विषय सूची
- १. क्या अनिष्ट शक्तियों का लिंग होता है अर्थात क्या वे स्त्री अथवा पुरुष होती हैं ?
- २. अनिष्ट शक्तियों (भूत, पिशाच, राक्षस, आदि) का जीवन काल कितना होता है ?
- ३. क्या अनिष्ट शक्तियां (भूत, राक्षस, पिशाच, ) प्राणियों और वृक्षों की भांति समय के समान बढते और बूढे होते हैं ?
- ४. अनिष्ट शक्तियों को शक्ति अथवा बल कहां से मिलता है ?
- ५. क्या अनिष्ट शक्तियों के पास बुद्धि होती है ?
- ६. क्या अनिष्ट शक्तियों का अस्तित्व पृथ्वी, जल अथवा अग्नि में (भी) हो सकता है ?
- ७.क्या अनिष्ट शक्तियां कभी सोती अथवा विश्राम करती हैं ?
- ८. क्या अनिष्ट शक्तियों (भूत, पिशाच, राक्षस, आदि) का पारिवारिक जीवन होता है?
१. क्या अनिष्ट शक्तियों का लिंग होता है अर्थात क्या वे स्त्री अथवा पुरुष होती हैं ?
अनिष्ट शक्तियों (भूत, पिशाच, राक्षस आदि) की भौतिक देह नहीं होती । इसलिए इस दृष्टिकोण से उनका कोई लिंग नहीं होता; किंतु सूक्ष्म स्तर पर उनके रूप तथा मानसिक गुणों के आधार पर उनका वर्गीकरण पुरुष तथा स्त्री के रूप में किया गया है । उदाहरण के लिए, स्त्री बेताल, डायन, चुडैल स्त्रियां हैं जबकि सूक्ष्मस्तरीय मांत्रिक साधारणतः पुरुष होते हैं । जब अनिष्ट शक्ति प्रकट होती है, उस समय दिखनेवाला उनका रूप प्रायः उनके पिछले जन्म के रूप तथा लिंग से प्रभावित रहता है । अर्थात, यदि अनिष्ट शक्ति अपने पिछले मानवीय जन्म में स्त्री थी, तब वह स्त्री के रूप में प्रकट होगी । उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्ति, जैसे मांत्रिक अपनी इच्छानुसार रूप धारण करने की क्षमता रखते हैं । मांत्रिक, संतों के समकक्ष, अति उच्च आध्यात्मिक शक्तियुक्त अनिष्ट शक्ति हैं । उच्चस्तरीय आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिकों को एकाग्रता से केंद्रित होकर एवं तर्कसंगत सोच के साथ तीव्र साधना करने की आवश्यकता होती है । एकाग्रता से केंद्रित होना एवं तर्कसंगत सोच अधिकांशत: पुरुषों की विशेषता है, इसलिए मांत्रिक पुरुष रूप धारण करते हैं ।
२. अनिष्ट शक्तियों (भूत, पिशाच, राक्षस, आदि) का जीवन काल कितना होता है ?
मनुष्यों के संबंध में जीवनकाल का अर्थ, उनके जन्म से मृत्यु के बीच का समय होता है । अनिष्ट शक्तियों के संबंध में यह समय, सूक्ष्म शरीर के अनिष्ट शक्ति बनने से लेकर अंतत: उनके पृथ्वी पर पुर्नजन्म तक का होता है । अत: अनिष्ट शक्तियों का जीवनकाल भिन्न हो सकता है । भूर्वलोक के निम्न स्तर के भूतों का जीवनकाल लगभग ५०-४०० वर्ष तक का हो सकता है । पाताल के निचले लोकों की अनिष्ट शक्तियां, जो मानवता का व्यापक स्तर पर विनाश करने में सक्षम हैं उनका जीवनकाल सहस्त्रों वर्षों का हो सकता है ।
अनिष्ट शक्तियों की इस दशा से मुक्ति निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है :
१. सामान्य नियम
अपने पापकर्मों के अनुसार पाताल के विभिन्न लोकों तथा भुवर्लोक में अपने प्रारब्ध के भोग पूर्ण करने पर वे मुक्त हो सकते हैं ।
२. ३० प्रतिशत से कम आध्यात्मिक स्तर की अनिष्ट शक्ति :
आध्यात्मिक जगत में, उस लोक और उसके कष्टों से मुक्ति पाने का एकमात्र मार्ग है साधना। ३० प्रतिशत से कम आध्यात्मिक स्तर की अनिष्ट शक्तियों के लिए सूक्ष्म लोक में रहकर साधना कर पाना लगभग असंभव होता है । हमारे पूर्वज इस प्रकार की अनिष्ट शक्तियों की श्रेणी में आते हैं जिनकी मृत्यु हो गई है एवं जिनके पास नगण्य अथवा कोई आध्यात्मिक शक्ति नहीं रहती । वे भुवर्लोक अथवा पाताल के किसी लोक में जाते हैं । इन लोकों में वे साधना नहीं कर पाते; क्योंकि पृथ्वी पर अपने जीवन काल में वे साधना करने के अभ्यस्त नहीं थे । परिणामस्वरूप, उन्हें साधना संबंधी आवश्यक जानकारी न होने के कारण मृत्योपरांत उनके लिए इन लोकों में साधना से अपनी सहायता कर पाना संभव नहीं होता ।
वे जितने अधिक पाताल के गहरे और निम्न लोकों में जाते हैं, उनके कष्ट भी उतने ही बढ जाते हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से अपनी सहायता स्वयं करने में असमर्थ होने के कारण वे पृथ्वी पर अपने परिवार के सदस्यों को अपनी सहायता के लिए पुकारते हैं । जिस भाषा में वे संवाद करते हैं, वह कष्ट की भाषा होती है । पृथ्वी पर अपने वंशजों को कष्ट देकर वे आशा करते हैं कि उनके वंशज उनकी ओर देखेंगे और किसी आध्यात्मिक विधि से उनके कष्टों का समाधान करेंगे । अंतत: उनके वंशज सूक्ष्म जगत में झांक पानेवाले किसी व्यक्ति से समाधान पूछते हैं । इस प्रकार उनके वंशजों को समझ आता है कि लंबे समय से चली आ रही उनकी कठिनाईयों का कारण उनके पूर्वज हैं ।तब उन्हें उनके पितरों के लिए कोई आध्यात्मिक विधि करने का सुझाव दिया जाता है । विशिष्ट आध्यात्मिक विधि करने से पृथ्वी पर उनके वंशजों को निम्न लाभ होते हैं :
- पितृदोषों (पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्टों) से उनका रक्षण होता है ।
- पूर्वजों को सूक्ष्म लोकों के अच्छे लोकों में जाने के लिए आवश्यक आध्यात्मिक बल देकर वे उनके साथ अपने लेन-देन पूर्ण करते हैं । यह आध्यात्मिक विधि उन्हें अनिष्ट शक्ति के जीवन से मुक्ति दिलाती है और पृथ्वी पर पुनः जन्म लेने की प्रक्रिया सुलभ करती है जिससे उनका लेन-देन पूर्ण हो और वे साधना कर सकें ।
३. ३० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर की अनिष्ट शक्तियों के लिए :
३० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर की अनिष्ट शक्तियों ने पृथ्वी पर रहकर कुछ नियमित साधना की थी । परिणामस्वरूप वे मृत्योपरांत भी सूक्ष्म लोक में कुछ साधना कर सकती हैं; तथापि निरंतर साधना कर पाने की उनकी क्षमता अनेक घटकों पर निर्भर करती है । इन घटकों में विभिन्न सांसारिक इच्छाएं सम्मिलित हैं । उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति को भोजन, मद्यपान अथवा संभोग (आदि) की इच्छा है तो वह इन सब की पूर्ति के लिए किसी व्यक्ति को आविष्ट कर लेते हैं ।
परिणामस्वरूप, वे बहुत आसानी से साधना से विमु्ख होकर अपनी ही सहायता करने में असफल हो सकती हैं । ऐसा कर वे अपने पाप और अधिक बढा लेते हैं । उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां, जैसे सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक, निम्न स्तर के भूतों की इच्छाओं और सांसारिक आसक्तियों के कारण उनका दुरुपयोग करते हैं । सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक, निम्न स्तर के भूतों की इच्छाओं की पूर्ति करवाने के बदले, उन्हें अपने नियंत्रण में ले लेते हैं । वे उन्हें बुरे कर्म करने हेतु बाध्य करते हैं । यह सूक्ष्म शरीर (अनिष्ट शक्ति) की साधना करने की अभिप्रेरणा (तडप) पर भी निर्भर करता है ।
एक निम्न आध्यात्मिक स्तर का सूक्ष्म शरीर, जिसमें तीव्र तडप हो, वह मंद तडप के उच्च आध्यात्मिक स्तर के सूक्ष्म शरीर की तुलना में अधिक अच्छी साधना कर सकता है । अत: यह अत्यावश्यक है कि अपने जीवनकाल में अवचेतन मन पर साधना का संस्कार दृढ कर लिया जाए । ईश्वर प्राप्ति के लिए साधना करना ईश्वर से उच्च स्तर की सुरक्षा पाने तथा अपनी इच्छाओं और आसक्तियों को अल्प करने का एक निश्चित मार्ग है । भूतयोनि का (कष्टमय) जीवनकाल घटाने का यह एकमात्र मार्ग है ।
४. संत की कृपा
कभी-कभी भूत संतों की सेवा करके उनकी कृपा प्राप्त कर, प्रायश्चित कर, दया याचना इत्यादि कर भूत योनि से बाहर आ जाते हैं । ये सब एक भूत के लिए आगे उच्च लोकों में जाने हेतु गति पाने और भूतयोनि से मुक्ति पाने के संभावित मार्ग हैं । यद्यपि व्यवहारिक स्तर पर ऐसा वास्तव में हो पाना अत्यधिक दुर्लभ है । जैसा हमने ऊपर बताया है, उसके निम्नलिखित कारण हैं :
- नकारात्मक सूक्ष्म लोक में उनके कष्टों की तीव्रता और उनकी इच्छाओं की तीव्रता के कारण साधना से विमुख होने की प्रवृत्ति रहती है ।
- उनके वंशज इस बात से अनभिज्ञ रहते हैं कि लंबे समय से उनके जीवन में आ रही समस्याओं का मूल कारण उनके पूर्वज हैं । इस कारण वंशज अपने पूर्वजों के लिए कोई आध्यात्मिक उपाय अथवा विधि नहीं करते ।
- अपनी तीव्र इच्छाओं के कारण वे सूक्ष्म स्तरीय मंात्रिकों के वश में होने की संभावना रहती है ।
भले ही जब वे पहली बार भूत योनि में आए हों तब वे इतने बुरे न हों; किंतु समय के साथ वे और बुरे बन सकते हैं; क्योंकि वे अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के दुष्चक्र में फंसकर और अधिक पाप करने लगते हैं । वे इस स्थिति में तब तक फंसे रहते हैं जब तक वे अपने सभी पापों का दंड पूरा नहीं कर लेते अथवा वे अपना आध्यात्मिक स्तर बढाकर आगे की गति प्राप्त नहीं कर लेते । उनकी इच्छाओं, अहं, बुरे कर्मों और साधना के अभाव के कारण वे सैकडों वर्षों तक भूतयोनि में फंसे रह सकते हैं ।
पाताल के विभिन्न क्षेत्रों की उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों का जीवन काल सैकडों से हजारों वर्षों अथवा ब्रह्मांड के अंत तक का हो सकता है । ऐसा उनके पापों की तीव्रता, कुसंस्कारों और अत्यधिक अहं के कारण हो सकता है । परिणामस्वरूप वे पाताल के और निम्न लोकों की ओर गमन करते रहते हैं जहां से उनकी मुक्ति की कोई आशा शेष नहीं रहती ।
३. क्या अनिष्ट शक्तियां (भूत, राक्षस, पिशाच, ) प्राणियों और वृक्षों की भांति समय के समान बढते और बूढे होते हैं ?
मनुष्यों के पास नश्वर शरीर होता है । जो जन्म लेता है, बढता और बूढा होता है, तदुपरांत मृत्यु को प्राप्त होता है । बढना और बूढा होना भौतिक शरीर का कार्य है । अनिष्ट शक्तियों का भौतिक शरीर न होने के कारण भौतिक शरीर की विशेषताएं उन पर लागू नहीं होती । अनिष्ट शक्तियोंके बढने का अर्थ है उनकी आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होना अर्थात उनकी काली शक्ति अथवा उनकी ईश्वरीय/सकारात्मक शक्ति से युद्ध करने की क्षमता में वृद्धि होना ।
४. अनिष्ट शक्तियों को शक्ति अथवा बल कहां से मिलता है ?
उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों (भूत, राक्षस, पिशाच, आदि) के पास सामान्यतः सैंकडों वर्षों की साधना होती है । उन्हें उनकी साधना से शक्ति प्राप्त होती है । परंतु उनके सभी कार्य पाप कर्म होने के कारण प्रत्येक कार्य के साथ उनकी शक्ति क्षीण होती जाती है । विशेषत: जब वे किसी सात्विक प्रभाव के समक्ष होते हैं, तब उनकी अधिकांश शक्ति नष्ट हो जाती है । ऐसे प्रकरणों में वे पीछे हट जाते हैं और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए ध्यान साधना अथवा मंत्र साधना करते हैं ।
अधिकांश प्रकरणों में निम्न स्तर के भूत उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों के हाथों की कठपुतलियों के समान उनके अनेकों आदेशों का पालन करते हैं । कभी कभी निम्न स्तर के भूतों में लोगों को डराने अथवा उन्हें आविष्ट करने के लिए आवश्यक शक्ति अल्प पड जाती है । ऐसे में उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां उन्हें उनके कार्यों के लिए आवश्यक शक्ति प्रदान कर बदले में उन्हें और अधिक नियंत्रण में ले लेती हैं ।
५. क्या अनिष्ट शक्तियों के पास बुद्धि होती है ?
सामान्य मनुष्यों की बुद्धि उन्हें उनके शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर के कार्य करने के लिए मार्गदर्शन करती है । मानव बुद्धि में स्वभाविक रुप से अच्छे-बुरे को पहचानने की तथा करने अथवा न करने योग्य कार्यों में अंतर कर पाने की क्षमता होती है ।
मृत्यु के पश्चात जब हम भूत बन जाते हैं, तो हम बुद्धि की यह भेद करने की क्षमता खो देते हैं । इसका कारण यह है कि सूक्ष्म शरीरों की मुख्य देह कारण देह होती है, जो इच्छाओं से भरी होती है । अतः बुद्धि का प्रयोग केवल इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है । इसके विपरीत पृथ्वी पर बुद्धि का प्रयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है, जैसे जीवनयापन के लिए धन कमाने इत्यादि समान शारीरिक क्रियाएं ।
जैसे जैसे किसी भूत की अन्यों को कष्ट देने की इच्छा बलवती होती जाती है, उनकी बुद्धि भी पूर्णतः इसी दिशा में कार्यरत हो जाती है । यह बुद्धि पूर्ण रूप से अहं आधारित और केवल शक्ति प्राप्त करने के लिए होती है ।
भुवर्लोक के भूतों की इच्छाएं तुलनात्मक रूप से अल्प होने के कारण उनमें मानव बुद्धि की कुछ झलक मिलती है; परंतु पाताल के निम्न लोकों (पहले पाताल से चौथे पातालतक) की अनिष्ट शक्तियां और मांत्रिक उच्च स्तर के सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिकों के वशीभूत होकर यंत्रवत कार्य करते हैं । उच्च स्तर के सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिकों की शक्ति/बल संतों के बराबर होता है और वे उच्चतर वैश्विक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ।
६. क्या अनिष्ट शक्तियों का अस्तित्व पृथ्वी, जल अथवा अग्नि में (भी) हो सकता है ?
जी हां, अनिष्ट शक्तियों(भूत, राक्षस, पिशाच, आदि) का अस्तित्व इन सभी स्थानों पर हो सकता है; क्योंकि वे सूक्ष्म देह होते हैं । इनकी भौतिक देह नहीं होती अत: पृथ्वी, अग्नि अथवा जल का इन पर कोई प्रभाव नहीं होता । यद्यपि निम्न स्तर की अनिष्ट शक्तियों अथवा जो अभी-अभी भूत की श्रेणी में सम्मिलित हुए हैं, उन्हें जल अथवा अग्नि से भय लगता है, क्योंकि उन पर मनुष्य जीवन के संस्कार शेष रहते हैं । अन्य भूतों द्वारा उन्हें उनकी स्थिति की जानकारी देने पर शीघ्र ही यह भय चला जाता है ।
७.क्या अनिष्ट शक्तियां कभी सोती अथवा विश्राम करती हैं ?
इनकी भौतिक देह न होने के कारण मनुष्यों की भांति इन्हें सोने अथवा विश्राम करने की आवश्यकता नहीं होती । वास्तव में भूत अत्यधिक अशांत (बेचैन) प्राणी होते हैं – वे निरंतर अन्यों को कष्ट देने, अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने अथवा अन्यों को कष्ट देने के लिए साधना द्वारा शक्ति प्राप्त करने में लगे रहते हैं । कृपया ध्यान दें, सैद्धांतिक रूप से ३० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के भूत (राक्षस, शैतान, अनिष्ट शक्ति इत्यादि) साधना कर सकते हैं; परंतु वास्तव में केवल उच्च आध्यात्मिक स्तर के भूत ही साधना करने अथवा इसके द्वारा शक्ति प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं ।
८. क्या अनिष्ट शक्तियों (भूत, पिशाच, राक्षस, आदि) का पारिवारिक जीवन होता है?
पारिवारिक जीवन की अवधारणा केवल निम्न स्तर के भूतों के संदर्भ में होती है । उदाहरण के लिए पृथ्वी पर किसी एक विशेष परिवार के मृत पूर्वजों के सूक्ष्म देह एक साथ विचरण करते हैं । इसके अतिरिक्त उनका कोई और पारिवारिक जीवन नहीं होता, विशेषकर जैसा मनुष्यों के संदर्भ में होता है ।