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विषय सूची
१. पृष्ठभूमि तथा प्रयोग का उद्देश्य
इस परीक्षण में पिप उपकरण के प्रयोग से हमने लैटिन तथा देवनागरी लिपि के अंकों की तुलना की । यहां भी, संस्कृत (देवनागरी लिपि) के अंक दो से स्पंदनों से उत्पन्न रंगों ने लैटिन-अंग्रेजी के अपने समकक्ष अंक की तुलना में अधिक अच्छे स्पंदन दर्शाए । यद्यपि हमने प्रयोग में एक और पहलू जोड दिया ।
यदि हम देवनागरी लिपि की अक्षर शैली में परिवर्तन कर दें, तो क्या हमें अंकों से और अच्छे स्पंदन प्राप्त हो सकते हैं ? इसका उत्तर सकारात्मक था । नीचे एक ही अंक को दर्शानेवाले प्रत्येक अक्षर के लिए गए पिप चित्रों पर दृष्टि डालें ।
२. प्रयोग की संरचना कैसे थी
प्रयोग की संरचना उसी प्रकार की गई जैसे पिछले भाषांतरित पदों के मध्य सूक्ष्म स्पंदनों में अंतर का अध्ययन करनेवाले प्रयोग में की थी । यहां भी हमने विभिन्न अक्षरों के स्पंदनों में अंतर जानने के अध्ययन हेतु पिप तकनीक का प्रयोग किया ।
३. प्रयोग से संबंधित टिप्पणियां
अ) मूल पाठ्यांक – एक रिक्त श्वेत पृष्ठ
नीचे दिया गया चित्र श्वेत पृष्ठ के चारों ओर दिखाई देने वाले समस्त स्पंदनों के मूल पाठ्यांक को दर्शाता है ।
आ) अंग्रेजी (लैटिन लिपि) के अंक 2 से उत्सर्जित स्पंदन
अंग्रेजी अंक दो को प्रयोग के लिए रखने पर, पिप चित्र में रेतीले भूरे रंग में वृद्धि को देखा गया जो कि नकारात्मकता में वृद्धि होने को दर्शाता है । सकारात्मकता को दर्शाने वाला पीला रंग भी घटता हुआ दिखाई दिया ।
इ) संस्कृत (देवनागरी लिपि) में सामान्यतः व्यावसायिक रूप से उपलब्ध अक्षर शैली में लिखे अंक दो से उत्सर्जित होनेवाले स्पंदन ।
जब हमने संस्कृत के सामान्यतः व्यावसायिक रूप से उपलब्ध अक्षर शैली में लिखे अंक दो को रखा, तो अंग्रेजी के अंक 2 की तुलना में, हमने सकारात्मकता में वृद्धि पार्इ । पीले रंग का अनुपात दुगने से भी अधिक हो गया तथा नकारात्मकता दर्शाने वाला रेतीला भूरा रंग आधा हो गया ।
र्इ) महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में विशेष रूप से निर्मित अक्षर के प्रयोग से संस्कृत (देवनागरी लिपि) में लिखे अंक दो से उत्सर्जित होने वाले स्पंदन ।
इसके उपरांत, अधिक अच्छे आध्यात्मिक स्पंदन उत्सर्जित होने अथवा सात्त्विकता में वृद्धि हेतु हमने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में निर्मित की गई अक्षर शैली में लिखे संस्कृत के अंक दो को प्रयोग के लिए रखा । तथा जैसा हमने सोचा था वही हुआ, हमने सामान्य अक्षर की तुलना में सकारात्मकता में अधिक वृद्धि को देखा । सकारात्मकता को दर्शाने वाला चमकीला रंग उच्च मात्रा में दिखा । नकारात्मकता को दर्शाने वाला रेतीला भूरा एवं मटमैला नारंगी उल्लेखनीय रूप से घट गया ।
सारांश
विभिन्न अवलोकनों को सक्षेप में प्रस्तुत करते हुए, हमने मूल पाठ्यांक से प्रत्येक अक्षर में होने वाले परिवर्तन के साथ सकारात्मक तथा नकारात्मक रंगों को मिलाकर एक चार्ट बनाया है । नीचे दिए गए चार्ट में, हमने सकारात्मक स्पंदन को पीले में तथा नकारात्मक स्पंदनों को गहरे धूसर (ग्रे) रंग में दर्शाया हैं । दोनों रंग पिप चित्र में दिखनेवाले कुल स्पंदनों के प्रतिशत के रूप में व्यक्त हुए ।
- मूल पाठ्यांक तथा अंग्रेजी अंक 2 की तुलना में देवनागरी लिपि के अक्षरों में अधिक उच्च मात्रा में सकारात्मक स्पंदन थे ।
- जब हमने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में निर्मित सात्विक अक्षर शैली के पाठ्यांक लिए तो उसमें संस्कृत के सामान्य अक्षर शैली की तुलना में सकारात्मक स्पंदनों में उल्लेखनीय रूप से (६९ प्रतिशत से ८७ प्रतिशत तक) वृद्धि हुई ।
प्रत्येक अक्षर के साथ पिप चित्र में प्रत्येक रंग का अनुपात किस प्रकार परिवर्तित होता है इसकी विस्तृत जानकारी हमने नीचे की सारणी में दी है । कृपया ध्यान दें कि चित्र में रंगों के प्रतिशत क्षेत्र की गणना से हमने मेज तथा वस्तु को बाहर रखा है ।
४. विश्लेषण तथा निष्कर्ष
- किसी भी रचना के प्रस्तुतिकरण हेतु सबकी आवश्यकता के अनुसार प्रत्येक भाषा में अनेक अक्षर शैलियां उपलब्ध है । किंतु अक्षर शैली बनानेवाला व्यक्ति संभवतः इस बात पर कभी ध्यान नही देगा कि अक्षरों से आध्यात्मिक स्पंदन भी प्रक्षेपित होते हैं जो सम्पूर्ण लेख अथवा साहित्यिक कार्य को प्रभावित कर सकते हैं ।
- इस प्रयोग से, हमने देखा कि रचना से उत्सर्जित होने वाले सकारात्मक अथवा नकारात्मक स्पंदनों का निर्णय न केवल लिपि से निर्धारित होता है अपितु अक्षर की बनावट भी इसमें भूमिका निभाती है ।
नियम : लिपि के अक्षर का आकार-प्रकार किसी भी भाषा में रचित लेख से प्रक्षेपित होने वाले कुल स्पंदनों को परिवर्तित करता है ।
- महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधकों ने अपनी साधना के रूप में ऐसे अक्षरों को विकसित करने में अनेक माह व्यतीत किए । लेख में सकारात्मकता निर्माण करने के संबंध में इन संभावनाओं की कल्पना करने पर लगता है कि विश्वभर में यदि ऐसे अक्षर अपना लिए जाएं तो उसका पाठक पर कितना सकारात्मक प्रभाव होगा । विश्वभर में अक्षर रूपांकित करने वाले व्यक्ति अक्षर को बनाते समय इस पहलू का ध्यान रख सकते हैं । सात्विक अक्षर रूपांकित करने के लिए सूक्ष्म स्तर पर स्पंदनों को देखने के लिए छठवीं इंद्रिय की क्षमता का होना आवश्यक है ।