१. परिचय
अपने आध्यात्मिक शोध में आधुनिक उपकरणों के उपयोग के समय, हमें यह ज्ञात हुआ कि शोध के साधन के रूप में उपकरणों की भूमिका सीमित ही होती है । उदाहरण के लिए, अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित तथा पीडारहित साधकों के कुंडलिनी चक्रों (आध्यात्मिक शक्ति केंद्र) पर मांसाहारी तथा शाकाहारी भोजन के प्रभावों के परिक्षण हेतु किए गए प्रयोग में, हमें यह ज्ञात हुआ कि अनिष्ट शक्ति के कष्ट से रहित ८० प्रतिशत साधकों के तथा कष्ट से पीडित १०० प्रतिशत साधकों के चक्रों की सक्रियता में मांसाहारी भोजन ग्रहण करने के उपरांत सुधार पाया गया ।
रोचक बात यह थी कि अपनी जागृत छठवीं इंद्रिय के माध्यम से हमारे सूक्ष्म-ज्ञान विभाग ने हमें बताया कि दोनों श्रेणियों के साधकों में हुए सुधार के कारण बहुत भिन्न थे ।
कष्ट रहित साधकों के प्रकरण में, चक्रों की सक्रियता में वृद्धि इसलिए हुई क्योंकि मांसाहारी भोजन से प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनों के विरुद्ध युद्ध करने की तैयारी में वे सक्रिय हो गए ।
इसके विपरीत, अनिष्ट शक्ति से पीडित साधकों के प्रकरण में, ऊपर के चक्रों में सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिकों द्वारा निर्मित नकारात्मक शक्ति के केंद्र, मांसाहारी भोजन में विद्यमान तमोगुण को सहजता से अवशोषित करने के लिए सक्रिय हुए थे ।
२. सूक्ष्म-ज्ञान विभाग द्वारा दी गई टिप्पणी
हमारे सूक्ष्म-ज्ञान विभाग ने सभी प्रयोगों के पाठ्यांको (रीडिंग) का सूक्ष्म-विश्लेषण किया । उनके सूक्ष्म-विश्लेषण ने दर्शाया कि उस समय, जैसा उपर्युक्त उदाहरण में बताया गया, उपकरण द्वारा दिए गए दो समान पाठ्यांको के मूल कारण पूर्णतः विपरीत थे । किंतु, आधुनिक वैज्ञानिक जगत, समान पाठ्यांको (रीडिंग) को समान घटना मानता है । इस परिप्रेक्ष्य से, सूक्ष्म-ज्ञान विभाग ने शोध में वैज्ञानिक उपकरणों की मर्यादाओं तथा दैनिक जीवन में निदानकारी साधन के रूप में उनकी भूमिका को समझाया ।
२.१ केवल आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति ही निश्चित पाठ्यांक का मूल कारण समझ सकता है
उपकरण द्वारा दी गई जानकारी लगभग ३० प्रतिशत तक अचूक हो सकती है तथा केवल स्थूल स्तर पर निष्कर्ष निकालने में हमारी सहायता कर सकती है, जैसे चक्र निष्क्रिय हो गए । किंतु, चक्रों की निष्क्रियता का मूल कारण मात्र आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति ही समझा जा सकता है ।
मात्र उपकरण द्वारा दिए गए पाठ्यांकों के आधार पर निर्णय लेना ठीक उसी प्रकार होगा जैसे व्यक्ति के रोग के महत्वपूर्ण मूल कारण को समझे बिना केवल लक्षण देखकर उसका उपचार करना । यदि हम किसी भी समस्या का मूल कारण समझने में सक्षम हैं, तब हम योग्य उपचार कर सकते हैं तथा उस समस्या को पूर्णतः समाप्त कर सकते हैं । यदि हम उपकरण की सहायता से उपलब्ध स्थूल जानकारी तथा सूक्ष्म-विश्लेषण दोनों का प्रयोग कर मूल कारण का पता लगा लें, तब हम योग्य स्तर पर उपचार कर सकते हैं जिससे मूल आध्यात्मिक कारण को पूर्णतः समाप्त किया जा सके । अध्यात्म विज्ञान द्वारा अनुशंसित उपचारों में रोगी की ओर चैतन्य को आकर्षित करने की क्षमता होती है । यह चैतन्य समस्या के मूल आध्यात्मिक कारण पर प्रभावी रूप से कार्य करता है । इस प्रकार, मात्र अध्यात्म विज्ञान ही सभी समस्याओं के लिए १०० प्रतिशत प्रभावी उपचार बता सकता है । अन्यथा यह स्पष्ट है कि यदि मात्र आधुनिक विज्ञान के आधार पर केवल स्थूल स्तर पर ही निष्कर्ष निकाले जाएं, तो वे भ्रमित करने वाले तथा अति निरर्थक सिद्ध होंगे ।
२.२ प्रत्येक क्षण का पाठ्यांक रिकॉर्ड करने में उपकरणों की असमर्थता
साधक द्वारा सक्रिय रूप से समष्टि साधना करने के प्रयासों के कारण समाज की सात्त्विकता में वृद्धि होती है, इसके फलस्वरूप वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों (भूत, दानव, दैत्य इत्यादि) पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है । इसी कारण स्वयं के रक्षण हेतु अनिष्ट शक्तियां (भूत, दानव, दैत्य इत्यादि) साधक पर सतत रज-तम द्वारा आक्रमण कर, उसका विरोध करती हैं । परिणामस्वरूप, साधक का शरीर किसी युद्ध भूमि समान बन जाता है । साधक का भौतिक शरीर (स्थूल देह), मन तथा बुद्धि विविध प्रकार से किसी भी समय प्रभावित हो सकते हैं । साधक की सहायता करने हेतु, आदर्श रीति से हमें आक्रमण की विशिष्ट प्रकृति तथा आक्रमण होने के वास्तविक समय पर साधक पर होने वाले परिणामकारक प्रभाव को लिखना होता है । इसके लिए, यह महत्वपूर्ण है कि उपकरण द्वारा पाठ्यांको (रीडिंग) को निरंतर लिया जाए । इसके उपरांत ही उस समय होनेवाली समस्या के अनुसार उपचार बता सकते हैं । वास्तव में व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं है क्योंकि किसी भी उपकरण से हर दूसरे क्षण होनेवाले अत्यधिक उतार चढाव के पाठ्यांको को लेना कठिन होता है ।
परिणामस्वरूप, उस समय वास्तविक समस्या का पता लगाने की क्षमता अत्यधिक बाधित हो जाती है, फलस्वरूप उचित उपाय तथा समाधान का पता लगाने की संभावना अत्यल्प होती है । यह आधुनिक विज्ञान की मर्यादा है ।
इसके विपरीत, अध्यात्म विज्ञान अपने आप में परिपूर्ण है । यदि व्यक्ति निरंतर साधना करता है, उससे प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति निरंतर आध्यात्मिक उपचार के उपाय के रूप में कार्य करती रहती है । वह उसे समय-समय पर होनेवाली समस्याओं का पता लगाने में तथा उस पर विजय प्राप्त करने में सहायता करती है । अतः, साधना के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करने के अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि इससे प्राप्त होनेवाला चैतन्य उसकी निरंतर रज-तम के आक्रमणों से रक्षा करता है ।
३. परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी द्वारा की गई टिप्पणी
शारीरिक तथा मानसिक रोगों के कारणों का पता लगाने में सक्षम अनेक प्रकार के उपकरण उपलब्ध हैं । उदाहरण के लिए, व्यक्ति के पेट में तीव्र वेदना होने पर पेट का अल्ट्रा साऊंड किया जाता है । इससे व्यक्ति के गुर्दे में पथरी होने का पता चल सकता है तथा इसके अनुसार उपचार का निर्णय लिया जाता है । यद्यपि, वे केवल रोगों की जानकारी दे सकते हैं तथा उनके मात्र स्थूल निष्कर्ष ही बता सकते हैं । प्रत्येक रोग के सूक्ष्म कारण, उदाहरण के लिए उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के कारण होनेवाला कष्ट, प्रारब्ध, इत्यादि का पता उपकरण द्वारा नहीं लगाया जा सकता । केवल साधना करने पर तथा सातवें पाताल तक के लोकों का ज्ञान होने पर ही, हम सभी कारणों को जान सकते हैं । अतः किसी भी रोग का एक मात्र उपचार साधना करना ही है !
मात्र आध्यात्मिक उपाय के रूप में ही केवल समस्या के आध्यात्मिक कारण का निवारण करने के उद्देश्य से कुछ समय के लिए साधना करने की अपेक्षा अधिक श्रेयस्कर होगा कि निरंतर साधना की जाए । यदि हम ऐसा करेंगे, तो समस्या उत्पन्न होने से बचा जा सकता है अथवा इसकी तीव्रता को क्षीण अथवा अल्प किया जा सकता है ।