विषय सूची
१. पृष्ठभूमि तथा प्रयोग का उद्देश्य
भारत के गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र में हम असाधारण घटनाओं को देखने के अभ्यस्त हो चुके हैं । इसका कारण यहां विभिन्न आध्यात्मिक घटनाओं का भौतिक आयाम में प्रकट होना है । परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजी (महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक) का कक्ष आध्यात्मिक घटनाओं क साकार दर्शनके समान है, जहां प्रतिदिन ऐसी घटनाएं देखी जा सकती हैं ।
ऐसी ही एक घटना हम वर्ष २०१४ से देखते आ रहे हैं । वह है परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजी के बैठककक्ष की खिडकी के शीशे अधिक परावर्तनीय बनना । इन शीशों से परावर्तित प्रकाश की तीव्रता अधिक होती है । इसके अतिरिक्त जब लोग इन कांच के शीशों में से देखते हैं तो उन्हें लगता हैं कि ये शीशे अधिक पारदर्शी बन गए हैं तथा इनमें से देखने पर वस्तुएं अधिक स्पष्ट दिखाई देती हैं ।
हम यह देखना चाहते थे कि क्या परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजी के बैठक कक्ष की खिडकी के शीशे वास्तव में अधिक परावर्तक बन गए हैं । परावर्तन में वृद्धि की परिकल्पना का परीक्षण करने हेतु, हमने एक ही बालकनी में दो सटे हुए कक्षों की खिडकी के शीशों की तुलना करने के लिए एक सरल प्रयोग किया । इनमें एक परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजी के बैठक कक्ष की खिडकी का शीशा था तथा दूसरा उनके अध्ययन कक्ष का । दोनों शीशे एक ही उत्पादक से क्रय किए गए थे तथा दिखने में एक समान लगते हैं । इनकी मोटाई ४ मिमी है ।
२. प्रयोग कैसे किया गया
- हमने यह प्रयोग रात्रि में किया ।
- ऊपर उल्लेखित दो सटे हुए कक्षों (परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजी का बैठक कक्ष एवं उनका अध्ययन कक्ष) की बालकनी में एक छोटे स्तंभ पर हमने धारक (होल्डर) की सहायता से एक ३ वाट का बल्ब लगाया । दोनों कक्ष जो कि बालकनी से सटे हुए थे, उनकी खिडकी के शीशों से लगभग ४.५ मीटर की दूरी पर बल्ब को लगाया गया ।
- यह चित्र दिन के समय स्थापित की गई संरचना का है । इससे प्रयोग के ढांचे को समझा जा सकता है । पूरी संरचना को एक ही चौखट में दर्शाने के लिए इस चित्र को चौडे कोण के लेंस के प्रयोग से (विद्युत बल्ब के पीछे से) लिया गया है ।
- तदोपरांत हमने बल्ब से सामान दूरी पर स्थित प्रत्येक द्वार से दिखाई दे रहे क्रमशः खिडकी के शीशे १ तथा २ से बल्ब के प्रतिबिंब का चित्र लिया । इस बात का ध्यान रखा गया कि प्रयोग में किसी दूसरे प्रकाश का हस्तक्षेप न हो । प्रयोग में शीशे के पीछे से प्रकाश का हस्तक्षेप न हो यह सुनिश्चित करने के लिए शीशे के पीछे काला वस्त्र लगा दिया गया ।
- प्रतिबिंब के चित्रों को लेने के लिए कैनन ईओएस ७डी कैमरे का प्रयोग किया गया । छायाचित्रित चित्रों के विषय में कुछ प्रमुख मापदंड नीचे दिए गए आलेख में बताए गए हैं ।
- प्रयोग के ढांचे का नियोजित दृश्य नीचे दिया गया है ।
मापदंड परिमाण कैमरा कैनन ईओएस ७डी लेंस ईएफ-एस-१३५मिमी एफ/३.५-५.६ आईएस फ्लैश कुछ नहीं अपर्चर ८.० एक्सपोजर १ सेकंड आईएसओ ४००
३. प्रयोग के अवलोकन
नीचे दो चित्र दिए गए हैं जो दो समान कांच के शीशों में देखे गए बल्ब के प्रतिबिंबित प्रकाश को दर्शाते हैं ।
जैसा कि आप देख सकते हैं कि परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजी के अध्ययन कक्ष की खिडकी के शीशे की तुलना में उनके बैठक कक्ष की खिडकी के शीशे से परिवर्तित प्रकाश की मात्रा कहीं अधिक है । दोनों कांच के शीशे समान होते हुए भी ऐसा हुआ ।
हमने इसी प्रयोग को भिन्न भिन्न रंग, आकार तथा वाट क्षमता वाले विभिन्न बल्बों पर किया तथा सबके परिणाम एक समान आए । प्रयोग के सभी परिणामों में हमने देखा कि अन्य कक्षों की खिडकी के शीशों की तुलना में परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजी के बैठक कक्ष की खिडकी के शीशे से परावर्तित प्रकाश की तीव्रता अधिक थी ।
४. विश्लेषण एवं निष्कर्ष
- परावर्तित प्रकाश में होने वाले इस अंतर के कारण का पता लगाने के लिए हम आध्यात्मिक शोध कर रहे हैं ।
- हम वर्तमान में यही घटना दर्पण में भी घटित होते देख रहे हैं । परावर्तित प्रकाश की तीव्रता आपतित प्रकाश से अधिक है ।
- हम प्रकाशविज्ञान तथा कांच विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने वाले शोधकर्ताओं से इस प्रकार की घटना का यदि कोई स्पष्टीकरण उनके पास हो तो उसे हमें बताएं, यह अनुरोध करते हैं ।