कु. कल्याणी गांगण वर्ष १९९७ से परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के मार्गदशन में साधना कर रही हैं । पिछले इतने वर्षों में वह परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कार्य में अध्यात्मप्रसार से लेकर, रसोई में अन्य साधकों के लिए भोजन तैयार करना और सूक्ष्मज्ञान-विभाग में सहभागी होने जैसी अनेक सेवाएं करती रही हैं ।
इस लेख में वह अपने शब्दों में बताती हैं कि कैसे उनके पास रखे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के चित्र पर अपनेआप तैलीय धब्बे उभर आए ।
मैं वर्ष २००६ में भारत के गोवा में स्थित एस.एस.आर.एफ. शोध केंद्र और आश्रम में रह रही थी । मेरे कक्ष की सहसाधिकाओं में से एक पूजनीया (कु.) अनुराधा वाडेकरजी थीं, जो उस समय परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कार्य में अध्यात्मप्रसार की सेवा कर रही थीं । इस सत्सेवा के अंतर्गत उन्हें अत्यधिक यात्रा करनी पडती थी । अनेक बार उनसे मिलनेवाले साधक उन्हें आभार चिन्ह के रूप में वस्तुएं भेंट दिया करते थे । चूंकि पूजनीया (कु.) अनुराधा वाडेकरजी के पास समय का अभाव था, इसलिए मैं उनकी निजी वस्तुओं के रखरखाव में उनकी सहायता किया करती थी । उनकी वस्तुओं के रखरखाव में सहायता के समय मैं उनके लिए आवश्यक वस्तुएं रखकर अन्य वस्तुएं दूसरों को दे दिया करती थी । एक बार उनकी वस्तुओं की व्यवस्था करते समय मुझे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का एक चित्र मिला । यह चित्र एकदम अलग था, जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था । मेरे आकर्षण को देखते हुए पूजनीया (कु.) अनुराधा वाडेकरजी ने वह चित्र मुझे भेंट कर दिया ।
अत्यंत कृतज्ञता अनुभव करते हुए मैंने सहर्ष वह चित्र ले लिया । उस समय चित्र पर कोई धब्बे नहीं थे । कुछ महीनों के उपरांत मैंने चित्र पर कुछ चिकनाहट देखी । मैंने यह सोचते हुए उसकी अनदेखी की कि अवश्य ही चित्र फ्रेम से चिपक गया होगा । पर जब भी मैं चित्र की ओर देखती, मुझे कुछ कष्ट अनुभव होता । मैंने तब सूक्ष्म विभाग के साधकों से नहीं पूछा कि कहीं चित्र के साथ सूक्ष्म स्तर पर कुछ अनुचित तो नहीं है ? मुझे चित्र से अत्यधिक लगाव था और सोचती थी कि परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का चित्र होने के कारण इसमें चैतन्य होगा । इसलिए मैं उसे अपने पास ही रखी ।
वर्ष २००९-२०१० में सूक्ष्म विभाग के साधक अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित साधकों की वस्तुएं संग्रह कर रहे थे । तब मैंने सूक्ष्म विभाग की विकसित छठवीं इंद्रिय युक्त साधिका पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को वह चित्र दिखाया । पर तब तक चित्र पर बड़ी मात्रा में तैलीय धब्बे उभर चुके थे । चित्र को देखते हुए पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने कहा कि जब मुझे पहली बार चित्र पर तैलीय धब्बे उभरने का अनुभव हुआ, तब ही इसे संग्रह हेतु दे देना चाहिए था, और यह भी बताया कि यह अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण के कारण हुआ था ।