साधकों द्वारा प्रयुक्त रसोर्इघर के बर्तनों पर स्वतः खरोंच के चिन्ह उभरने का प्रकरण अध्ययन
१. परिचय
यह प्रकरण अध्ययन वर्ष १९९८ से SSRF के मार्गदर्शन में साधना करनेवाले श्री. एवं श्रीमती राजंदेकर तथा उनके परिवार द्वारा उपयोग किए जानेवाले रसोर्इघर के बर्तनों में उभरे खरोंचों के चिन्ह के संदर्भ में है । उन्होंने अपना पूर्ण समय अध्यात्मप्रसार तथा अन्यों को साधना करने का महत्त्व समझने में सहायता करने के लिए समर्पित किया है ।
२. आक्रमण से पहले के अनुभव
वर्ष २००४ में खरोंचों के उभरने के पूर्व परिवार के सभी सदस्यों को कष्ट में वृद्धि अनुभव हुर्इ।
श्री. एवं श्रीमती राजंदेकर के घर में अनुभव हुए कष्टों के कुछ उदाहरण इस प्रकार थे :
- प्रतिदिन वे आरती करते थे । आरती के शब्द सबको भली-भांति स्मरण थे, तब भी आरती गाते समय वे कुछ भाग भूल जाते अथवा एक ही परिच्छेद को पुनः-पुनः गाते ।
- झाडू लगाते समय अत्यधिक मात्रा में गंदगी अथवा कचरा आ जाता ।
- बर्तन धोते समय उन्हें सिर में तीव्र वेदना होती ।
- बिना किसी तर्कसंगत कारण के वे प्रायः परिजनों के मध्य चिडचिडाहट अनुभव करते ।
आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी :
अनिष्ट शक्तियों द्वारा किया जानेवाला आक्रमण प्रायः कष्ट में वृद्धि के उपरांत होता है । यह विविध प्रकार से अनुभव किया जा सकता है ।
- उदाहरण के लिए असामान्य थकान, शरीर में वेदना होना, ऊर्जा का स्तर घट जाना इत्यादि ।
- मानसिक स्तर पर अकारण ही चिडचिडाहट में वृद्धि हो जाना, नकारात्मक विचार, आत्महत्या के विचार, निराशा इत्यादि अनुभव हो सकते हैं
- आध्यात्मिक स्तर पर साधना के प्रति उत्साह अल्प हो जाना, साधना करने में बाधाएं आना इत्यादि अनुभव हो सकते हैं ।
उसी वर्ष, जब एक संत परम पूजनीय कालीदास देशपांडेजी उनके घर आए थे, तब उन्होंने भी बताया कि घर में कष्टदायक स्पंदन अनुभव होते हैं ।
आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी :
संत आध्यात्मिक आयाम को अचूकता से समझने में सक्षम होते हैं ।
३. वास्तविक आक्रमण
तब एक दिन अनाज धोते समय श्रीमती आरती राजंदेकर के अकस्मात ध्यान में आया कि उनके घर के सभी बर्त्तनों में छेद के तथा खरोंच के चिन्ह थे । वे चकित थीं क्योंकि भोजन बनाते समय अथवा बर्तन स्वच्छ करते समय उन्होंने किसी भी धारदार वस्तु का प्रयोग नहीं किया था । उन्होंने परिवार के अन्य सदस्यों को उसके संदर्भ में पूछा; किंतु वे लोग भी इन खरोंचों के चिन्ह के विषय में कुछ भी नहीं बता सके ।
आगे दिए गए स्लार्इड शो में बर्तनों पर उभरे विविध खरोंचों के चिह्न दर्शाए हैं, मानो जैसे किसी धारदार वस्तु से उन्हें कुरेदा गया हो ।
इसके पश्चात, श्रीमती राजंदेकर अनिष्ट शक्तियों से गंभीर रूप से प्रभावित हुर्इं । उन खरोंच के चिन्हों को ढूंढने से पूर्व उन्हें जो कष्ट हो रहे थे, अब कर्इ गुना बढ गए थे । वे निरंतर ३ माह तक पीडित रही । उनके पेट में अत्यधिक दर्द होता था और बडी कठिनार्इ से वे खा पाती । वे मूत्रनलिका संक्रमण से भी पीडित हो गर्इ ।
उस समय उनके पिता स्व. राजाभाऊ देशपांडे उनके घर आए । उन्हें भी अनिष्ट शक्तियों के कारण अत्यधिक कष्ट अनुभव होने लगे । उन्हें अनिष्ट शक्तियों की उपस्थिति का भान होता और उसके उपरांत वे विलाप करने लगते । उनका व्यवहार एकदम असामान्य तथा अनिश्चित हो गया था । उदाहरण के लिए उन्हें क्रोध के दौरे पडते और वे अपना सिर भित्ति (दीवार) पर पटकते । वे मानसिक रूप से अस्थिर हो गए थे, अनिष्ट शक्तियों अथवा अन्य किसी भी विषय में बडबडाते रहते । वे लंबे समय तक घर से बाहर चले जाते । वे रोगग्रस्त हो गए थे और अल्प मात्रा में भोजन करते थे ।
४. सूक्ष्म विश्लेषण तथा आध्यात्मिक उपचार
श्री. एवं श्रीमती राजंदेकर ने ये सारी घटनाएं परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी को बतार्इ । उन्होंने बताया कि ये अनिष्ट शक्तियों के कारण ही हुआ था । उन्होंने आध्यात्मिक उपचार बताए जैसे बर्तनों को पवित्र जल (विभूति मिश्रित जल) से धोना, रसोर्इघर में अगरबत्ती जलाना, नामजप करना इत्यादि । उन्होंने श्रीमती राजंदेकर के लिए विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार जैसे कुदृष्टि हटाना (अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित व्यक्ति को लगी बुरी नजर उतारने की एक धार्मिक विधि) का परामर्श दिया । उनकी कुदृष्टि हटाने के लिए नारियल को सात बार उनके चारों ओर घुमाने के लिए कहा गया । यह सात दिनों तक करना था । इन आध्यात्मिक उपचारों को करने के उपरांत कष्ट न्यून हो गए ।
आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी :
नारियल का प्रयोग कर कुदृष्टि उतारने की धार्मिक विधि में नारियल को व्यक्ति के चारों ओर प्रायः तीन बार घुमाया जाता है । किंतु इस प्रकरण में आध्यात्मिक उपचार एक प्रगत आध्यात्मिक मार्गदर्शक द्वारा बताया गया था । एक प्रगत संत द्वारा उपचार होने के लिए किए गए संकल्प का लाभ लेने के लिए यह आवश्यक है कि उनके द्वारा बताए विशिष्ट परामर्श का शत-प्रतिशत पालन किया जाए ।
आक्रमण की तीव्रता के कारण, आज भी बर्तनों में छेद के तथा खरोंच के चिन्ह हैं । किंतु उनसे प्रक्षेपित होनेवाली काली शक्ति की तीव्रता घट गर्इ है ।