SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।
टिप्पणी : इस प्रकरण अध्ययन की पृष्ठभूमि समझने के लिए और ऐसी घटनाएं विशेष रूप से SSRF के संबंध में क्यों हो रही हैं, कृपया पढें – भयावह अतींद्रिय घटनाएं – प्रस्तावना
एक साधिका के घर के पूजाघर में किस प्रकार देवताओं तथा संतों के चित्र बिना किसी स्पष्ट कारण के स्वतः ही जल गए, इस संदर्भ में यह प्रकरण अध्ययन है । यह साधिका परम पूजनीय डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना कर रही हैं ।
उस दिन जो भी हुआ उसका विवरण श्रीमती पोकरे के शब्दों में नीचे प्रस्तुत है ।
यह घटना ३ मार्च २००४ को हुर्इ । पूरी सुबह मुझसे भगवान का नामजप एकाग्रता से और अच्छे से हो रहा था । दोपहर में मुझे हलका बुखार हो गया साथ ही शरीर में भी वेदना हो रही थी । मुझे लगा जैसे मेरे सिर पर भारी वजन रखा है । मैं मरनेवाली हूं, निरंतर ऐसे विचार आ रहे थे । मैंने भगवान श्रीराम से आर्तता से प्रार्थना करना आरंभ किया । मुझे अपने सिर के सर्व ओर काली शक्ति का आवरण अनुभव हो रहा था ।
आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी : अनेक बार साधक स्वतः दहन की घटना से पूर्व ही कष्ट (शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर) अनुभव करते हैं,क्योंकि उनकी छठवीं इंद्रिय होनेवाले आक्रमण के प्रति संवेदनशील होती है ।
उस संध्या को, मैं परम पू्ज्य शामराव महाराज की जीवनी पढने लगी । उस पुस्तक को पढते समय एक सूत्र ने मेरे नेत्रों को स्थिर कर दिया और वह था कि अनिष्ट शक्तियां देवताओं के चित्रों पर क्यों आक्रमण करती हैं । और ठीक उसी रात्रि स्वतः दहन की घटना घटी ।
जब मैं रात में सो रही थी, मुझे आभास हुआ कि मुझे कष्ट देने के लिए एक काला सूक्ष्म रूप मेरे निकट आ रहा था । मैं अत्यंत भयभीत हो गर्इ । मैंने ऊंचे स्वर में देवी दुर्गा तथा हनुमानजी का नामजप करना प्रारंभ किया । मैंने उठकर घर में सर्व ओर पवित्र विभूति को फूंका तथा विभूति मिश्रित जल पिया । मैंने घडी की ओर देखा, उस समय मध्यारात्रि थी । ऐसा लगा जैसे कोर्इ मुझे बता रहा हो कि अनिष्ट शक्तियों की शक्ति में अब वृद्धि होगी । भय के कारण मुझसे भगवान का नामजप और आर्तता तथा निरंतरता से होने लगा ।
मैंने दुर्गादेवी तथा हनुमानजी से घर के सभी लोगों की रक्षा करने की प्रार्थना कर नामजप करना प्रारंभ किया । मुझे दुर्गादेवी तथा हनुमानजी के अस्तित्व का भान होने लगा, जिससे और अधिक सुरक्षित लगने लगा । किंतु पुनः मुझे अनिष्ट शक्तियों का स्वर सुनार्इ दिया कि, ‘‘जब तुम सो जाओगी तब हम आक्रमण करेंगे ।’’ मैंने स्वयं को दुर्गादेवी की गोद में सोते हुए देखा । गहरी निद्रा में सोने से ठीक पूर्व मैंने थोडा धुंआ देखा; किंतु मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया ।
अगली सुबह लगभग ७.३० बजे, मैं पूजाघर में पूजा करने गर्इ तब मैंने देखा कि घर में हमारा लकडी का मंदिर बीच में से जला हुआ था ।
इस लेख के सर्व ओर भगवान श्रीकृष्ण के नामजप का मंडल (बॉर्डर) बनाया गया है, जिससे पाठकों को ऊपर दिए गए चित्र अथवा जानकारी को पढते समय कष्ट न हो ।
पूजाघर में स्थित देवी महालक्ष्मी का चित्र (जो परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में विकसित छठवीं इंद्रिय युक्त साधकों द्वारा बनाया गया है) एक ओर से जल गया था, साथ ही धातु के कलश पर रखा नारियल भी जल गया था । यद्यपि देवी महालक्ष्मी के चित्र के बगल में रखे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के चित्र को कुछ भी नहीं हुआ था । दहन इस प्रकार का था जैसे पूजाघर में विस्फोट हुआ हो, तथापि ऐसा कुछ होने का कोर्इ भी स्पष्ट कारण नहीं था । हम प्रायः प्रतिदिन इस कक्ष में सामूहिक रूप से नामजप करते हैं । परंतु इस घटना के उपरांत मेरी इस प्रकार नामजप करने की इच्छा नहीं हुर्इ । पूजाघर के निकट मुझे अपने सिर के सर्व ओर दबाव में वृद्धि तथा चिडचिडाहट अनुभव हुर्इ ।