो हमें उन्हें त्याग देना चाहिए । नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करने वाली चीजें एक विषाणु के समान ही होती हैं और यदि उन्हें अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो अंतत: समाज और विश्व के लिए बहुत हानिकारक होंगी ।

यदि हम एक मानव जाति के रूप में एक साथ नहीं आते हैं और गंभीरता से इसके लिए प्रयास नहीं करते, तो आगे का मार्ग यातना और पीड़ा से भरा होगा।

तब भी, यदि हम एक साथ आते हैं और इस आध्यात्मिक परिवर्तन को लाते हैं, तो आने वाले समय की तीव्रता कम हो जाएगी, और अनेक लोग बच जाएंगे ।