सारांश
१. भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), पर्यावरणीय आकलन प्रभाग : दैवी कणों में कोई धातु उपस्थित नहीं हैं I
२. भाभा नाभिकीय अनुसंधान केंद्र (BARC), उत्पाद विकास प्रभाग : दैवी कणों में कोई भी धातु उपस्थित नहीं हैं I
३. भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, कोलकाता का भौतिक विज्ञान प्रभाग : ये दैवी कण षटकोणीय हैं किंतु ये मणिभीय (क्रिस्टलाइन) नहीं हैं I वे किसी भी एक अथवा अनेक ज्ञात धातुओं से उत्पन्न नहीं हुए हैं I
४. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई : ये दैवी कण कार्बन, नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन से निर्मित हुए हैं ।
दैवी कण कैसे प्रतीत होते हैं, यह जानने के लिए कृपया हमारा लेख – दैवी कण – स्वैच्छिक प्राकट्य तथा इसका विश्लेषण पढें ।
१. प्रस्तावना – दैवी कणों के रंग एवं आकार का वर्णन
१.१ अबद्ध (loose) कणों के स्वरूप में दैवी कण
रंग : साधकों को मिले दैवी कण प्राय: चांदी के रंग के एवं स्वर्ण के रंग के थे । कुछ साधकों को भूरे, लाल, गुलाबी, नीले, मोरपंखी हरे, हरे, नारंगी एवं बैंगनी रंग के दैवी कण भी प्राप्त हुए । कुछ साधकों को इस प्रकार के दैवी कण भी प्राप्त हुए जो एक तरफ से सुनहरे रंग के थे तो दूसरी ओर उनका रंग भूरा था । कुछ साधकों को रवेदार दैवी कण प्राप्त हुए । इन दैवी कणों की एक विशेषता थी कि अगल–अलग कोणों से देखने पर वे विभिन्न रंग के प्रतीत होते थे ।
आकार : उनका आकार सामान्यतया ०.५ मि.मी. है I
१.२ दैवी कण जो एक पतली परत की तरह प्रतीत होते हैं
रंग : साधकों को परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के गुरु परम पूजनीय भक्तराज महाराजजी के छायाचित्र तथा एक आध्यात्मिक दैनिक समाचार पत्र पर इस प्रकार के सुनहरे रंग के दैवी कण एक पतली परत के रूप में उभरे दिखार्इ पडे । परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी की त्वचा पर भी चांदी के रंग के दैवी कण पतली परत के रूप में दिखाई दिए I
आकार : कभी-कभी दैवी कण एक दूसरे से चिपक कर एक पपडी समान परत बना लेते हैं । ऐसे प्रकरणों में ये दैवी कण अबद्ध (loose) दैवी कणों की तुलना में बहुत छोटे होते हैं । इन दैवी कणों का आकार सूर्इ की नोक के बराबर अर्थात लगभग ०.१ मि.मी. होता है ।
१.३ तार के आकार के दैवी कण
रंग : अभी तक केवल यूरोप की पूज्य लोला वेजेलिकजी को तार के आकार जैसे दैवी कण मिले हैं । उनका रंग; स्वर्णिम, चांदी के रंग के, गुलाबी एवं मोरपंखी हरा था ।
आकार : इन तार आकार के दैवी कणों का व्यास सिलार्इ हेतु प्रयुक्त धागे के जितना था । वे लगभग १० से १५ सें.मी. लंबे थे ।
२. दैवी कणों के वैज्ञानिक विश्लेषण के उपरांत प्रस्तुत निष्कर्ष
भाभा नाभिकीय अनुसंधान केंद्र, मुंबर्इ, भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, कोलकाता के भौतिक विज्ञान प्रभाग एवं भारतीय प्रौद्योगिकीय संस्थान (IIT) मुंबर्इ में दैवी कणों की स्वरूप समझने के लिए परीक्षण किए गए । उनसे प्राप्त निष्कर्ष आगे दिए गए हैं ।
२.१ सभी प्रकार के दैवी कण षटकोणीय हैं किंतु वे मणिभीय (क्रिस्टलाइन) नहीं हैं ।
२.२ दैवी कण अधातु एवं अकार्बनिक पदार्थ की श्रेणी में आते हैं ।
१. दैवी कण अम्लराज (१ भाग सांद्र नाइट्रिक अम्ल एवं ३ भाग हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का मिश्रण) में नहीं घुलते I (धातु अम्लराज में घुल जाते हैं ।) इस से यह कहा जा सकता है कि दैवी कणों में कोर्इ सामान्य रूप से पाया जाने वाला धातु नहीं है ।
२. भाभा नाभिकीय अनुसंधान संस्थान एव भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान में किए गए तत्व विश्लेषण में यह पाया गया कि दैवी कणों में स्वर्ण, चांदी अथवा कोर्इ अन्य धातु नहीं है । इसलिए उन्हें धातु के रूप में अकार्बनिक तत्वों की श्रेणी में वर्गीकृत नहीं किया गया ।
३. सांद्र नाइट्रिक अम्ल का दैवी कणों पर कोर्इ परिणाम नहीं हुआ । (सभी कार्बनिक तत्व सांद्र नाइट्रिक अम्ल में घुल जाते हैं)। इससे यह सिद्ध होता है कि दैवी कण किसी कार्बनिक तत्त्व के नहीं हैं ।
४. दैवी कणों को २४ घंटे अम्लराज में डाल कर रखा गया तथा उस अम्लराज के द्रव को छन्नी (फिल्टर पेपर) से छाना गया । फिल्टर पेपर पर शेष बचे हुए कणों को ७०० से ८०० डिग्री सेल्सियस पर ४५ मि. तक गैस बर्नर पर गरम किया गया । उनका रंग न्यून अवश्य हुआ किंतु चमक पहले जैसी ही थी ।
५. सभी प्रकार के दैवी कणों में कार्बन, नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन तत्त्व पाए गए; मात्र स्वर्णिम कणों में ऎसा नहीं था । स्वर्णिम दैवी कणों मे दो तत्त्व कार्बन व ऑक्सीजन पाए गए । यद्यपि सभी दैवी कणों में अधिकाधिक मात्रा में कार्बन तत्त्व पाया गया किंतु उनमें से किसी में हाइड्रोजन तत्त्व नहीं पाया गया । इसलिए दैवी कण कार्बनिक पदार्थ नहीं हैं । अत: उन्हें अकार्बनिक तत्त्वों के अधातु वर्ग में रखा गया है ।
भारतीय नाभिकीय अनुसंधान संस्थान द्वारा किया गया दैवी कणों का विश्लेषण
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२.३ मूल घटक कार्बन, नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन के अनुपातानुसार उनके रासायनिक सूत्र
दैवी कण | रासायनिक सूत्र |
---|---|
१. भूरा | C3NO |
२. हरा | C3NO |
३. लाल | C9NO2 |
४. रजत | C11NO4 |
५. स्वर्णिम | C4O |
- दैवी कण एक नवीन पदार्थ हैं : दैवी कणों के उपरोक्त लिखित रासायनिक सूत्रों से यह सिद्ध होता है कि वे किसी ज्ञात पदार्थ जैसे नहीं हैं । इससे इस बात की पुष्टि होती है कि वे कोर्इ नवीन पदार्थ हैं ।
- मिट्टी, वायुमंडल तथा मानव शरीर के घटकों से दैवी कणों के घटकों के अनुपात की तुलना: दैवी कणों में कार्बन का अनुपात ५४ प्रतिशत से ७२ प्रतिशत, नार्इट्रोजन ० से २० प्रतिशत एवं आक्सीजन २२ प्रतिशत से ३१ प्रतिशत है ।
- दैवी कणों एवं मिट्टी की तुलना : मिट्टी के मुख्य घटक सिलिका एवं एल्युमिना हैं । मिट्टी में अन्य धातुओं के ऑक्साइड भी हैं । मिट्टी में कार्बन का अनुपात १ प्रतिशत से भी अल्प है, जबकि दैवी कणों में कार्बन का अनुपात ५० प्रतिशत से अधिक है । उसी प्रकार मिट्टी में नाइट्रोजन का परिमाण नगण्य है जब कि दैवी कणों में नाइट्रोजन ० से २० प्रतिशत है । इससे यह सिद्ध होता है कि ये कण पृथ्वी पर उत्पन्न नहीं हुए हैं तथा उसके उपरांत उन्हें परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी, साधक, उनके उपयोग की वस्तुओं एवं वातावरण में प्रक्षेपित नहीं किया गया है ।
- वायुमंडल एवं दैवी कणों की तुलना : वायुमंडल में ७८ प्रतिशत नाइट्रोजन एवं २१ प्रतिशत ऑक्सीजन है, किंतु कार्बन का अनुपात नगण्य है । तथापि दैवी कणों में कार्बन का अनुपात ५० प्रतिशत से अधिक है । इससे यह सिद्ध होता है कि दैवी कणों की निर्मिति वायुमंडल से प्राकृतिक रूप से असंभव है । इसकी निर्मिति संकल्प से हो सकती है अथवा र्इश्वरीय नियोजन के फलस्वरूप ।
- मानव शरीर एवं दैवी कणों की तुलना : मानव शरीर में मूलत: ६५ प्रतिशत ऑक्सीजन, १८ प्रतिशत कार्बन, १० प्रतिशत हाइड्रोजन एवं ३ प्रतिशत नाइट्रोजन है । दैवी कणों में हाइड्रोजन का अनुपात ० प्रतिशत है । तथापि यदि मानव शरीर, मिट्टी अथवा वायुमंडल के घटकों की तुलना दैवी कणों से की जाए, तब यह विदित होता है कि दैवी कणों के घटक मानव शरीर के रासायनिक घटकों से मेल खाते हैं ।
सर्वप्रथम ये कण परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के शरीर पर दिखे थे । उसके उपरांत वे कुछ संतों तथा कुछ साधकों के शरीर पर भी दिखे । ये कण र्इश्वरीय चैतन्य के संचय का प्रकटीकरण हैं जो आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगत व्यक्तियों के शरीर द्वारा प्रक्षेपित होता है, अर्थात त्वचा पर कार्बनिक शक्ति के संचय के रूप में प्रकटीकरण ।
भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (मुंबर्इ, भारत) द्वारा किया गया विश्लेषण
सोने के रंग का स्वर्णिम | चांदी के रंग का | मूंगा | लाल | हरा |
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३. हाट (बाजार) में उपलब्ध चमकियों (ग्लिटर) के रासायनिक घटक
चमकियां प्रकाश को परावर्तित करनेवाले कण होती हैं (आकार लगभग १ मि.मी.२) । उनकी निर्मिति में कोपॉलीमर प्लास्टिक, अल्यूमीनियम वर्क, टाइटेनियम आक्साइड (TiO2), आयरन आक्साइड (FeO, Fe2O3) एवं मेटेलिक परावर्ती रंग. निऑन अथवा कुछ अन्य तत्त्व जो विभिन्न रंगों को परावर्तित कर सकते हैं, वे उपयोग में लाए जाते हैं ।
दैवी कणों में उपरोक्त हाट में उपलब्ध चमकियों के कोर्इ घटक नहीं हैं । यद्यपि चमकियां कुछ कुछ दैवी कणों की तरह दिखती हैं किंतु उनकी चमक में अंतर है । दैवी कण स्वयं दीप्तमान होते हैं एवं उनका अपना प्रभावलय होता है ।४. एक दोलक परीक्षण में पाया गया कि दैवी कणों में सकारात्मक उर्जा होती है ।५. वैज्ञानिकों के मत‘इंडियन एयरोबायलाजिकल सोसायटी’, के १७ वें अधिवेशन में पुणे में दिनांक १८ दिसंबर २०१२ को दैवी कणों पर प्रस्तुतिकरण किया गया । चर्चा सत्र में १७८ वैज्ञानिक उपस्थित थे । उनमें से कुछ की अभिव्यक्ति नीचे दी जा रही है ।
- डॉ.डी.एन. पाटील, प्राध्यापक, जीवविज्ञान, बी.जे.एस. कॉलेज वाघोली, पुणे : दैवी कणों से संबंधित आपका विश्लेषण भारतीय विज्ञान को एक महान देन है ।
- सुश्री दीपा कृष्णमूर्ति, प्राध्यापक, एम.ए.सी.एस, कॉलेज (एम.आइ.टी. से संलग्न), पुणे : ‘ मुझे वैज्ञानिक भाषा में अध्यात्म संबंधी स्पष्टीकरण मिला । दैवी कणों के संबंध में अधिक जानकारी प्राप्त करने की मेरी उत्कंठा है ।
- डॉ.एस. देबनाथ, माइक्रो बायालॉजिस्ट, जोरहाट, आसाम : दैवी कणों के विषय पर शोध आवश्यक है । इस विषय ने अत्यंत उत्कंठा निर्माण की है । इसके अनुसंधान से निश्चय ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे ।
- डॉ. सुरेखा काटकर, प्रमुख, वनस्पतिशास्त्र विभाग, इन्स्टीच्यूट आफ साइंस, नागपुर : ‘ दैवी कणों ’ के विषय में हम अनुसंधान करेंगे । यह विषय जिज्ञासा बढाती है । यदि विज्ञान एवं अध्यात्म एक साथ आ जाएं तो उससे संपूर्ण मानवता को मुक्ति का मार्ग प्राप्त होगा एवं सबका कल्याण होगा ।
- डॉ. ए. एच. राजासाब, स्नातकोत्तर शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग (वनस्पति शास्त्र) के प्रमुख, गुलबर्गा, करनाटक : ‘दैवी कण एक अच्छा विषय है । हमें इस पर अनुसंधान करना चाहिए’।
- डॉ. सुदाम जोगदंड, वनस्पति शास्त्र विभाग, यशवंतराव मोहिते महाविद्यालय, पुणे : ‘ दैवी कणों के प्रभाव से मन में अत्यंत उत्साह जागृत हुआ है एवं कार्यक्षमता में वृद्धि हुर्इ है । एयरोबायोलाजिस्ट विशेषज्ञों से मेरी प्रार्थना है कि वे दैवी कणों पर अनुसंधान करें एवं पता लगाएं कि इनका स्त्रोत क्या है वे कण कहां से प्रक्षेपित किए जाते हैं, इनका संचारण कैसे होता है, ये कितने प्रकार के होते हैं एवं उनका क्या प्रभाव पडता है ।
- प्राध्यापक अनुराधा जपे-कुलकर्णी, प्राध्यापक, यशवंतराव मोहिते महाविद्यालय, भारती विश्वविद्यालय, पुणे : दैवी कणों का विषय अपने आप में ही दिव्य है । केवल प्रबुद्ध (योग्य) लोगों को इस विषय पर अनुसंधान करना चाहिए तथा अनुसंधान आस्था के साथ होना चाहिए । मैं इस विषय पर अनुसंधान करना चाहती हूं । आपके द्वारा ‘दैवी कणों’ के संबंध में दी गर्इ जानकारी का मैं पूर्ण अध्ययन करूंगी ।
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