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संस्कृत लेख को मात्र देखने पर, कुछ प्रमुख निष्कर्ष आगे दिए गए हैं :
- पिप उपकरण द्वारा परीक्षण की गई ४ भाषाओं (अंग्रेजी, हिंदी, मराठी तथा संस्कृत) में से, संस्कृत में लिखित वाक्यों से सर्वाधिक सकारात्मक स्पंदन प्राप्त हुए । इन प्रयोगों को करते समय, लिपि तथा भाषा से संबंधित कुछ नियम स्पष्ट हुए ।
नियम १ जब किसी विषय वाक्य अथवा ग्रंथ को अन्य भाषा में अनुवादित किया जाता है, तो उसे जिस भाषा में अनुवादित किया जा रहा है उसके आधार पर सकारात्मकता अथवा नकारात्मकता में परिवर्तन होगा । नियम २ लिपि अथवा अक्षर का आकार अथवा स्वरूप एक निश्चित ध्वनि को दर्शाता है तथा उस अक्षर द्वारा जो सकारात्मकता अथवा नकारात्मकता उत्सर्जित होगी, वह ध्वनि उसका निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । नियम ३ लिपि में अक्षर का प्रकार/आकार किसी भी भाषा में लिखित उस ग्रंथ द्वारा उत्सर्जित समस्त स्पंदनों को उल्लेखनीय ढंग से परिवर्तित कर देता है । - किसी भी ग्रंथ (विषय सूची के अतिरिक्त) से उत्सर्जित होने वाले स्पंदनों का सर्वाधिक प्रभाव पाठक पर पडता है । स्पंदन जितने अधिक सकारात्मक होंगे, उसका भौतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर उतना ही अधिक सकारात्मक प्रभाव पडेगा । इसके विपरीत यदि किसी ग्रंथ में अधिक नकारात्मक स्पंदन विद्यमान है तो उससे नकारात्मक प्रभाव पडने की संभावना बढेगी । हमने देखा है कि सकारात्मक अथवा नकारात्मक स्पंदनों के दीर्घकालीन संपर्क में रहने पर व्यक्ति के स्वास्थ्य, प्रवृत्ति तथा निर्णयों पर प्रभाव पडता है । थोडा अधिक सूक्ष्म स्तर पर देखें तो भाषाओं तथा उनमें आधारभूत सकारात्मकता अथवा नकारात्मकता का समाज पर तथा जिस ढंग से हम जीवन जीते हैं एवं अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं उस पर भी समग्र प्रभाव पडेगा ।
- संस्कृत के साथ अन्य भाषाओं एवं लिपियों की तुलना करके और भी अधिक प्रयोग किए जा सकते हैं । इससे हमें विश्वास है कि ये प्रयोग मानवता को संचार तंत्र का अध्ययन करने के संबंध में अपने प्रयासों को किस ओर बढाना चाहिए इस हेतु दिशा प्रदान करेंगे ।
- मानव के प्रयासों का महत्वपूर्ण कारण प्रगति तथा विकास का विचार है । यह नियम भाषाओं पर भी लागू होगा । फिर भी कहीं न कहीं यह प्रकट होता ही है कि मानवजाति अपने मार्ग से भटक गई है तथा इन प्रयोगों के अनुसार जबसे उसने अंग्रेजी जैसी भाषाओं का चयन आधुनिक भाषा के रूप में किया है तब से वह वास्तव में पतन की ओर जा रही है ।
- इन प्रयोगों से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत के संत अपने ज्ञान को संस्कृत में क्यों संप्रेषित करते थे । इसका कारण था इसकी आध्यात्मिक शुद्धता । हमें यह विश्वास है कि इन निष्कर्षों से प्राप्त ज्ञान को यदि व्यावहारिक रूप से कार्यान्वित किया जाए, तो हमारी शिक्षा व्यवस्था के लिए तथा हम कैसे संवाद करते हैं इसमें भी इसके अच्छे परिणाम मिल सकते हैं । यह संस्कृत को विश्व की अग्रणी भाषा के रूप में पुनःस्थापित करने हेतु प्रबल कारण प्रदान करता है और इसलिए इसे प्रत्येक विद्यालय तथा विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का एक आतंरिक भाग होना चाहिए ।