विषय सूची
- १. दैवी (आध्यात्मिक रूप से उन्नत) बालक – परिचय
- २. दैवी बालक (आध्यात्मिक रूप से उन्नत बालक) कौन हैं ?
- ३. दैवी बालक (आध्यात्मिक रूप से उन्नत) क्यों जन्म ले रहे हैं ?
- ४. कितने दैवी बालक जन्म ले रहे हैं ?
- ५. कहां तथा किनके बालक दैवी बालक के रूप में जन्म लेते हैं ?
- ६. दैवी बालकों के क्या गुण हैं ?
- ७. दैवी बालकों (आध्यात्मिक रूप से उन्नत) के जन्म लेने की आध्यात्मिक घटना का सूक्ष्म चित्र
- ८. वातावरण पर दैवी बालकों की उपस्थिति का प्रभाव
१. दैवी (आध्यात्मिक रूप से उन्नत) बालक – परिचय
१९७० के दशक में नेन्सी एन टेप्पे ने इंडिगो बालक का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें वैसे बालक थे, जिन्हें माना जाता था कि वे विशिष्ट, असाधारण तथा कभी-कभी अतींद्रिय गुण अथवा क्षमता से संपन्न हैं । वर्ष १९९० में ग्रंथों की श्रृंखला के प्रकाशित होने तथा अगले दशक में अनेक चलचित्रों के प्रदर्शित होने से इंडिगो बालक का सिद्धांत, सभी की उत्सुकता का विषय बन गया । उसके उपरांत वैसे विशिष्ट बालकों को अनेक पर्यायवाची शब्द दिए गए जैसे क्रिस्टल बालक, रेनबो बालक, स्टार बालक, साइकिक बालक इत्यादि ।
SSRF तथा अध्यात्म विश्वविद्यालय ने भी, अनेक वर्षों में वैसे असाधारण बालकों का निरीक्षण (पूर्णतः आध्यात्मिक दृष्टिकोण से) किया है, जिन्होंने वर्तमान काल में जन्म लिया है तथा उनमें उच्च आध्यात्मिक क्षमता है । वे जन्म से ही आध्यात्मिक रूप से उन्नत हैं (अर्थात जन्म से ही उनका आध्यात्मिक स्तर उच्च है) । हमने उनके लिए एक विशेष संज्ञा निश्चित किया है और वो है दैवी बालक । ये बालक केवल छठवीं ज्ञानेंद्रिय, दूरसंवेदन क्षमता (टेलीपेथी) अथवा अतींद्रिय-दृष्टि क्षमता से प्रतिभाशाली नहीं हैं । विकसित छठवीं इंद्रिय के माध्यम से हमारे आध्यात्मिक शोध दल को ज्ञात हुआ कि वे उच्च आध्यात्मिक स्तरवाले हैं तथा ब्रह्मांड के उच्च सकारात्मक सूक्ष्म-लोकों से आए हैं । इस अवसर का लाभ उठाते हुए हम विश्व के साथ इस आध्यात्मिक घटना पर किए गए आध्यात्मिक शोध, इन बालकों का महत्व तथा वर्तमान अशांत काल में उनके जन्म का क्या उद्देश्य है, इसे साझा करेंगे ।
इस खंड में, हम भिन्न-भिन्न आयुवर्ग के दैवी बालकों के प्रकरण अध्ययन तथा अन्य सामान्य बालकों से उनका आचरण कैसे भिन्न है, यह देखेंगे ।
२. दैवी बालक (आध्यात्मिक रूप से उन्नत बालक) कौन हैं ?
सभी माता-पिता का सपना एक प्रतिभाशाली बालक का होता है;एक ऐसा बालक जो सांसारिक विद्याओंमें, जैसे भाषाओंके सीखने, गणित के प्रश्नों को सहजता से हल करने, अत्युच्च वैज्ञानिक तर्कशक्ति, कठिन संगीत सरगमों को सीखना तथा अन्य विविध कलाओंमें स्वाभाविक तथा असाधारण क्षमता दिखाए । दूसरी ओर वैसे बालक जो उच्च स्तरीय छठवीं ज्ञानेंद्रियवाले हों और ऐसे कहें कि मैं मृत व्यक्तियों अथवा अनिष्ट शक्तियों को देखता हूं, उनके अभिभावकों के प्रसन्न होने की संभावना अल्प होगी । अधिकतर अभिभावक नहीं जानते कि ऐसी बातें करनेवाले बालकों को कैसे संभाला जाए । वैसे बालक जो आध्यात्मिक आयाम के संदर्भ में स्वाभाविक समझ रखते हैं, उन्हें संभालने में उनके अभिभावक उतने सक्षम नहीं होते । यह भी सामान्यतः देखा जाता है कि यदि एक बालक ईश्वर के प्रति अत्यधिक भक्ति दर्शाता है तथा अपना पूर्ण जीवन आध्यात्मिक प्रगति एवं ईश्वर की सेवा में लगाना चाहता है, तब अधिकतर संभावना यह होगी कि उसे अपने अभिभावकों के अत्यधिक विरोध का सामना करना पड सकता है ।
अधिकतर लोग यह नहीं जानते कि जो बालक प्रतिभासंपन्न होते हैं, उदाहरण के लिए, छोटी आयु में ही जटिल संगीत की रचना करने की क्षमता उनमें हो, तो आध्यात्मिक स्तर पर उनके किसी जीवद्वारा प्रभावित होने की अत्यधिक संभावना रहती है । वह जीव सकारात्मक अथवा नकारात्मक, कोई भी हो सकता है । वास्तव में, अभिभावकों को मन में यह अंकित कर लेना चाहिए कि उनके बालकों के जीवन में भौतिक आयाम तथा मानसिक विचारों की अपेक्षा आध्यात्मिक आयाम का प्रभाव कहीं अधिक गहरा है ।
जब हम दैवी बालक शब्द का प्रयोग करते हैं, तब इससे हमारा तात्पर्य केवल प्रतिभाशाली बालक अथवा किसी विशिष्ट क्षेत्र में प्रतिभावान होने से नहीं है, अपितु दैवी बालक की पहचान उसके आध्यात्मिक स्तर से होती है । दैवी बालक ईश्वरप्राप्ति की स्वाभाविक इच्छा के साथ ही अपने उच्च आध्यात्मिक स्तर के कारण, कुछ प्रतिभाओंके प्रति रुचि दर्शा सकते हैं तथा उसमें श्रेष्ठता भी प्राप्त कर सकते हैं । अगले अनुच्छेद में, दैवी बालकों की प्रकृति तथा वे कहां से आए हैं, इसका निरीक्षण हम आध्यात्मिक दृष्टिकोण से करेंगे ।
हमारे लेख मृत्योत्तर जीवन तथा जन्म से पूर्व जीवन : गर्भधारण होने से पूर्व में हमने यह बताया है कि मृत्यु के उपरांत व्यक्ति के किस सूक्ष्म लोक में जाने की संभावना होती है । वर्तमान में, प्रचलित धारणा के विपरीत, लगभग २ प्रतिशत से भी न्यून व्यक्ति मृत्यु के उपरांत स्वर्ग लोक में जाते हैं और इससे भी न्यून संख्या में लोग ब्रह्मांड के उच्च सकारात्मक लोकों में जाते हैं । अधिकतर लोग मृत्यु के उपरांत भुवर्लोक में जाते हैं । यदि पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गए कर्म बुरे हुए तो दंड के स्वरूप वे पाताल के सात लोकों में से किसी एक लोक में भी जा सकते हैं ।
प्रायः ब्रह्मांड के उच्च सकारात्मक लोकों (महर्लोक तथा उससे ऊपर के लोक) से सूक्ष्म-देह पृथ्वी पर जन्म नहीं लेती । क्योंकि अस्तित्व के इन उच्चतर लोकों में, जीव अपने प्रारब्धानुसार लेन-देन वहीं पर समाप्त कर सकता है । अपने प्रारब्ध को समाप्त करने के लिए उन्हें पृथ्वी पर जन्म लेना आवश्यक नहीं होता । स्वर्गलोक से भी सूक्ष्म-देह प्रायः पृथ्वी पर पुर्नजन्म नहीं लेती । पृथ्वी लोक में जन्म लेनेवाले अधिकतर लोग भुवर्लोक से ही आते हैं ।
किंतु, ब्रह्मांड के उच्चतर लोकों से आध्यात्मिक रूप से उन्नत सूक्ष्म देह पृथ्वी की किसी आवश्यकता के लिए पृथ्वी लोक में जन्म लेना चयन करती है । यही आध्यात्मिक रूप से उन्नत सूक्ष्म देह जब पृथ्वी पर जन्म लेती है, तब उन्हें दैवी बालक कहते हैं । पिछले कुछ दशकों में हमारे ध्यान में आया है कि ५० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तरवाले दैवी बालकों के जन्म लेने में वृद्धि हुई है । इसका अर्थ है कि अपने पूर्वजन्मों में की गई साधना के कारण उनके जन्म के समय ही उनका आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से अधिक होता है ।
ऐसा क्यों हो रहा है तथा इस घटना में अन्य क्या सहायक है, इसका उल्लेख हम आनवाले खंड में करेंगे ।
३. दैवी बालक (आध्यात्मिक रूप से उन्नत) क्यों जन्म ले रहे हैं ?
जैसा कि हमने पहले बताया ब्रह्मांड के उच्च सूक्ष्म लोकों से उन्नत सूक्ष्म देह पृथ्वी पर किसी विशेष कार्य अथवा आध्यात्मिक आवश्यकता के लिए अपने जन्म लेने का समय तथा स्थान चुन सकती है । वर्ष १९९९-२०२३ तक पृथ्वी ग्रह अपने इतिहास में परिवर्तन की स्थिति से गुजर रहा है । ब्रह्मांड के सूक्ष्म लोकों में हो रहे सूक्ष्म युद्ध के कारण इस काल में पृथ्वी भी प्रभावित होगी । पूरे विश्व के वातावरण में आध्यात्मिक अशुद्धता की मात्रा की अति हो गई है । शुद्धिकरण तथा आंतरिक सुधार की प्रक्रिया के रूप में इस काल में हमें भयंकर घोर परिवर्तन का सामना करना होगा जिसमें प्राकृतिक आपदाएं तथा तृतीय विश्वयुद्ध सम्मिलित हैं । इसके उपरांत वर्ष २०२३ से हम विश्व के इतिहास में सकारात्मक काल में प्रवेश करेंगे, जिसे ईश्वरीय राज्य के नाम से जाना जाएगा, जो आध्यात्मिक नवीनीकरण का युग होगा । विश्व की लगभग आधी जनसंख्या समाप्त हो जाएगी, संसार की समझ में आएगा कि हमारी वर्तमान जीवनशैली तथा वर्तमान नेतृत्व ने हमें असफल बनाया तथा हमें इस समस्या में लाकर खडा कर दिया । वर्तमान समय में दैवी बालक अधिक संख्या में जन्म ले रहे हैं, बडे होने पर वे इस परिवर्तन को सरल बनाने में सहायता करेंगे । समय आने पर जीवन तथा नियमन के सभी पक्षों में अधिक आध्यात्मिक जागरूकता लाने में संसार का नेतृत्व करेंगे । ये बालक आध्यात्मिक रूप से समाज की प्रगति करने तथा एक स्थिर संसार बनाने में सहायता करेंगे ।
४. कितने दैवी बालक जन्म ले रहे हैं ?
ईश्वरीय राज्य को चलाने में सहस्रों दैवी बालकों की आवश्यकता होगी । SSRF ने सितंबर २०२० तक विकसित छठवीं इंद्रिय के माध्यम से पूरे विश्व में १,००० से अधिक वैसे बालकों की पहचान की है । अभी तक वे ब्रह्मांड के तीन सकारात्मक सूक्ष्म लोकों से आए हैं । आगे दी गई सारणी में दिखाया गया है कि ये बालक ब्रह्मांड के किस सूक्ष्म लोक से आए हैं ।
ब्रह्मांड का सकारात्मक सूक्ष्म लोक | दैवी बालकों की संख्या | प्रतिशतता |
---|---|---|
स्वर्ग | ८४० | ७९ प्रतिशत |
महर्लोक | २२५ | २१ प्रतिशत |
जनलोक | २ | नगण्य |
कुल | १,०६७ | १०० प्रतिशत |
स्रोत : आध्यात्मिक शोध (५ सितंबर २०२० को अद्यतन की हुई सारणी के अनुसार)
सारणी के संदर्भ में सामान्य टिप्पणियां तथा निरीक्षण :
१. ऊपर दी हुई सारणी में दर्शाए आंकडों में नित्य परिवर्तन दो कारणों से हो रहा है :
अ. जैसे-जैसे हमें और दैवी बालकों की पहचान हो रही है, उनकी संख्या सारणी में जोड दी जाएगी ।
आ. यदि दैवी बालकों के अभिभावक आध्यात्मिक रूप से अपने बालकों की सहायता नहीं करते अथवा इन दैवी बालकों ने स्वयं ही अपनी आध्यात्मिक उन्नति हेतु एकाग्रचित्त होकर ध्यान नहीं दिया, तब उनका आध्यात्मिक स्तर घट सकता है और इस कारण उन्हें इस सारणी में सम्मिलित नहीं किया जाएगा ।
२. हम इन बालकों के गुणों का निरीक्षण तथा अध्ययन उनके अभिभावकों की सहायता से कर रहे हैं, जिनकी पहचान हमने दैवी बालक के रूप में की है । इनमें से कुछ बालकों के संदर्भ में निरीक्षण तबसे किया गया है, जब वे मां के गर्भ में थे तथा अपनी होनेवाली मां के जीवन में उन्होंने सकारात्मक परिवर्तन लाए ।
३. ब्रह्मांड के सर्वोच्च लोक (जैसे – जनलोक, तपोलोक, सत्यलोक) के दैवी बालक दुर्लभ हैं । अधिकतर महर्लोक से आए साधक समाज में आध्यात्मिक जागरूकता में सकारात्मक मोड लाने हेतु पर्याप्त ढंग से आध्यात्मिक रूप से उन्नत होते हैं ।
४.दिसंबर २०२० तक, परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के मार्गदर्शन में (ऊपरोल्लेखित बालकों के अतिरिक्त) १३०० से अधिक वयस्क साधकों ने ६० प्रतिशत तथा इससे अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है । अन्य ११० को संतत्व अर्थात ७० प्रतिशत अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर की प्राप्ति हुई है । हमने साधकों के इस समूह का उनके जन्म से अध्ययन नहीं किया है, इसकी भी संभावना है कि ये जन्म से ही दैवी बालक रहे होंगे ।
५. कहां तथा किनके बालक दैवी बालक के रूप में जन्म लेते हैं ?
चूंकि ऐसे दैवी बालक आध्यात्मिक रूप से उन्नत होते हैं, इसलिए अन्यों की तुलना में दूसरों के साथ इनका लेन-देन अल्प होता है । इसका अर्थ है कि उनके प्रारब्ध तथा संचित कर्म अल्प हैं । वे अपने होनेवाले परिवार के साथ शेष २० से ३० प्रतिशत लेन-देन को समाप्त करने के लिए उस परिवार में जन्म लेते हैं । हमें ज्ञात हुआ है कि ऐसे विशेष दैवी बालकों के जन्म लेने की संभावना वहां अधिक होती है जब माता-पिता स्वयं साधक हों तथा जो नियमित रूप से साधना करते हों । यह ईश्वर द्वारा सुनिश्चित करने की पद्धति है कि दैवी बालकों को आध्यात्मिक पालन-पोषण मिले और उन्हें उनके आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर बढने की अनुमति मिले । तदनुसार, वे आजकल के अधिकांश बालकों के समान आधुनिक विज्ञान के चूहों की दौड का अनुसरण करने हेतु बाध्य नहीं होते ।
७० प्रतिशत वैसे सात्त्विक बालक भारत में जन्म लेंगे । शेष ३० प्रतिशत भारत के बाहर जन्म लेनेवाले हैं । ऐसा भारत की आध्यात्मिक शुद्धता के कारण है । भारत ही ईश्वरीय राज्य की स्थापना के समय आध्यात्मिक रूप से संसार का नेतृत्व करेगा । साथ ही हमने यह भी पाया कि अध्यात्म विश्वविद्यालय तथा SSRF समाज की आध्यात्मिक प्रगति हेतु अथक प्रयास से जुटा हुआ है, ईश्वर की कृपा से हम बहुत भाग्यशाली हैं कि आध्यात्मिक रूप से शुद्ध वैसे बालक संस्था से जुडे साधकों के परिवार में जन्म ले रहे हैं ।
६. दैवी बालकों के क्या गुण हैं ?
ईश्वरप्राप्ति के लिए इच्छुक साधकों को जैसे सांसारिक वस्तुओंमें कोई रुचि नहीं होती, ठीक उसी प्रकार उच्च सकारात्मक लोकों से जन्मे दैवी बालकों की भी रुचि सामान्य सांसारिक जीवन से संबंधित गतिविधियों में नहीं होती । उन्हें विद्यालय तथा महाविद्यालय का वातावरण अच्छा नहीं लगता, किंतु पढाई में विद्वान बनाने के लिए उनके अभिभावक उन्हें बाध्य करते हैं । यदि अभिभावकों को भान हो कि उनके बालकों में अध्यात्म के प्रति अत्यधिक झुकाव है तथा उनके जीवन का उद्देश्य ईश्वरप्राप्ति है, तब वे अपने बालकों को और अच्छे ढंग से सहायता करने में सक्षम होंगे । वैसे बालक केवल स्वयं प्रगति नहीं करते, अपितु अन्यों को भी ईश्वर की ओर बढने में सहायता करते हैं ।
– परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी, १८.१२.२०१०
६.१ शारीरिक रूप
वे प्रायः प्रसन्न तथा आनंदी प्रवृत्ति के होते हैं । वे शांतिप्रिय स्वभाव के होते हैं तथा अन्य बालकों की तुलना में अल्प रोते हैं । उन्हें साधारण जीवनशैली अच्छी लगती है, साथ ही सात्त्विक वस्त्र तथा भोजन उन्हें अच्छे लगते हैं । यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि केवल शारीरिक रूपरेखा के आधार पर निर्णय लेना धोखादायक हो सकता है क्योंकि अनिष्ट शक्तियां लोगों को मूर्ख बनाने के लिए वैसा सकारात्मक आचरण निर्मित कर सकती हैं ।
६.२ प्रभावलय (ऑरा)
अति विकसित छठवीं इंद्रिय के माध्यम से देखने पर ज्ञात हुआ कि वे आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक प्रभावलय से संपन्न होते हैं । नेन्सी एन्न टेप्पेद्वारा जब उन बालकों के चारों ओर नीला प्रभावलय देखा गया, तब उसके उपरांत ही इन बालकों को इंडिगो बालक की संज्ञा मिली । सूक्ष्म आयाम में देखने पर ज्ञात हुआ कि दैवी बालकों के भिन्न-भिन्न रंगों के प्रभावलय हैं । आध्यात्मिक शोध के माध्यम से हमें पता चला कि यह उनके पूर्व जन्मों की साधना मार्ग पर निर्भर करता है । वर्तमान युग में जन्म लेनेवाले दैवी बालकों के प्रकरण में वे मुख्यतः भक्तियोग का अनुसरण करनेवाले होते हैं, इसलिए वे हलके नीले रंग के प्रभावलय से संपन्न होते हैं ।
६.३ जिस सूक्ष्म लोक से दैवी बालक आए हैं, उसके आधार पर उनके आध्यात्मिक गुण
जिस सूक्ष्म लोक से दैवी बालक आए हैं, उसके आधार पर उनके आध्यात्मिक गुणों में परिवर्तन होता है ।
- स्वर्ग : जो बालक स्वर्ग लोक से जन्मे हैं, वे प्रायः कलाकार के गुणोंवाले होते हैं । उसका एक उदाहरण कु. अनास्तेसिया वाले (फ्रांस की एक बाल साधिका) हैं । उनके बचपन से हमने तितलियों को उनकी ओर आकर्षित होते देखा है, वे उनके हाथों पर बैठती हैं और उनके साथ उनके कक्ष में रहती हैं ।
- महर्लोक : इस सूक्ष्म लोक से आए बालक तुलनात्मक रूप से अधिक शांत वृत्तिवाले होते हैं और उनकी वाणी में स्पष्टता होती है । वे जटिल आध्यात्मिक सिद्धांतों का सरलीकरण करने तथा सामान्य लोगों को समझ में आए, उतने सरल शब्दों में वार्ता करने में सक्षम होते हैं । इसका एक उदाहरण एक पांच वर्षीय बालिका पूर्ति हैं, जो विकसित छठवीं इंद्रिय संपन्न हैं । वे वयस्कों के साथ जटिल आध्यात्मिक सिद्धांतों पर बात कर सकती हैं । वे स्वभाव दोष निर्मूलन का महत्व समझती हैं तथा उनमें पूरे संसार में अध्यात्मप्रसार की तीव्र तडप है ।
- सर्वोच्च सकारात्मक लोक : जो बालक सर्वाधिक सकारात्मक लोकों से जैसे जनलोक, तपोलोक तथा सत्यलोक (जो महर्लोक से परे हैं) से जन्म लेते हैं, वे अति उच्च आध्यात्मिक स्तर के साथ जन्म लेते हैं । उनके आध्यात्मिक गुण अति सूक्ष्म प्रकृति के होते हैं और उनका जन्म मुख्यतः मानवता को ईश्वरप्राप्ति की दिशा में ले जाने हेतु ईश्वरीय कार्य से संबंधित होता है । नीचे दी गई सारणी द्वारा ब्रह्मांड के विविध उच्चतर सकारात्मक लोकों से जन्म लिए बालकों के मध्य अंतर समझाया गया है ।
सर्वप्रथम ब्रह्मांड के सूक्ष्म लोक से आई सूक्ष्म देह का पृथ्वी पर जन्म लेने का कारण अथवा कार्य समझ लेते हैं ।
१. भुवर्लोक :
अ. भुवर्लोक से आई सूक्ष्म देह लगभग अपने सारे जन्म पृथ्वी पर व्यतीत कर देती है । वैसी सूक्ष्म देह के अपने पिछले जन्मों में किए गए पाप तथा पुण्य दोनों होते हैं, जो साधना न करने के कारण अल्प नहीं होते । उसके अनुसार, जन्म के समय उनके लेन-देन की तीव्रता तथा मात्रा पर्याप्त एवं महत्त्वपूर्ण होती है । परिणामस्वरूप, प्रारब्ध भोगने तथा अपने लेन-देन का कुछ भाग पूर्ण करने के लिए वे पृथ्वी लोक के अस्तित्व में जन्म लेती हैं । यदि वे जिज्ञासु तथा समझदार होंगी, तो साधना आरंभ कर सकती हैं ।
आ. यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि पृथ्वी लोक में जन्म लेना सरल नहीं है । पिछले जन्मों के कुछ पुण्यदायी कर्मों के कारण सूक्ष्म देह मानव जीवन प्राप्त करने के योग्य बनती हैं । तब भी वैसी सूक्ष्म देहों के संचित में पाप अधिक तथा पुण्य अल्प मात्रा में होते हैं । परिणामतः उनके प्रतिकूल परिस्थितियों में जन्म लेने की संभावना होती है अथवा पाप से निर्मित प्रारब्ध को समाप्त करने में उन्हें समस्याएं आती हैं ।
२. स्वर्ग : अपने संचित को समाप्त करने के लिए वे पुनः पृथ्वीलोक में जन्म लेती हैं । यद्यपि उन्होंने अपने पिछले जन्म में साधना की थी, तदापि साधना की इच्छा तथा गति पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुई होती । इस कारण, वे साधना में गति पाने हेतु जन्म लेते हैं । वे एक विशिष्ट अथवा आध्यात्मिक कार्य में सहभागी होने, जैसे ईश्वरीय राज्य की स्थापना में सहभागी होने के लिए भी पृथ्वी पर जन्म लेती हैं ।
३. महर्लोक (ब्रह्मांड का चौथा सकारात्मक लोक) : इस लोक से सूक्ष्म देह मुख्य रूप से आध्यात्मिक कार्य जैसे ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु सत्सेवा में सम्मिलित होने तथा अपनी साधना को बढाने तथा प्रगति करने हेतु जन्म लेती हैं ।
४. जनलोक तथा तपोलोक (ब्रह्मांड का पांचवा तथा छठा सकारात्मक लोक) : ये उन्नत सूक्ष्म देह ईश्वर की इच्छा से पृथ्वी लोक में जन्म लेती हैं । वे ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु कार्य करती हैं तथा रज-तम (आध्यात्मिक अशुद्धि जो कि समाज में व्यापक स्तर में विद्यमान है) से साधकों की रक्षा करती हैं ।
गुण | भुवर्लोक | स्वर्ग | महर्लोक | जनलोक | तपोलोक |
---|---|---|---|---|---|
प्रारब्ध की मात्रा (संचित) (प्रतिशत) | ९० | ६० | ३० १ | १० | ४२ |
स्वभाव दोष की मात्रा | ८० | ५० | २० | १० | ५३ |
माया से आसक्ति | ७० | ५० | २० | ४ | ० |
र्इश्वर से संधान (प्रतिशत) | ० | १० | ५० | ७० | ९० |
भावनाएं (प्रतिशत) | ५० | ३० | २० | ० | ० |
अहं (प्रतिशत) | ३०४ | २३ | १२ | ८ | ४३ |
उनसे संबंधित मुख्य र्इश्वरीय तत्व | र्इश्वरीय शक्ति (२० प्रतिशत५) | भाव (व्यक्त तथा अव्यक्त | चैतन्य | आनंद | शांति |
कष्टदायक शक्ति के कारण कष्टदायक स्पंदनों की प्रतिशत मात्रा | ३०६ | ५ | ० | ० | ० |
टिप्पणियां
१. यह प्रारब्ध मुख्यतः समष्टि प्रारब्ध से संबंधित होता है । कृपया समष्टि प्रारब्ध पर हमारे ब्लॉग का संदर्भ लें ।
२. चूंकि वे देहधारी हैं, उनकी भौतिक देह से यह प्रारब्ध जुडा होता है ।
३. पृथ्वी पर जन्म लेने के कारण, एक नकारात्मक आवरण से वे आच्छादित हो सकते हैं क्योंकि वे उच्चतर लोक से निम्नतर लोक में अवक्रमित हुए हैं ।
४. वर्तमान काल (कलियुग) में एक सामान्य व्यक्ति का अधिकतम अहं ३० प्रतिशत हो सकता है । तब भी पृथ्वी पर कुछ दुष्ट लोगों जैसे भ्रष्ट राजनीतिज्ञ तथा नेता, आतंकवादी इत्यादि का अहं ४० प्रतिशत तथा उससे भी अधिक हो सकता है ।
५. मुख्य रूप से प्राण शक्ति के रूप में । संदर्भ हेतु देखें हमारा लेख –हमारी निर्मिति किससे हुई है ?
६. अनिष्ट शक्तियों के कारण लोगों से नकारात्मक स्पंदन निकलते हैं ।
७. दैवी बालकों (आध्यात्मिक रूप से उन्नत) के जन्म लेने की आध्यात्मिक घटना का सूक्ष्म चित्र
साधकों को हमारे आध्यात्मिक शोध का यह दृश्यमयी भाग अति विकसित छठवीं इंद्रिय दृष्टि क्षमता के माध्यम से प्राप्त हुआ ज्ञान है । ये साधक आध्यात्मिक आयाम में देख पाने में सक्षम हैं और उन्हें ज्ञात हुई बातें वे चित्र तथा शब्दों के रूप में प्रदर्शित करते हैं । आगे दिए गए चित्र पूजनीया योया वालेजी द्वारा चित्रित हैं, जो दर्शाती हैं कि ईश्वरीय कार्य में सहभागी होने के लिए ये दैवी सूक्ष्म देह कैसे साथ में जन्म लेती हैं । आध्यात्मिक रूप से मानवता के उत्थान हेतु, आध्यात्मिक पथ पर बढने हेतु उनका मार्गदर्शन तथा अंततः आत्मज्ञान होने में सहायता करने के लिए ये दैवी बालक अनेक युगों से समूह में आ रहे हैं ।
८. वातावरण पर दैवी बालकों की उपस्थिति का प्रभाव
एसे दैवी बालकों की उपस्थिति के कारण, आसपास के वातावरण में अपरिमित सकारात्मक आध्यात्मिक प्रभाव होता है । उनसे प्रक्षेपित होते सत्व प्रधान स्पंदनों के कारण, वातावरण आध्यात्मिक स्तर पर सतत शुद्ध होता रहता है । उनका अवचेतन मन साधना में ही लीन रहता है, इसलिए वे जहां जाते हैं, वातावरण में वैसे ही विचार व्याप्त होते रहते हैं । जब वे हंसते हैं तब उनकी हंसी से वातावरण में आनंद के कण प्रक्षेपित होते हैं और इस कारण वातावरण की शुद्धि होती है । उनकी उपस्थिति के कारण, नकारात्मकता अथवा अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का नाश होता है । उनकी उपस्थिति में रहकर हमारा शरीर आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होता है ।
उनके सात्त्विक संगत अथवा सत्संग के कारण, मानवजाति को अत्यधिक आध्यात्मिक लाभ होगा । वैसे बालक केवल आध्यात्मिक स्तर पर बातें करते हैं । जब सामान्य व्यक्ति उन्हें सुनते हैं, उनके सांसारिक विचार तथा भावनाएं घट जाती हैं और/अथवा निष्क्रिय हो जाती हैं और वे भी आध्यात्मिक स्तर पर रहने में सक्षम हो जाते हैं । दैवी बालकों के सत्संग के कारण, हमारी बुद्धि मान लेती है कि हमें साधना करनी है तथा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना है । उनके प्रभाव तथा उदाहरण से ईश्वर पर हमारी श्रद्धा को बल मिलता है । उनमें नेतृत्व के गुण होते हैं और इसलिए वे स्वतः ही अन्यों की भलाई तथा साधना हेतु प्रोत्साहित करने में उत्तरदायित्व लेते हैं ।