१. प्रस्तावना
कला विधाओं ने सदैव हमारी जिज्ञासा को बढाया है, चूंकि यह आत्म-अभिव्यक्ति तथा रचनात्मकता का एक मार्ग है । कुछ के लिए, यह अत्यंत मौलिक तथा मूल्यवान विरासत है । कला विधाओं में विकास तथा रूपांतरण हुआ है और उसने समकालीन आधुनिक कला (मॉर्डन डे आर्ट) को मार्ग भी दे दिया है । परंतु दुर्भाग्य से आधुनिक हिप-हॉप संस्कृति के कारण कला एक ओर रह गई और विविध प्रकार की प्रथाएं उभर कर आ गई हैं । प्रायः, वास्तविक कला औरकला की एक विधा के रूप में बर्बरता के बीच एक पतली रेखा होती है । ऐसी ही एक प्रथा जो सामान्य रूप से प्रचलित बन गई है, वह है भित्तिचित्र अर्थात ग्रेफिटी ।
जैसे-जैसे भित्तिचित्र आधुनिक लोकप्रिय संस्कृति का एक भाग बनता जा रहा है, युवा अवैध रूप से भवन, प्रसाधन गृह, रेलवे के डिब्बे, भूमिगत मार्ग, पुल इत्यादि सार्वजनिक संपत्तियों को हानि पहुंचाने हेतु स्प्रे, मार्कर पेन, रंग इत्यादि द्वारा उन पर चित्र उकेरते देखे जाते हैं । वे उन पर विचित्र कलाकृति, परिदृश्य, विचित्र आकृतियां बनाते हैं । कई बार भित्तिचित्र इतना विचित्र होता है कि देखनेवालों पर लंबे समय तक के लिए भयकारी प्रभाव पडता है । अज्ञात समूह ऊंचे-ऊंचे भवनों पर आकृतियां बनाने हेतु ऊचाई तक चढ जाते है अथवा विभिन्न स्थानों पर भित्तिचित्र बनाने के लिए रात में छुपकर (गुप्त रूप से) कार्य करते हैं ।
कुछ लोग इसे हानिरहित बताकर इसका समर्थन करेंगे तथा जब तक यह कानूनी रूप से वैध है तथा ‘इससे किसी को हानि नहीं होती’ तब तक इसकी अनुमति देंगे । किंतु, प्रायः हम इस बात को महत्त्व नहीं देते तथा भित्तिचित्रों के साथ जुडे आध्यात्मिक आयाम से पूर्णतया अनभिज्ञ होते हैं । मनोरंजन तथा शोर-शराबे के आवरण में हम इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि कब हम कला के किसी भाग की केवल प्रशंसा करने की सीमा का अतिक्रमण कर हमें नकारात्मक रूप से प्रभावित करनेवाली बातों की ओर बढ जाते हैं ।
चूंकि आध्यात्मिक आशय सूक्ष्म स्तर पर होते हैं, हम इसे समझने में असमर्थ होते हैं । विकसित छठवीं इंद्रिय दृष्टि के बिना इसे समझ पाना कठिन है कि किस प्रकार सामान्य दिखाई देनेवाली जटिल चित्रात्मक आकृतियों को बनाने का यह कृत्य नकारात्मक स्पंदनों को आकर्षित तथा प्रक्षेपित कर सकता है ।
२. ग्रेफिटी (भित्तिचित्र) के प्रभाव पर आध्यात्मिक शोध
स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन में हमने आध्यात्मिक आयाम में व्यापक आध्यात्मिक शोध किया कि यह हमारे जीवन को कितनी निकटता से प्रभावित करता है । हम जो भी करते हैं, उससे स्पंदन आकर्षित तथा प्रक्षेपित होते हैं । ये स्पंदन सकारात्मक भी हो सकते हैं अथवा नकारात्मक भी । यह प्रत्येक कृत्य में समाविष्ट तीन मूलभूत सूक्ष्म गुणों पर आधारित होता है । ये तीन सूक्ष्म गुण हैं सत्त्व (सकारात्मक), रज (ऊर्जा) तथा तम (नकारात्मक) । सत्त्व गुण से तात्पर्य है आध्यात्मिक शुद्धता; रज कार्यशीलता (सकारात्मक अथवा नकारात्मक कृत्यों को करने के लिए ऊर्जा) दर्शाता है तथा तमो गुण आध्यात्मिक अशुद्धता तथा निष्क्रियता का सूचक है ।
हमारे पाठक एक सूक्ष्म प्रयोग कर सकते हैं । नीचे दिए गए चित्रों को देखें तथा पहले ‘चित्र अ’ से जो भी सुखद अथवा अप्रिय स्पंदन अनुभव होते हैं, उसे अनुभव करने का प्रयास करें । उपरांत ‘चित्र आ’ देखकर उसके स्पंदन अनुभव करें ।
चित्र अ चित्र आ
‘चित्र अ’ सात्त्विक, सकारात्मक स्पंदनों को प्रक्षेपित करता है तथा भित्तिचित्र का ‘चित्र आ’ तामसिक, नकारात्मक स्पंदनों को प्रक्षेपित करता है ।
आध्यात्मिक शोध से इस बात की पुष्टि हुई है कि भित्तिचित्र कलाकृतियों से नकारात्मक स्पंदन आकर्षित तथा प्रक्षेपित होते हैं । धुंधली और काली आकृतियां एंटीना के रूप में कार्य करती हैं जिससे वातावरण में नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । इसे और साधारणपद्धति से समझा जा सकता है । जो कुछ भी प्रकृति से निकट है अथवा प्राकृतिक है वह आध्यात्मिक रूप से शुद्ध स्पंदनों को ग्रहण तथा प्रक्षेपित करता है अथवा ईश्वरीय तत्त्व से परिपूर्ण होता है । जबकि वे कलाकृतियां जो मात्र कल्पना की उपज हैं, जिन्हें असमान तथा विकृत पद्धति से बनाया जाता है, वे ईश्वरीय तत्त्व अथवा आध्यत्मिक शुद्धता से रहित होती हैं ।
ऐसी लिखाई अथवा चित्र रज-तम स्पंदनों को प्रक्षेपित करते हैं तथा देखनेवालों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं । यह व्यक्ति में अशांति, संभ्रम तथा चिंता निर्माण कर सकते हैं । जब इस प्रकार की आकृतियां लंबे समय तक परिसर की भित्तियों पर रहती हैं, वे धीरे धीरे अनिष्ट शक्ति का भंडार बन जाती हैं तथा उस परिवार को अथवा उस परिसर में निवास करनेवाले लोगों को प्रभावित करती हैं ।
बढी हुई नकारात्मकता हमें सदैव प्रभावित करती है तथा हम कई समस्याओं जैसे सतत नकारात्मक विचार आना, भारीपन लगना, नींद में कमी होना, स्पष्टता का अभाव, अतिसक्रियता, यौन विचारों में वृद्धि होना, क्रोध आना, चिडचिडापन, परिवार में कलह इत्यादि से ग्रस्त हो सकते हैं । हमारे आस पास तथा जो भी हम देखते हैं वह हमारे विचारों तथा संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है ।
अध्यात्म का एक आधारभूत सिद्धांत भी यह है कि जो भी हम देखते हैं, उससे हममें विचार निर्माण होते है तथा कुछ अवधि के उपरांत हमारे अवचेतन मन में उसी के अनुरूप संस्कार निर्माण हो जाता है । इस प्रकार यदि हम आध्यात्मिक रूप से पवित्र कुछ देखते हैं, हमें सकारात्मक विचार प्राप्त होते हैं जबकि नकारात्मक चित्र हमारे अवचेतन मन में नकारात्मक संस्कारों की निर्मिति करते हैं ।
इसके अतिरिक्त, भित्तिचित्र उन साधनों के रूप में भी कार्य करता है जिनका प्रयोग अनिष्ट शक्तियां लोगों को प्रभावित करने के लिए करती हैं । SSRF में हमने यह भी पाया कि भित्तिचित्र कलाकृति की संकल्पना स्वयं अनिष्ट शक्तियों द्वारा ही उत्प्रेरित है । अधिकतर प्रकरणों में जो इस प्रकार की कलाकृतियों, विशेषकर वे जिनमें कंकाल तथा डरावने चित्र होते हैं, को बनाते हैं वे कलाकार अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट होते हैं ।
अनिष्ट शक्तियां ऐसे लोगों को नकारात्मकता प्रसारित करने के लिए प्रयोग करती हैं । यह भी कारण है कि क्यों ऐसे कलाकार पूरी रात अनुचित कार्यों को करने में संलग्न रहते हैं तथा सार्वजानिक संपत्ति को बिगाडने तथा उन्हें हानि पहुंचाने में राक्षसी सुख प्राप्त करते हैं । कुछ कलाकारों में दिखाई देनेवाला धृष्ट व्यवहार भी उनके अनिष्ट शक्ति द्वारा आविष्ट होने का सूचक है ।
भित्तिचित्रों का प्रभाव |
आकृति बनानेवाले व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव |
अवधि |
देखनेवाले पर नकारात्मक प्रभाव
|
अवधि |
परिसर पर नकारात्मक प्रभाव |
अवधि |
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५* प्रतिशत |
५ वर्ष |
१ प्रतिशत |
१ सप्ताह |
२ प्रतिशत |
भित्तिचित्र को हटाने के उपरांत भी १ वर्ष |
* उपर्युक्त आकंडे केवल एक भित्तिचित्र के लिए है । यदि व्यक्ति भित्तिचित्र बनाता रहेगा तो नकारात्मक प्रभाव बढते ही जाएंगे ।
इस प्रकार की कला संघर्ष के वर्तमान युग अथवा कलियुग (सर्वाधिक निकृष्ट युग) का प्रतिबिंब है । कलियुग के प्रभाव के कारण, इस प्रकार की नकारात्मक प्रथाएं प्रचलित होती जा रही हैं तथा व्यापक आकर्षण का केंद्र बन रही हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकांश लोग किसी प्रकार की साधना नहीं करते तथा केवल माया से संबंधित गतिविधियों में मग्न रहते हैं ।
३. ईश्वर प्राप्ति के माध्यम के रूप में कला
कला ईश्वर प्राप्ति के अनेक माध्यमों में से एक है । कला का वास्तविक रूप ईश्वर की सृष्टि का गुणगान करना है तथा जो कलाकार ईश्वर की सृष्टि के अनुरूप चित्र बनाते हैं, वे ईश्वर के निकट जाने तथा आनंद को अनुभव करने हेतु साधना करते हैं । SSRF में ऐसे अनेक साधक हैं जो आध्यात्मिक आयाम के विषय में जागरूकता निर्माण करने के लिए कला के माध्यम से साधना कर रहे हैं । इस प्रकार की कला लोगों को सात्त्विक अथवा आध्यात्मिक रूप से शुद्ध जीवनशैली के संदर्भ में मार्गदर्शन करती है । जब हम इन कलाकारों द्वारा बनाए हुए चित्रों को देखते हैं तो भाव जागृत होता है तथा यह इससे उनकी साधना होती है ।
SSRF की संत, पूजनीया श्रीमती योया वालेजी ऐसीं ही एक साधक-कलाकार हैं । उनमें सूक्ष्म आयाम को देखने तथा समझने की सूक्ष्म क्षमता हैं । उनके द्वारा बनाए गए अनेक चित्र हमारे सूचना जालस्थल (वेबसाईट) पर प्रकाशित हैं । ये सूक्ष्म चित्र सूक्ष्म आयाम को सहजता से समझने में सहायता करते हैं तथा यह स्पष्ट करते हैं कि जब हम आध्यात्मिक रूप से शुद्ध गतिविधियों में संलग्न रहते हैं तो हमारी आेर आध्यात्मिक रूप से शुद्ध स्पंदन आकर्षित होते हैं तथा इसके विपरीत होने पर परिणाम भी नकारात्मक ही होते हैं ।
पुनरावलोकन में, भित्तिचित्र आकृतियां जैसे प्रचलित नकारात्मक प्रथाओं के हानिकारक प्रभाव से स्वयं के रक्षण हेतु, हम अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांत के अनुसार निरंतर साधना करने का परामर्श देते हैं । केवल जब हम निरंतर साधना करते हैं तो हममें सत्त्व गुण बढता है तथा एक सुरक्षा कवच का निर्माण होता है जो प्रबल नकारात्मकता से हमारी रक्षा करता है ।