विषय सूची
१. अध्यात्म शास्त्र तथा आध्यात्मिक शोध की व्याख्या
आध्यात्मिक शोध का उद्देश्य जानने से पूर्व आइए, सर्व प्रथम हम आगे दी गईं व्याख्याआें को आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से जान लें ।
१.१ अध्यात्म का अर्थ :
ऑक्सफोर्ड शब्दकोश में (डिक्शनरीमें) अध्यात्म एक विशेषण (adjective) है ।
- मनुष्य की आत्मा से संबंधित अथवा उसे प्रभावित करनेवाला, भौतिक एवं स्थूल वस्तुआें के विपरीत ।
- धर्म अथवा धार्मिक भावनाआें से संबधित ।
अध्यात्म की परिभाषा : अध्यात्म शास्त्र शोध संस्थान (एस.एस.आर.एफ.) के अनुसार ‘अध्यात्म’ शब्द उन सभी घटकों को परिभाषित करता है, जो हमारी पंच ज्ञानेंद्रिय, मन (अर्थात संवेदनाएं, भावनाएं तथा इच्छाएं ) और बुद्धि (अर्थात निर्णय प्रक्रिया तथा तर्कक्षमता) के परे हैं ।
१.२ विज्ञान तथा आध्यात्म शास्त्र :
ऑक्सफोड शब्दकोश के अनुसार, ‘साईंस’ शब्द लैटिन शब्द ‘साइंटिया’ और ‘सायर’ से बना है जिसका अर्थ है ‘जानना’ । संज्ञा के रूपमें ‘विज्ञान’ शब्द की परिभाषा है –
- बौद्धिक तथा क्रियात्मक प्रयासों से परिपूर्ण एक योजनाबद्ध अध्ययन जिससे भौतिक तथा प्राकृतिक विश्व की संरचना तथा व्यवहार को निरीक्षण तथा प्रयोगों के माध्यम सेे समझा जाता है ।
- किसी भी विषय पर व्यवस्थित रुप से संकलित ज्ञान का भंडार
विज्ञान की परिभाषा : उपरोक्त परिभाषा के साथ ही एस.एस.आर.एफ. ने ‘विज्ञान’ शब्द के अर्थ को और व्यापक बनाते हुए उसमें भौतिक, प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक विश्व को समाहित किया है । इसके अनुसार, समान प्रयोगात्मक परिस्थिति किसी भी जाति, लिंग, धर्म, राष्ट्रीयता का व्यक्ति को जब वही अनुभव बार-बार होता है, वही विज्ञान है ।
हम अध्यात्म शास्त्र को (अर्थात अध्यात्म को ) ‘शास्त्र’ कहते हैं क्योंकि :
- भौतिक विश्व की ही भांति सूक्ष्म विश्व (आयाम) भी योजनाबद्ध और तर्क संगत होता है ।
- भौतिक अथवा स्थूल विश्व की ही भांति, सूक्ष्म अथवा अध्यात्म-जगत में होने वाली प्रत्येक घटना का कारण समझा जा सकता है ।
- भौतिक विश्व की भांति सूक्ष्म आयाम में भी कार्यकारण संबंध लागू होता है । आध्यात्मिक शोध मूलतः इन्हीं सूक्ष्म और अमूर्त ‘कारणों’ को समझने का प्रयास है ।
- आध्यात्मिक आयाम से संबंधित सिद्धांतों को प्रयोजनीय उपकरणों द्वारा बार-बार परख सकते हैं । भौतिक शास्त्र और जीव-विज्ञान के शोध के लिए भिन्न उपकरणों की आवश्यकता होती है, यही आध्यात्म शास्त्र के शोध के संदर्भ में भी लागू है । आध्यात्मिक शोध के संदर्भ में विश्लेषण और मापन का प्रमुख साधन है, अति विकसित अतींद्रिय बोधक्षमता अनिवार्य है, जिसे साधारणतया ‘छठवीं इंद्रिय‘ कहा जाता है ।
१.३ शोध और आध्यात्मिक शोध
तथ्यों को स्थापित करने तथा नए निष्कर्षों तक पहुंचने हेतु वस्तुआें और स्रोतों के योजनाबद्ध अध्ययन को ‘शोध’ कहते हैं । आध्यात्मिक दृष्टिकोण से किसी घटना का अध्ययन सुव्यवस्थित ही होता है; परंतु आधुनिक विज्ञान की तुलना में आध्यात्मिक शोध भिन्न आयाम में किया जाता है ।
आध्यात्मिक शोध अर्थात प्रगत छठवीं इंद्रिय की सहायता से आध्यात्मिक आयाम अथवा आध्यात्मिक जगत संबंधी खोज । आध्यात्मिक (सूक्ष्म) जगत हमारी पंच ज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि द्वारा अनुभूत नहीं हो सकता अर्थात वह इनके परे है । इसमें स्वर्ग, नर्क, देवदूत, आत्मा, प्रभामंडल, अनिष्ट शक्ति इत्यादि समाहित हैं ।
आध्यात्मिक शोध प्रमुखतः चौथे तथा पांचवें आयाम से संबंधित है । ‘काल’ चौथा आयाम है तथा अदृश्य अंतरिक्ष (ब्रह्मांड) पांचवां आयाम है ।
चौथे आयाम संबंधी आध्यात्मिक शोध पिछले जन्मों से संबंधित है । पिछले किन कर्मों तथा प्रसंगोंके कारण इस जन्म में सकारात्मक अथवा नकारात्मक घटनाएं हो रही हैं, इसका अध्ययन किया जाता है । उदाहरणार्थ आध्यात्मिक शोध से यह उजागर हो सकता है कि क्या किसी व्यक्ति ने पिछले जन्म में साधना की थी, जिससे इस जन्म में उसे सफलता मिल रही है ।
पांचवे आयाम संबंधी आध्यात्मिक शोध, जीवन की समस्याआें का मूल कारण जानने के लिए ब्रह्मांडके सूक्ष्म-स्तरीय सकारात्मक तथा नकारात्मक लोकों को व्याप लेता है । उदाहरणार्थ, ‘लुइ के जीवन पर पांचवें आयामके प्रभाव संबंधी आध्यात्मिक शोध‘ से यह ज्ञात हुआ कि एक प्रकार की सूक्ष्म अनिष्ट शक्ति (चुडैल), लुइ के मन में उभरने वाले अत्यधिक कामुक विचारों का मूल कारण थी ।
पहले तीन आयामों के क्षेत्र में भी, जहां विभिन्न विषयों के बारे में वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताआें का ज्ञान सीमित होता है, वहां आधुनिक विज्ञान को उचित दिशा प्रदान करने हेतु आध्यात्मिक शोध किया जा सकता है । जब वैज्ञानिक शोध के पूरक के रूप में आध्यात्मिक शोध की सहायता ली जाती है, तब सभी शोध फलदायी सिद्ध होते हैं और अनेक वर्षों, अथवा कभी-कभी जीवन भर, अनुचित दिशा में किए जाने वाले प्रयासों से बचा जा सकता है ।
२. आध्यात्मिक शोध का ध्येय तथा उद्देश्य
हमारे जीवन में आने वाली लगभग ८०% समस्याआें का मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । इन आंकडोंका प्रमाणीकरण सन १९८५ से हमारे द्वारा किए आध्यात्मिक आयाम संबंधी शोध तथा जीवन में आनेवा ली समस्याआें के योगदान कारकों का अध्ययन करते समय हुआ है । इसका तात्पर्य यह है कि यदि जीवन की समस्याआें और घटनाआें का मूल कारण जानने की प्रक्रिया में हम आध्यात्मिक आयाम की अनदेखी करते हैं, तो हम अपनी जीवन कथा के संभावित ८०% भाग से अनभिज्ञ ।
संदर्भ लेख : ‘जीवन की समस्याआें के मूल कारण‘
एस.एस.आर.एफ. द्वारा किए जा रहे आध्यात्मिक शोध का उद्देश्य है :
१. समाज को आध्यात्मिक आयाम तथा वह हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है, इस विषय में शिक्षित करना ।
२. लोगों को वे साधन उपलब्ध करवाना जिनसे –
१. वे आध्यात्मिक आयाम को समझ पाएं और उसे अनुभव करें ।
२. वे उन समस्याआें को समझकर सुलझा पाएं, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक है ।
३. वे शाश्वत सुख प्राप्त कर पाएं ।